संपादकीय/लेख/आलेख

  • आचार्य विद्यासागर जी महाराज का समतापूर्वक समाधि मरण

    आलेख :- आकाश जैन पत्रकार दैनिक जबलपुर दर्पण। आचार्य विद्यासागर जीदिगम्बर जैन आचार्य जो अपने तप और ज्ञान के लिए…

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  • जबलपुर की गुमनाम फिल्म हस्ती याकूब को याद करते हुएः पंकज स्वामी

    बहुत कम लोगों को यह जानकारी होगी कि मशहूर पर्दें के खलनायक और चरित्र अभ‍िनेता याकूब जबलपुर के थे। उनके…

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  • गरीब परिवारों के बच्चे भी भगवान का रूप होतें हैं

    हमारे पूर्वजों ने बताया हैं कि व्यक्ति पिछले जन्मों के कर्मों के अनुसार इस दुनिया में अपना अस्तित्व बनाता हैं…

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  • समर्पण 

    अगर हमारा धर्म के प्रति समर्पण होगा तो हमे इसका अलग ही  परिणाम मिलेगा ।बशर्ते निष्काम भाव से व पूर्ण विश्वास से हो । समर्पण एक पूर्ण भाव धारा है जो इंसान को २४ केरेट सा शुद्ध और खरा बना दे। समर्पण ऐसे हो जो मोक्ष के साथ योग करा दे जैसामरुदेवी माता के साथ हुआ। समर्पण -ध्यान-एकाग्रता-ज्ञानयोग सब भक्ति की पराकाष्ठा हैं सरल हृदय का योग हैं। इस धारा मेबहनेवाला भक्त भगवान बन जाता हैं । आत्मा परमात्मा में लीन वामन विराट और जीव शिव बन जाता हैं। दूध में शक्कर की तरहपरमात्मा से एकमेक होने के लिए गुड में मिठास की तरह भक्ति को आत्मसात करने के लिए कहा हैं अर्पणम-समर्पण-श्रद्धा चंदनम-शुभ्रभाव पाद वंदनम । समर्पण में श्रद्धा का महत्व ज्यादा होता है ।जिस पर श्रद्धा होती है उसी पर समर्पण होता है ।जिस पर श्रद्धा नहीं होतीउस पर समर्पण भी नहीं होता हैं ।जब श्रद्धा किसी व्यक्ति पर होती है और उसके प्रति समर्पण होता है तो समर्पण करने वाले को विशेषसुख मिलता है ।जब श्रद्धा भगवान के प्रति होती है और व्यक्ति भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण कर देता है तो उसे विशेष आनंद मिलता है ।इसीलिए योगी आदमी भगवान से योग लगाते हैं और अपने आप को पूर्ण समर्पित कर देते हैं तो वे सुख,शांति और परमात्मा का आनंदलेते हैं ।समर्पण क्यों करना चाहिए ?क्योंकि जब तक समर्पण नहीं होता हैं तब तक सच्चा सुख नहीं मिलता हैं । सच्चे सुख की प्राप्ति केलिए समर्पण किया जाता है ।समर्पण यदि कपटपूर्ण है तो सुख भी दिखावा मात्र ही होगा । समर्पण से ही आत्मा के परमात्मा  से दर्शनहोतें हैं।इसलिये कहा जाता हैं कि जो बताया गया है शास्त्रों द्वारा, गुरुजनों द्वारा,उसे बिना शंका के स्वीकार करो। पूर्ण आस्था सेसमर्पण से अंगीकार करो। समर्पण से ही आत्मा के परमात्मा से दर्शन होतें हैं। प्रदीप छाजेड़  ( बोरावड़ )

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  • परेशानियाँ बेचारी

    अगर हमारे जीवन में सदैव सकारात्मकता रहेगी तो कोई भी किसी तरह की कही भी कुछ भी परेशानियाँ हो वो…

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  • एकलव्य का अंगूठा

    स्कूल यूनीफॉर्म का मोजा पहनते ही पांच में से तीन अंगुलियां बाहर आ गईं। विधवा मां ने देखा तो उसकी…

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  • शुभ कर्म ही पूजा है

    छिंद का अर्थ खजूर-ताड़ के पेड़ों से भरा और “वाड़ा” का अर्थ स्थान होता है। छिंदवाड़ा छिंद से भरा था…

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  • श्रेष्ठता के तीन श्रेष्ठ लक्षण

    अच्छे साधनों से आदमी की व्यवहार जगत में पहचान तो हो सकती है लेकिन वास्तव में सही से उसकी पहचान…

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  • दो उवाच

    एक राहगीर आगे अपनी मंजिल की तरफ जा रहा था । अचानक से जोरदार बारिश आयी । उसने महल के…

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  • मुहूर्त का असमंजस

    हम सब अंतराय व सभी कर्म से हर पल अप्रमत्त रहते हुए बचने का प्रयास करें।क्योंकि भगवान तीर्थंकर होते हुए…

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