काम के दबाव में संविदा हुए दुनिया से विदा।
अपने पीछे शोषण और घुटन की दर्द भरी कहानी छोड़ गए।
जबलपुर। जब से सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के स्थान पर, संविदा कर्मचारियों को अस्थाई तौर पर रखना शुरू किया है। तब से शोषण और दबाव की एक नई परंपरा शुरू हो गई है।
काम की अधिकता और अनावश्यक दवाब की वजह से मिले तनाव के कारण जनपद पंचायत पाटन की ग्राम पंचायत मेढ़ी में ग्राम रोजगार सहायक / सहायक सचिव की हृदय गति रुकने से असमय मृत्यु हो गई…
प्रमोद पटेल न केवल अपनी ग्राम पंचायत की प्रगति को आगे रखते थे बल्कि पूरी जनपद की प्रगति में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहता था, वे अपने परिवार के इकलौते कमाऊ सदस्य थे, नोकरी के अलावा अन्य कोई आय के संसाधन नही थे, जैसे तैसे अपनी वृद्ध मा के साथ अपनी पत्नी और एक 3 वर्ष की बेटी का पालन पोषण करते थे…
ग्राम पंचायत से लेकर जनपद का कोई भी ऐसा काम नही जो समय पढ़ने पर प्रमोद नही करते थे, कई बार उनसे अच्छे कार्यों के लिए प्रशस्ति पत्र भी मिले… परन्तु आज इतना मेहनती, नेक दिल व्यक्ति हमारे बीच नही रहे, उनके परिवार को कभी न भरने वाली छती तो हुई है वरन पूरी जनपद पंचायत की क्षति हुई है…
गौरतलब है कि ग्राम पंचायतों में मनरेगा अधिनियम के अंतर्गत
मध्यप्रदेश राज्य की लगभग 23000 ग्राम पंचायतों में ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराने हेतु ग्राम रोजगार सहायकों की भर्ती की गई थी, जिन्हें बाद में सहायक सचिव घोषित कर दिया गया था…
रोजगार सहायकों को शासन से अल्प मानदेय के अलावा कुछ नही प्राप्त हो रहा है जबकि काम 10 गुना ज्यादा लिया जाता है…
ग्राम पंचायत विभाग हो, चाहे राजस्व, खाद्यान्न, वन विभाग, निर्वाचन से लेकर केन्द्र और राज्य सरकारों के सभी विभागों से सम्बंधित सभी योजनाओं के संचालन हेतु ग्राम रोजगार सहायक/ सहायक सचिव एवं सचिवों से कराए जाते है…
काम का इतना बोझ लाद दिया जाता है कि हम ग्राम पंचायत कर्मियों को अपना और अपने परिवार का ख्याल रखने का समय ही नही मिलता… अगर हमसे अधिक कार्य न लिया जाता होता तो आज प्रमोद भाई अपने स्वास्थ्य के लिए समय निकाल पाते और समय पर इलाज कराकर खुद को बचा लेते परन्तु हमें शासन से काम के अलावा और कुछ नही मिलता है न स्वास्थ्य सुविधाएं, न मंहगाई भत्ता, यहां तक कि सम्मान भी नही मिलता, संविदा में रहने के कारण नोकरी से कभी भी हटाने की धमकियों के बीच, भय के कारण शोषण सहते हुए परिवार का पेट पालने के लिए नोकरी किये जा रहे है.. प्रदेश भर में न जाने ऐसे कितने हमारे सहायक सचिव साथी असमय काल का ग्रास बने, कितनों ने तंग आकर नोकरी छोड़कर मजदूरी करने लगे… अगर ऐसा ही रहेगा तो आने वाले समय मे सहायक सचिवों की संख्या आधी बचेगी…
और न जाने अभी ये सील सिला कब रुकेगा, जबकि मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक को व्यक्तिगत रूप से मालूम है कि ग्रामीण भारत की समस्त योजनाएं इन ग्राम रोजगार सहायक कर रहे है… लेकिन इनकी तरफ ध्यान देने वाला कोई नही है…