कोरोनाकाल में सरकारें व प्रशासन पूर्णतः विफल रही हैं
सतना।सरकारी सिस्टम की सारी कमियां उजागर हुयी हैं। उक्त विचार सुभाष सेना के राष्ट्रीय प्रमुख कुलदीप सक्सैना ने अपनी विज्ञप्ति में व्यक्त किये हैं। श्री सक्सैना ने कहा कि नवम्बर-दिसम्बर 2019 में जब चीन में कोरोना फैल रहा था हम तमाशबीन बनकर तमाशा देख रहे थे। जनवरी से अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर जाँच शुरू की गईंं जो इतनी लचर थीं कि मरकज़ एवं अनेक कार्यक्रमों में विदेशों से आये लोग कोरोना पॉज़िटिव पाये गये। इतना होने के बावजूद भी ट्रम्प के कार्यक्रम को स्थगित नहीं किया गया। इस कार्यक्रम में न जाने कितने लोग आकर कोरोना फैलाये होंगे।
लॉकडाउन जब लागू हुआ तब तक कोरोना अपने पैर पसार चुका था। लॉकडाउन की हकीकत भी किसी से छुपी नहीं है। फिर शुरू हुआ प्रशासनिक क्रियाकलापों का सिलसिला इसमें चाहे लोगों को उनके घर पहुँँचाने का कार्य हो, उन्हें भोजन बंटवाने का काम हो या गेहूं, चावल व अन्य सामान बंटवाने का काम सभी में जमकर अनियमितता व भ्रष्टाचार दिखाई दिया। सतना भी इससे अछूता नहीं रहा, सड़े व दुर्गंध मारते गेहूँ व चावल आज भी पकड़े जा रहे हैं। यहां तककि कम्प्यूटर से डाटा उड़ाकर हेराफेरी करने की कोशिशें की गयीं। अस्पताल में अनियमितता व लापरवाही तो पराकाष्ठा पर रही है। विगत सप्ताह लगभग हर दिन एक मौत अस्पताल के स्टाफ की लापरवाही से हुयींं और अंत में एक मेल फीमेल चाइल्ड की अदला-बदली जैसी घोर लापरवाही के साथ इसका पटाक्षेप हुआ है। कहीं भी शिकायत की जाय कोई सुननेवाला नहीं है। कलैक्टर सतना तो कोरोना से इस कदर डरे हुये हैं कि वे वी.वी.आई.पी.के अतरिक्त किसी से मिलना ही नहीं चाहते।पूरा देश आज कमोवेश ऐसे ही वातावरण से गुज़र रहा है। अब सरकार जनता को उनके अपने हालत पर छोड़ दी है। ईश्वर जिन पर मेहरवान होगा वो खुश-किस्मत ही इस कोरोनाकाल से बाहर निकलकर जी सकेंगे। सरकार ने जेईई व नीट के छात्र-छात्राओं से लेकर कम्पार्टमेन्ट के बच्चों को कोरोना से लड़ते हुये परीक्षाऐं देन को मजबूर कर दिया। सरकार की मूर्खता तब हास्यास्पद तरीक़े से उजागर हो रही है जब शिक्षामंत्री कह रहे हैं जो परीक्षाएं नहीं दे सकेंगे उनकी परीक्षाएं दोबारा कराई जायंगी फिर परीक्षा पोस्टपोन करने में क्या परेशानी थी यह समझ से परे है। इधर आज जेईई का रिजल्ट भी आ रहा है जब दोवारा परीक्षाएं होना तय है तो रिजल्ट्स में परसेंटाइल कैसे तय करेंगे? इधर केंद्र सरकार एक के बाद एक आर्थिक पैकेज घोषित कर रही है। किन्तु प्रश्न यह उठता है कि यदि सरकारी सिस्टम का यही हाल रहेगा तो क्या यह पैसा उन मदों तक पहुंच सकेगा जहाँ तक पहुँचाने के प्रयास किये जा रहे हैं?