जबलपुर दर्पणमध्य प्रदेश

जल भराव वाले खेत में सोयाबीन एवं मक्का फसलें लाभकारी नहीं

कृषकों को जून माह के द्वितीय पखवाड़े हेतु सामायिक सलाह
खरीफ की बुवाई 3 से 5 इंच वर्षा हो जाने के बाद करें

जबलपुर। जवाहरलाल नेहरू कृषि विष्वविद्यालय की संचालक विस्तार सेवाएं डाॅं. (श्रीमति) ओम गुप्ता ने बताया कि कुलपति डाॅं. प्रदीप कुमार बिसेन के मार्गदर्षन में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा एडवाइजरी तैयार की है। जिसे अपनाकर प्रदेष के कृषकगण उन्नत तकनीक के अनुसार कृषि कार्य आरंभ कर सकते हैं।
मृदा एवं जल प्रबंधन- इस समय मृदा जल प्रबंधन हेतु जल निकास की प्रभावी व्यवस्था अवश्य करें, जिन खेतों में जल भराव होता है वहां पर सोयाबीन एवं मक्का दोनों ही फसलें लाभकारी नहीं है।
कृषिक्षेत्र- गन्ने की फसल में मिट्टी चढ़ावें एवं नत्रजन की अंतिम मात्रा की पूर्ति करें। मानसून के पश्चात् गन्ने में नत्रजन की पूर्ति पायरिल्ला कीट के प्रकोप को बढ़ाता है अतः मानसून पश्चात् गन्ने में नत्रजन न देवंे। खरीफ में प्रक्षेत्र की कार्ययोजना बनाते समय सोयाबीन, मक्का, ज्वार, धान के साथ-साथ कोदो, कुटकी आदि फसलों को भूमि के अनुसार समूचित स्थान देवें। सिर्फ सोयाबीन पर या सोयाबीन एवं मक्का पर पूर्ण निर्भरता कृषि के जोखिम को बढ़ाता है। प्रमुख फसल की कम से कम दो प्रजातियों का चयन करें। संकर बीज प्रतिवर्ष नया ही क्रय कर उपयोग करें। विगत वर्ष में संकर बीज से उत्पादित फसल से बीज न लेवें। ऐसा करने पर उत्पादन कम आवेगा। खरीफ की बुवाई 3-5 इंच वर्षा हो जाने के बाद करें। मक्का, ज्वार एवं धान की शुष्क बोनी की जा सकती है परंतु अपर्याप्त नमी की अवस्था में कोई भी बुवाई या बानी ना करें। पोषक तत्वों के प्रबंधन में सोयाबीन फसल में नत्रजन, स्फूर, पोटाश के साथ गंधक और अनाज वाली फसलें मक्का, ज्वार धान में प्रमुख तत्वों के साथ जस्ता का प्रयोग अवश्य करें। पोटाश, गंधक एवं जस्ता कीट एवं व्याधि के प्रकोप को कम करते हैं एवं फसल की गुणवत्ता को बढ़ाते हैं। जैव उर्वरकों में राइजोबियम कल्चर दलहनी फसलों के लिए, अजोटोबेक्टर अनाज वाली फसलों के लिए, पी.एस.बी. कल्चर और के.एस.बी. कल्चर सभी फसलों में प्रयोग कर रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता को 50 प्रतिशत तक कम करें। ये जैव उर्वरक न सिर्फ लागत को कम करते हैं बल्कि भूमि की भौतिक, जैविक एवं रासायनिक दशा को सुधारते हैं। धान की नर्सरी की बुवाई कर दें, श्री पद्धित में उपयुक्त उम्र की पौध प्राप्त करने हेतु रोपणी को अलग-अलग दो तिथियों में एक सप्ताह के अंतराल पर लगावें जिससे कि श्री पद्धति हेतु निर्धारित आयु 10-14 दिन की पौध उपलब्ध हो सकें। 14 दिन से अधिक उम्र की पौध इस पद्धति के लिए उपयुक्त नहीं है।
पौध संरक्षण- खरीफ फसलों को बोने के पूर्व बीजोपचार अनिवार्य रूप से करें। सोयाबीन एवं अन्य दलहन एवं तिलहन हेतु बीजोपचार थायोफिनेट मिथाइल $ पायरोक्लस्ट्रोबिन (झेलोरा या अन्य) 2 मि.ली. $ 8 मि.ली. पानी/कि.ग्रा बीज एवं इमीडाक्लोप्रिड पाॅवडर 2 ग्राम/किलो बीज की दर से उपचारित करें। बीजोपचार क्रमशः सर्वप्रथम कवकनाशी तत्पश्चात् कीटनाशी एवं अंत में जैव उर्वरक से करें। खरीफ की प्रमुख फसल सोयाबीन में बहुतायत से प्रति वर्ष आने वाला जड़ सड़न, तना सड़न रोग के प्रबंधन हेतु बोनी के पूर्व या बोनी करते समय ट्राइकोडर्मा कल्चर 1 ली./एकड़ पर्याप्त नमी की अवस्था में भूमि में मिलावें। नर्सरी में पाद गलन रोग के प्रबंधन हेतु रोपणी लगाते समय बीजों को कतार में बोवें और एक सप्ताह पश्चात् कतार के मध्य गुड़ाई करें। रोग संक्रमण होने पर काॅपरआॅक्सीक्लोराइड 2 ग्राम/लीटर पानी की दर से घोलकर रोपणी में सिंचन करें। मक्का फसल में फाॅल आर्मी वर्म के प्रबंधन हेतु मक्के की शुष्क बोनी करें।

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