जिला कांग्रेस कमेटी ने अमर शहीद वीर उदयचंद जैन को याद किया


मण्डला। भारत वर्ष की आजादी के लिए 1857 ई0 से प्रारम्भ हुए 1947 तक के 90 वर्ष के संघर्ष में न जाने कितवने वीरों ने अपनी कुर्बानियां दीं, किन्तु 1942 का ‘करो या मरो आन्दोलन निर्णायक सिद्ध हुआ। इसी आन्दोलन के अमर शहीद हैं वीर उदय चंद जैन। प्राचीन महाकौशल और आज के मध्य प्रदेश का प्राचीन और प्रसिद्ध नगर है मण्डला। आज लोग मण्डला को अमर शहीद वीर उदयचंद की शहादत के कारण जानते हैं। जिन्होंने मात्र 19 वर्ष की अल्पवय में सीने पर गोली खाकर देश की आजादी का मार्ग प्रशस्त किया था। उदयचंद जैन का जन्म 10 नवम्बर 1922 को हुआ। उदयचंद मेधावी छात्र तो थे ही, अपनी नेतृत्व क्षमता के कारण वे छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गये। उदय चंद बलिष्ठ और ऊंचे थे, हाकी उनका प्रिय खेल था। 1942 के आन्दोलन ने सारे देश को झकझोर दिया था। ‘करो या मरो का नारा बुलन्द हो रहा था। मण्डला नगर भी पीछे नहीं रहा। 14 अगस्त 1942 को श्री मन्नूलाल मोदी और श्री मथुरा प्रसाद यादव के आह्वान पर जगन्नाथ हाई स्कूल के छात्रों ने हड़ताल कर दी। कक्षाओं का बहिष्कार किया। उदय चंद मैट्रिक के छात्र थे। प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी श्री गोपाल प्रसाद तिवारी ने अपने संस्मरण-मैंने देखी है उदयचंद जैन की शहादत में लिखा है- विद्यालय …जब लोग भागने लगे तब मैने श्री उदयचंद जैन से कहा कि-“कहीं ऊँचे स्थान पर खड़े होकर जनता को प्रदर्शन करते रहने को कहो, मै भीड़ में घुसकर लोगों को इकट्ठा करता हूँ।” इस पर श्री उदय चंद कुएं की पनघट पर चढ़ गये और जनता से शान्तिपूर्ण प्रदर्शन जारी रखने का अनुरोध करने लगेजनता पुनः इक्ट्ठी होकर नारे लगाने लगी। उप-जिलाधीश ने पुलिस को गोली चलाने का आदेश दिया। वीर उदय चंद ने कमीज को फाड़ते हुए पुलिस को ललकारा कि–’गोली चला दी जाये, वे उसे झेलने के लिए तैयार है। पुलिस की गोली चली, और गोली पेट को चीरते हुए शरीर में घुस गई। ‘भारत माता की जय’, तिरंगे झंडे की जय’ के साथ उदयचंद गिर पड़े और खून की नदी बह चलीपुलिस उदयचंद को अस्पताल ले गई। भीड़ अस्पताल की ओर दौड़ पड़ी। लोग पुलिस के खून के प्यासे हो उठे थे। उदयचंद 15 अगस्त 1942 की रात्रि को तड़पते रहे और 16 अगस्त 1942 की प्रातः वीरगति को प्राप्त हो गये। उदयचंद मरकर भी अमर हो गये। जिलाधीश श्री गजाधर सिंह तिवारी ने उदयचंद के पिताजी सेठ श्री त्रिलोकचंद से कहा कि ‘अमर शहीद के शव का चुपचाप दाहसंस्कार कर दिया जाये। त्रिलोक चन्द जी ने दृढ़तापूर्वक इसका विरोध किया। नगर के प्रतिष्ठित वकील श्री असगर अली ने क्रमशः मण्डला और महाराजपुर के नागरिकों की और से स्थानीय प्रशासन को आश्वस्त किया कि शवयात्रा के जुलूस में हिंसा नहीं भड़केगी। हाँ! यदि पुलिस जुलूस में शामिल हुई तो खून-खराबा रोका नहीं जा सकेगा। मण्डला के इतिहास में इतनी बड़ी शवयात्रा कभी नहीं निकली थी। कहा जाता है कि लगभग नौ हजार लोग उनकी शवयात्रा में शामिल थे। उस समय मण्डला मात्र 12 हजार की बस्ती थी। अमर शहीद का शव तिरंगे में लिपटा हुआ था। उनकी कीर्ति को चिरस्थायी बनाने के लिए उद्य चौक पर त्रिकोणाकार लाल लाट (पत्थर) का ‘उदय स्तम्भ बना हैसमीप ही नगर पालिका, मण्डला द्वारा निर्मित ‘उदय प्राथमिक विद्यालय बना है महाराजपुर में उनका समाधि स्थल है।
उपस्थित रहे-
निवास विधायक डॉक्टर अशोक मर्सकोले, जिला कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष राकेश तिवारी, ब्लाक कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष अमित शुक्ला, जनपद उपाध्यक्ष अभिनव चौरसिया, झब्बा सोनी, प्रदेश महासचिव आशीष आशू जैन देवदारा उपसरपंच सैयद मंजूर अली नन्दू भाईजान, एडवोकेट रजनीश रंजन उसराठे, जावेद कुरैशी, कुलदीप कछवाहा, पार्षद हिमांशु हनी बर्वे, शाहरुख खान, राजीव सोनी और सभी कांग्रेसी कार्यकर्ता मौजूद रहे।