संपादकीय/लेख/आलेख

गरीब परिवारों के बच्चे भी भगवान का रूप होतें हैं

हमारे पूर्वजों ने बताया हैं कि व्यक्ति पिछले जन्मों के कर्मों के अनुसार इस दुनिया में अपना अस्तित्व बनाता हैं । जैसे पांचों उंगलियां बराबर नहीं होंती हैं ठीक इसी प्रकार जिस घर में बच्चे का जन्म होंता हैं वो अन्य से भिन्न होंता हैं । किसी का घर दौलत से परिपूर्ण होंता हैं,तों किसी घर में छोटी से छोटी वस्तु का अभाव होंता हैं अर्थात कोई अमीर होंता हैं तों गरीब । अमीरी-गरीबी अपने अनेकों कर्मो पर निर्भर करतीं हैं । हालांकि लोग इसे ईश्वर की देन समझ कर इसे स्थिर बनाकर रखना पसंद करतें हैं जबकि वास्तविकता यह हैं कि यह एक चर राशि हैं जिसका मान व्यक्ति की मेहनत पर निर्भर करता हैं । बच्चे के माता-पिता यदि गरीब होंते हैं तों स्वाभाविक हैं कि उनका बच्चा भी गरीब होंगा और इसके विपरीत होंने पर बच्चा अमीर घराने से संबंध रखता हैं । अमीर ,गरीब इन दोनों शब्दों को यदि रिमूव कर दिया जाएं तों एक बहुत हीं अच्छा, प्यारा नाम निकलकर आता हैं । वो हैं बच्चा । समाज में बच्चे को भगवान की संज्ञा दी जाती हैं और यह बात अमीर, गरीब दोनों परिवारों पर लागू होंती हैं । लेकिन कुछ लोगों के अहंकार से परिपूर्ण होने के कारण इनका वर्गीकरण किया जाता हैं अर्थात अमीर घर का बच्चा भगवान का रूप होंता हैं किंतु गरीब घर का नहीं । इसके तमाम उदाहरण घर से बाहर निकलते ही देखने को मिल जातें हैं । स्पष्ट तौर पर यदि इसके कारणों के बारें में बात की जाए तों व्यक्ति का घमंड इसका प्रमुख कारण हैं । जब व्यक्ति के पास गलत कार्यों से पैसा आ जाना शुरू हों जाता हैं, तों व्यक्ति अपने आप को श्रेष्ठ और दूसरों को तुच्छ समझनें लगता हैं । उसे,व्यक्ति जिसके पास धन का अभाव होंता हैं उसे वो एक कीड़ा-मकोड़ा मानता हैं अर्थात मानवता से मुँह फेर लेता हैं । उसे सम्पूर्ण दुनिया अशक्त नजर आतीं हैं । अहिंसा, प्रेम और नैतिकता की वह धज्जियां उड़ाता हैं । ऐसे में व्यक्ति का गलत व्यवहार करना हैं, स्वाभविक हैं क्योंकि वो ईश्वर से भी रिश्ता तोंड लेता हैं तों फिर दुनिया उसके लिए क्या चीज हैं । भूख वो चीज हैं जो व्यक्ति को सब कुछ करनें पर मजबूर कर देतीं हैं । बढ़ती हुई मंहगाई, बेरोजगारी का अच्छा खासा दबदबा आदि किसी व्यक्ति के परिवार के पेट भरने में मुख्य बाधक बनतें हैं । ना चाहते हुए लांखो परिवारों को भूख से व्याकुल होंने के कारण सड़क पर उतरना पड़ता हैं । इस स्थिति में इन परिवारों के छोटे-छोटे बच्चे भी सम्मिलित होंते हैं । जब ये बच्चे किसी के पास मदद के लिए गमन करतें हैं तों इनको काफी बुरा सुनकर निराश होकर लौटना पड़ता हैं । लोग भूल जातें हैं कि ये बच्चे हैं, और बच्चे भगवान का रूप होतें हैं । अपने बच्चों के लिए इस शर्त को स्वीकार करने में साधन सम्पन्न ये लोग जल्द हामी भर देंते हैं लेकिन गरीब परिवार के बच्चों पर कदाचित् ऐसा नहीं होंता हैं । इस तरह का व्यवहार हमें उन बच्चों के साथ हरगिज़ नहीं करना चाहिए । भले लाख बार आप उनको डांटे लेकिन उनके मन में आपके प्रति प्यार ,मान-सम्मान में कोई भी कमी नहीं होती हैं । उनकी गरीब को देख उनके साथ ऐसा अनादर नहीं करना चाहिए । यह सीधे-सीधे हमारे घमंडी स्वभाव को उजागर करता है । अगर गरीबी ने उनके साथ यह खेल खेला नहीं होंता तों उनमें से हीं वकील , डाॅक्टर ,इंजीनियर आदि बनकर देश की सेवा कर रहे होंते । इस तरह तेज धूप में नंगे पैर सड़क पर भूख से व्याकुल नहीं भटक रहें होते । शिक्षा की कमी उनकों सड़कों पर उतराती हैं इसलिए गरीब परिवारों के बच्चों को कभी भी गलत भावना से नहीं आकना चाहिए । हो सकता है उनकी गतिविधियां आपको निराश करें लेकिन उनका मकसद आपकों निराश करनें का नहीं होंता हैं इसलिए सभी बच्चों से प्रेम पूर्वक हांथ मिलाना चाहिए । इसके नकारात्मकता का नाश होंता है और सकारात्मकता का आगमन होंता हैं । देश की सरकार भी इन बच्चों के लिए अनेक कदम उठाती है लेकिन अज्ञानता के चलतें इनको लाभ नहीं मिल पाता है ।

खेमू पाराशर

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