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पति की गुजरने के बाद अनुकंपा नियुक्ति के लिए भटक रही है पत्नी।

पति की गुजरने के बाद अनुकंपा नियुक्ति के लिए भटक रही है पत्नी।
बेटे की मौत के बाद किराए के घर में रहने के लिए मजबूर हुई मां।
जबलपुर। आज के दौर में जहां ज्यादातर इंसान, पैसों की तंगी से परेशान हैं। अपनी छोटी छोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए भी,कठिन संघर्ष कर रहा है। वहीं कुछ परिवार ऐसे हैं। जहां आपसी तालमेल का अभाव, परिवार के सदस्यों को तिनके की तरह बिखर रहा है।
पत्नी अपने पति की नौकरी, अनुकंपा नियुक्ति के तौर पर हासिल करने के लिए, एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। लेकिन उसका कहना है, कि उसकी सास श्रीमती सुधा सक्सेना नहीं चाहती हैं। कि वह नौकरी उन्हें मिले।
पत्नी का कहना है कि उसके पास 2 बच्चे हैं। जिनके भरण पोषण की जिम्मेदारी उन पर है।
लेकिन इस तस्वीर का दूसरा पहलू एक अलग ही कहानी कह रहा है।
जिस मां ने अपने पति की नौकरी, बेटे को इस उम्मीद से दिलाई कि वो, बुढ़ापे में उनकी देखभाल करेगा। वही मां बेटे के गुजर जाने के बाद, आज किराए के मकान में रहने के लिए मजबूर है।
यह व्यथा है स्वर्गीय रविंद्र सक्सेना के परिवार की। जिनकी मृत्यु 31/7/2021 को हुई थी। उनकी पत्नी श्रीमती तृप्ति सक्सैना, मंगलवार को एस पी आफिस में जनसुनवाई के दौरान, अपनी पीड़ा लेकर पुलिस अधीक्षक कार्यालय पहुंची। उन्होंने बताया कि उनके पति की मौत के बाद से वो अपने मायके में रह रही हैं। उनके पति के अंतिम संस्कार के बाद ही उनकी सास श्रीमती सुधा सक्सैना
उनका घर छोड़कर अपनी बेटी के घर रहने चली गई। लेकिन उनके द्वारा सभी जगह ये बात कही जा रही है कि बहू ने उन्हें घर से निकाल दिया। जबकि हकीकत में वो शुरू से उनके साथ ही रह रही थी।
श्रीमती तृप्ति सक्सैना ने बताया कि उनकी सास एक सेवानिवृत्त शिक्षिका है। जिनकी कुल पेंशन राशि उनके ससुर की पेंशन के साथ 54000₹ मिलती है। उनके द्वारा मेरे पति के कार्यालय में इस आशय का पत्राचार किया जा रहा है। कि मुझे मेरे पति की अनुकंपा नियुक्ति न मिल पाए। मेरी सास द्वारा मांगे गए सामान की सूची में वो सामान भी शामिल हैं जिसे मेरे पति द्वारा खरीदा गया और वर्तमान समय में उन सामानों का उपयोग मेरे द्वारा किया जा रहा है।
पीड़िता ने इस बात का भय भी जताया कि कि कहीं उसके ऊपर कोई झूठा प्रकरण पंजीबद्ध न करा दिया जाए वर्ना उसके अनुकंपा नियुक्ति हासिल करने की कोशिश बेकार हो जाएगी।

इस विषय में जब पीड़िता की सास श्रीमती सुधा सक्सेना से बात की गई। तो उन्होंने बताया कि उनकी बहू शुरू से ही उन्हें परेशान किया करती थी। घर का काम उनसे और उनके बेटे से कराया करती थी। बार बार उन्हें और उनके बेटे को दहेज के झूठे मुकदमे में फंसा देने की धमकी दिया करती थी।
वो और उनका बेटा दोनो ही सरकारी कर्मचारी थे। अपनी नौकरी के डर से बहू के अत्याचार सहते रहे।
वह उनके बेटे को निरंतर मानसिक प्रताड़ना दिया करती थी। बेटे की मृत्यु के बाद उसने उन्हें घर में रखना स्वीकार नहीं किया। यहां तक कि तेरहवीं के दिन का इंतजार भी नहीं किया और उनको घर से बाहर जाने पर मजबूर कर दिया। आज वो किराए के मकान में रहने के लिए मजबूर है।
उन्होंने अपने बेटे को अनुकंपा नियुक्ति इस शर्त पर दिलाई थी कि वो बुढ़ापे में उनकी देखभाल करेगा। लेकिन बहू ने तो उन्हें घर से ही निकाल दिया।

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