साहित्य दर्पण
अपनी अपनी दुनिया
अनन्त बह्मांड में
छोटा सा गोला
गोले में मानव प्रजातियो के
अनवरत बदलते मुखोटे
परत दर परत बदलते रिश्तो में
कालचक्र के अधीन निरंतर
पूर्ण जन्मो का खेल ।
रक्त रंजिश सत्ता का खेल
पाप पुण्य के फेर में
मैली होती गंगा
ललाट पे चन्दन का लैप लगा
भगवान बनने आतुर।
प्रकृति से दूर होता मानव
कालचक्र की चक्की में
पीसता ही जा रहा है।
सब अपनी अपनी
छोटी सी दुनिया में
जिये जा रहे है
यह हर शख्स की
अपनी दुनिया है
दूसरे के हालातों से
अब कोई सरोकार नही किसी को
सब अपनी दुनिया मे
दुख और सुख को
भोगते हुए
अंधी दौड़ में
भागे जा रहे है।
कमल राठौर साहिल
शिवपुर , मध्य प्रदेश
9685907895