रेलवे ओवर ब्रिज मे भष्ट्राचार की बू ।
बनने से पहले ही भरभरा कर गिरा एक साइड का पल्लl
गाडरवारा प्रदेश में भ्रष्टाचार का रोग बढ़ता ही जा रहा है। प्रशासन सरकार का कोई भी ऐसा विभाग नहीं बचा, जहां भ्रष्टाचार के असुर ने अपने पंजे न गड़ाए हों। हमारा प्रदेश नैतिक मूल्यों और आदर्शों का कब्रिस्तान बन गया है। साथ ही देश की सबसे छोटी इकाई पंचायत से लेकर शीर्ष स्तर के कार्यालयों और क्लर्क से लेकर बड़े अफसर तक, बिना घूस के आज सरकारी फाइल आगे ही नहीं सरकती।
आज के समय में ईमानदारी तो महज एक कहावत बनकर रह गई है। हर क्षेत्र में जब तक जेब से गुलाबी नोट न दिखाये जाए, तब तक हर काम कछुआ चाल से ही चलता है। न जाने कब पूरा होगा? सब राम भरोसे है ! लेकिन जैसे ही नोटों की गर्मी पैदा होती है, काम की तेजी मे खरगोश सी रफतार आने लग जाती है। इस गर्मी के प्रकोप से बड़े-बड़ों का ईमान पिघलने लगता है। बच्चों का शिक्षण संस्थान में दाखिला करवाना हो, या किसी को सरकारी अस्पताल में भर्ती कराना हो, बिना मुट्ठी गरम किए होता नहीं है।
भ्रष्टाचार की दीमकें हमारी सारी व्यवस्था को खोखला कर रही हैं। कभी सोने की चिड़िया कहा जाने वाला भारत आज भ्रष्टाचार के कीचड़ में धंस चुका है। हमारे नैतिक मूल्य और आदर्श सब स्वाहा हो चुके हैं। बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार आचरण दोष का ही परिणाम है।
आजकल अखबारों, टीवी और रेडियो में एक ही खबर सुनने-देखने को मिल रही है, वह है भ्रष्टाचार की। हर दिन भ्रष्टाचार के काले करनामे उजागर हो रहे हैं। देश में भ्रष्टाचार को मिटाकर सभी नागरिकों को रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करना सरकार का काम ही नहीं, बल्कि राजनीतिक धर्म भी होता है। लेकिन आजादी से लेकर अब तक देश की सरकारें भ्रष्टाचार को मिटाने में विफल रही हैं। दरअसल, जब तक भ्रष्टाचार की राजनीतिक बुनियाद पर चोट नहीं की जाती, भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई भी मुहिम तार्किक परिणति तक नहीं पहुंच सकती । भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा प्रचलित रूप रिश्वतखोरी है। आए दिन अखबारों में रिश्वत के कारनामे उजागर होते रहते हैं। आज हरेक क्षेत्र रिश्वतखोरी के रंग में रंग चुका है। लोगों में रिश्वत देकर काम निकलवाने की प्रवृत्ति घर करती जा रही है।
जनमानस में यह धारणा बैठ गई है कि रिश्वत देने से हर कठिन काम सरल हो जाता है। इसलिए आज हर मौके पर और हर काम के लिए रिश्वत दी और ली जा रही है। सरकारी दफ्तरों में रिश्वत लेने का सिलसिला बहुत पुराना है। ऐंसे ही एक वाक्या से हम आपको रूबरू कराते है जो विगत दिवस भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ते दिखाई पड़ रहा है। गाडरवारा रेलवे स्टेशन से चीचली व एनटीपीसी की ओर जाने वाले राहगीरों को रेलवे फाटक पर घण्टो खड़े होकर गेट खुलने का इंतजार करना पड़ता था एवं कई इमरजेंसी जैसी स्थिति में कई मरीजों को अपना दम तोड़ने पड़ता था। क्षेत्रवासियों की मांग पर रेलवे गेट पर ओवर ब्रिज बनाने की मांग उठी जिसके चलते क्षेत्रीय सांसद की मेहनत के परिणाम स्वरूप ब्रिज की अनुमति प्रदान हुई जिससे क्षेत्रवासियों में काफी हर्ष उल्लास देखने को मिला लेकिन किसे पता था कि विकास नाम का ये ब्रिज भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाएगा और हुआ भी यही जो ब्रिज अब तक बनकर तैयार नहीं हुआ उसके पल्ले भरभरा कर धराशाई होने लगे जबकि उसमें किसी प्रकार का अभी लोड है ही नहीं, बावजूद इसके यह बैठक ले गया मानो यहां व्रिज नहीं बल्कि कच्ची सड़क हो। जिसमें कहीं ना कहीं भ्रष्टाचार की बू आती नगर नजर दिख रही है। रेलवे जैसे मंत्रालय विभाग में ऐसा वाक्य बहुत ही कम देखने को मिलता है लेकिन यह हादसे ने रेलवे विभाग की भी कहीं ना कहीं गुणवत्ता पर सवालिया निशान खड़े किए हैं, जबकि रेल मंत्रालय अपनी कार्यशैली अपनी सुरक्षा मजबूती के लिए सभी मंत्रालय विभागों के लिए एक प्रेरणादाई होता है। परंतु यह मामला उदगार होने से बहुत से प्रश्न निकाल कर आने लगे हैं आगे क्या होगा भगवान जाने!
मेरे संज्ञान मे मामला नही है, कहा क्या गिर गया है दिखवाता हूँ गुणवत्ता का अगर विषय होगा तो जांचकर नियमानुसार कारवाही की जायेगी।
संजय विश्वास, डीआरएम,पश्चिम मध्य रेल मंडल,जबलपुर