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क्यों नहीं कर रही एमपी सरकार शराबबंदी को लागू

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शराबबंदी का सही समय है लाकडाउन

आलेख
आशीष जैन (जबलपुर दर्पण)
9424322600
ashishjain0722@gmail.com

मार्च 22 से संपूर्ण भारत में लाकडाउन लगा है। उद्योग, व्यापार, ट्रेन, बस, गांव, शहर और महानगर पूर्ण रूप से बंद है। गाव, महानगर, शहर व राज्यों की सीमाएं सील कर दी गई। जो जहां है, वहीं स्थापित हो गया है। सभी अपने अपने घरों में कैद हैं। लगता है समय चक्र रुक गया है। ऐसी स्थिति में कुछ कदम देश समाज और संस्कृति के लिए लाभदायक हो सकते हैं। इसमें सबसे प्रमुख है,शराबबंदी। शराब हमारी जड़ों को नशेड़ी बनाती जा रही है। पीढ़ी की पीढ़ियां, दलदल में फंसती जा रही हैं। सोचने, समझने की झमता कम करने और आपराधिक विचारों को बढ़ाने वाली इस बीमारी का हल यही है कि, इसकी उपलब्धता को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दिया जाए। जब यह नशीली वस्तु का उत्पादन, आसान विक्रय और उपलब्धता ही नहीं रहेगी तो इसके दुष्परिणाम भी नहीं होंगे ओर व्यक्ति मे सकारात्मक आऐंगी। वर्तमान में हम सभी लगभग महीनों से लॉकडाउन हैं। वैसे भी शराब की दुकानें पूर्ण रूप से बंद है।शराब दुकान वा बार बंद होने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा। सभी अपने-अपने घर में स्वस्थ और मस्त हैं। सक्षम लोगों की दैनिक दिनचर्या सीमित एवं आवश्यक संसाधनों से बहुत अच्छे से चल रही है। तो यही समय है कि सरकार अपने राजस्व वा कर की कमाई की चिंता छोड़कर व्यक्ति, देश, समाज और संस्कृति के प्रति दायित्वों का निर्वहन करें। जिससे इस दानव रूपी शराब का पूर्ण रूप से लॉकडाउन हो सके। और इसका उत्पादन, विक्रय और उपलब्धता समाप्त करके देश को शराब से मुक्त बनाया जा सके। मदिरा, सुरा या शराब अल्कोहलीय पेय पदार्थ है जो नशा लाने कि वास्तविक क्षमता रखता है। शराब अक्सर हमारे समाज में आनन्द के लिए पी जाती है। ज्यादातर शुरूआत दोस्तों के प्रभाव या दबाव के कारण होता है और बाद में भी कई अन्य कारणों जैसे बोरियत मिटाने, खुशी मनाने के लिए, अवसाद में, चिन्ता में, तीव्र क्रोध या आवेग आने पर, आत्माविश्वास लाने के लिए या मूड बनाने के लिए आदि से लोग इसका सेवन जारी रखते है। इसके अतिरिक्त भी शराब के सेवन को कई समाज में धार्मिक व सामाजिक अनुष्ठानों से भी जोड़ा जाता है। परन्तु कोई भी समाज या धर्म इसके दुरूपयोग की स्वीकृति नहीं देता है। शराब के लगातार सेवन करने की प्रबल इच्छा या तलब होती रहती है। शराब न मिलने पर शरीर में कम्पन, रक्तचाप, घबराहट, बेचैनी, कानों में आवाज सुनाई पड़ना, आँखो के सामने कीड़े-मकोडे़ चलते नजर आना, भयभीत होना, और नींद न आना शामिल है। कहते है दुबारा सेवन करते ही इन लक्षणें में सुधार हो जाता है। परंतु इन सभी से व्यक्ति का शारीरिक, सामाजिक, व्यवसायिक, ओर पारिवारिक क्षेत्रो में हनन होना प्रारंभ हो जाता है। शराब के सेवन से होने वाली समस्याओं और बिमारियों से हम सभी लगभग परिचित हैं। कई बार लोग शराब पीकर अपने घर परिवार के लोगों तथा पड़ोसियों से भी बदतमीजी, लड़ाई-झगड़े करते हैं। कई लोग शराब पीकर सड़कों, नालियों में भी गीरे पड़ते हैं। ये तो सभी प्रत्यक्ष नुकसान हैं। और अप्रत्यक्ष रूप से बहुत नुकसान होता है. इससे लिवर सिरोसिस, लिवर में जलन और सूजन, हाई बीपी, हृदय मांसपेशियों को नुकसान, ग्रसनी, कंठनली, इसोफेगस, स्तन कैंसर और कोलोरेक्टल, लिवर, मुंह, स्‍तन और गले का कैंसर होता हैं। शरीर में विटामिन बी-12 कम बनेगा जिससे पुरुषों में इन्फर्टिलिटी या सेक्सुअल डिस्फंक्शन की भी समस्या होती है। कैल्‍शियम और विटामिन-डी के अवशोषण में बाधा उत्पन्न होती है। जिससे दिमागी कमजोरी, नपुंसकता का खतरा, हृदय रोग,हार्ट अटैक, स्‍ट्रोक और हाई बीपी भी हो सकता है। आजादी के समय जब अंग्रेज भारत छोड़कर संपूर्ण भारत में लगभग 1600 शराब के ठेके थे। परंतु आजादी के बाद से वर्तमान समय तक लगभग 30,000 से ज्यादा वैध और अवैध ठेके संचालित हो रहे हैं। 90 प्रतिशत से ज्यादा अपराध और दुर्घटना शराब पीने या शराब के कारण होती। इसका जिम्मेदार पीने वाला या उपलब्ध कराने वाले है। एक गरीब हमेशा सरकार और समाज की नजर में गरीब रहता है परंतु अपनी मासिक या साप्ताहिक आमदनी का 80 प्रतिशत भाग शराब पीने में खर्च करने वाला कभी भी गरीबी रेखा के ऊपर क्यों नहीं आ पाता। यह सभी जिम्मेदारों के लिए चिंतनीय एवं गंभीर विषय है। इस सभी का एकमात्र हल है कि भारत में शराब को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित किया जाए। जिससे भारत पहले की तरह स्वच्छ, स्वास्थ्य, धनवान और संस्कारी बन सके।

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