साहित्य दर्पण

भोले से लेन-देन

भोले-भोले तू जपले मितवा,

भोले रंग चढ़ जाएगा,

छोड़ दे सारी दुनियादारी,

जीवन को महकाए जा।

भोले-भोले तू ….

कदम-कदम जैसे-जैसे तू,

भोले की और जाएगा,

भक्ति की गगरी से जैसे,

चरणामृत तू पाएगा।

भोले-भोले तू …..

ये तन तो कुछ देर का साथी,

मिट्टी में मिल जाएगा,

जो मन जोड़ लिया भोले से,

अमर बूटी पा जाएगा।

भोले-भोले तू ….

इसका लेना,उसका देना,

समय व्यर्थ हो जाएगा,

बस भोले से लेन-देन कर,

सारे सुख पा जाएगा।

भोले-भोले तू ….

देने की जो रही भावना,

सब तेरा हो जाएगा,

भोले ही हैं अंतर्यामी,

तू जीवन पा जाएगा।

भोले-भोले तू ….

(122 वां मनका)

कार्तिकेय कुमार त्रिपाठी राम

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