पहला विश्व ध्यान दिवस: जबलपुर और न्यूयॉर्क का अद्भुत जुड़ाव
जबलपुर दर्पण। 21 दिसंबर 2024 को पहले विश्व ध्यान दिवस का ऐतिहासिक आयोजन हुआ, जिसमें न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र महासभा और जबलपुर के नेताजी सुभाष चंद्र बोस ऑडिटोरियम ने ध्यान, भक्ति और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम देखा। यह आयोजन न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि भारतीय ध्यान परंपरा को वैश्विक मंच पर स्थापित करने का एक मील का पत्थर भी था।
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर का मार्गदर्शन
न्यूयॉर्क में आयोजित इस कार्यक्रम में, पद्म विभूषण गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर ने ध्यान के महत्व पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने वैश्विक शांति और सद्भावना के लिए ध्यान को एक प्रभावी साधन बताया। गुरुदेव ने कहा, “शांतिपूर्ण मन न केवल व्यक्तिगत शांति का कारण बनता है, बल्कि यह समाज और संसार में सकारात्मक वातावरण का निर्माण करता है। ध्यान वैश्विक शांति और एकता को बढ़ावा देने में सहायक है।”
यह गर्व का क्षण था कि एक भारतीय गुरु, गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर, संयुक्त राष्ट्र महासभा में वैश्विक शांति की दिशा में नेतृत्व कर रहे थे और पूरी दुनिया उनकी बातों को सुन रही थी। उन्होंने ध्यान को चिंता, तनाव और हिंसा जैसी समस्याओं से निपटने का एक प्रभावी उपाय बताया।
जबलपुर में भक्ति और आध्यात्मिकता का माहौल
इस ऐतिहासिक कार्यक्रम का सीधा प्रसारण जबलपुर के नेताजी सुभाष चंद्र बोस ऑडिटोरियम में किया गया, जहां पर स्थानीय प्रतिभागियों ने गुरुदेव के संदेश को ध्यान के माध्यम से महसूस किया। कार्यक्रम की शुरुआत आर्ट ऑफ लिविंग के गायकों रीना महोबिया और आदित्य तिवारी द्वारा भक्ति भजनों “जय गुरू ओंकारा” और “गुरुदेव गुरू ओम” से हुई, जिन्होंने वातावरण को भक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया। इसके बाद, पीपल नृत्य की प्रस्तुति ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
वैदिक मंत्रों से सजीव हुआ माहौल
आर्ट ऑफ लिविंग की वेद पाठशाला के बच्चों ने वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ कार्यक्रम को ऊंचाई दी। उनकी मासूमियत और ऊर्जा ने सभी को प्रभावित किया और विश्व शांति का संदेश फैलाया। यह पल एक शक्तिशाली reminder था कि छोटे-छोटे प्रयासों से भी बड़ी सामाजिक बदलाव लाए जा सकते हैं।
भारत की ध्यान परंपरा का वैश्विक सम्मान
यह आयोजन केवल आध्यात्मिक नहीं था, बल्कि यह भारत की ध्यान परंपरा को वैश्विक मंच पर स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर की पहल से 182 देशों में 80 करोड़ से अधिक लोग ध्यान के लाभों से लाभान्वित हो चुके हैं, और यह आयोजन उस प्रयास को और मजबूत करने का एक हिस्सा था।
सफल आयोजन में आर्ट ऑफ लिविंग का योगदान
इस आयोजन की सफलता में आर्ट ऑफ लिविंग के शिक्षक ललित बक्शी, प्रभा खंडेलवाल, नवीन बरसैयां, ऋतु राज असाटी, सुनीला पवार, अरुणा सरीन, संदीप तिवारी और अन्य स्वयंसेवकों का विशेष योगदान रहा। उनके समर्पण और सेवा ने इस आयोजन को सफल और अविस्मरणीय बना दिया।
इस ऐतिहासिक आयोजन ने यह सिद्ध कर दिया कि ध्यान केवल व्यक्तिगत शांति का साधन नहीं है, बल्कि यह वैश्विक शांति, एकता और सद्भावना की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।