चाबियां नहीं दूंगी दर्द के खजाने की
जबलपुर दर्पण। प्रसंग, हम सब एवं बज्में मरासिम संस्था के संयुक्त तत्वावधान में जश्न-ए- आजादी के मौके पर एक मुशायरा आयोजित किया गया मुख्य अतिथि पूर्व कैबिनेट मंत्री लखन घंघोरिया रहे तथा अध्यक्षता शफीक अंसारी ने की, जबकि पप्पू वसीम, फिरोज कमाल, मतीन अंसारी, मकबूल रिजवी, पार्षद गुलाम हुसैन, डॉ. रिजवान अली विशिष्ट अतिथि के रूप में मंच पर उपस्थित रहे।
मुशायरा का शुभारंभ डॉ रानू रूही के इस शेर से हुआ चाहिए तो ले जाओ कहकहों का ये मौसम, चाबियां नहीं दूंगी दर्द के खजाने की इंजी विनोद नयन ने कहा बात इतनी सी हवाओं को बताएं रखना, रोशनी होगी चरागों को जलाए रखना, हमने सींचा है जिसे अपना लहू दे दे कर, उस तिरंगे को कलेजे से लगाए रखना
विजय आनंद माहिर ने पढ़ा आंगन की दीवार दिलों तक जाने कब आ पहुंची है, अब लड़ते हैं दोनों भाई घर में घर के बाहर भी इज़हार रजा ने कहा रूठने वाले घड़ी भर में मना लूंगा तुझे, मुझको मालूम तो हो मुझसे शिकायत क्या है
असलम माजिद ने पढ़ा
मैं पानी हूँ मुझे रस्ता दिया जाए तो बेहतर है, बनाई राह मैंने तो मचा दूंगा तबाही मैं श्वेता सचि ने पढ़ा पढ़ के वो लाल शर्म से मेहताब हो गया लिखी है चांदनी में नहाई सी शायरी इसी के साथ शेख निजामी, नवाब कौसर, अन्नु शाह, मकबूल अली कादरी, लता गुप्ता, जावेद नाज़,परवेज आलम, दिनेश सेन, रिजवान हकीकी, मकबूल जफर ने शानदार गजलें पेश की। मुशायरे का संयोजन इंजी. विनोद नयन ने किया तथा संचालन मन्नान फराज एवं आभार प्रदर्शन राशिद राही ने किया