संपादकीय/लेख/आलेख

मुहूर्त का असमंजस

हम सब अंतराय व सभी कर्म से हर पल अप्रमत्त रहते हुए बचने का प्रयास करें।क्योंकि भगवान तीर्थंकर होते हुए भी सिर्फ बैलों की छिंकीबांधने का कहने मात्र से ,बिना रागद्वेष के भाव होते हुए भी ,बैलों को कष्ट पहुंचने से ,कई गुणा रूप में होकर अंतराय को भोगना पड़ा, उदय में आने पर तो हम कहाँ और कैसे बच पाएंगे, इस सबसे।हमें अंतराय कर्म बांधने से बचना चाहिये ।आज क्यूं ये हजार ठिकाने देखभटक रहा हैं । चंचलता इतनी देखे पीर ना पिघले छल छल नीर। वैभव दुत्कार गरीबों को पग पग नीचा दिखाए तब अंतर्मन करुणा कीमृत्यु घनघोर घटाए गहराए।जो विधि ने निर्धारित किया है वही होकर रहेगा । संसार में रहते हुए विभिन्न कामों के लिए मुहूर्त देखा जाताहैं । मानव अपने जन्म के साथ जीवन, मरण, यश, अपयश, लाभ, हानि, स्वास्थ्य, बीमारी, देह, रोग, परिवार, समाज, राष्ट्र , स्थान सबपहले से निर्धारित करके आता है । इसलिए सरल, सहज मन और वचन सद्दकर्य में लीन रहे तो आत्मा का कल्याण होगा क्योंकि न जन्मलेने का मुहूर्त है न मृत्यु का फिर सब अर्थहीन है ।अपने कर्म के हम खुद उत्तरदायी है नियति को दोष देना निरर्थक है । हम सब सचेतहोकर किसी भी जीव को कोई भी तकलीफ देने से बचने की अपने विवेक से प्रतिज्ञा लेकर अपने कर्मों से हल्के होते हुए कर्म मुक्त होनेकी तरफ आगे बढ़े।सभी के प्रति यहीं मंगलभाव।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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