अर्जुन द्वारा भगवान काल की वास्तविकता जानने की प्रार्थना

जबलपुर दर्पण। अध्याय 11 के श्लोक 1 से 4 में अर्जुन ने पूछा कि जो आपने नाना प्रकार से अपनी स्थिति बताई है, यह मैं ठीक से नहीं समझ पाया, क्योंकि मेरी बुद्धि तुच्छ है। मैं जो आपको अपना साला मानता था वह मोह भी नष्ट हो गया है, क्योंकि अर्जुन डर गया था कि यह कोई और बला है। इसीलिए अर्जुन ने कहा आपकी महिमा अनन्त है। कृप्या आप वास्तव में क्या हो? आप अपना वास्तविक अविनाशी रूप दिखाने की कृप्या करें।
।। अर्जुन को भगवान (काल) द्वारा दिव्य दृष्टि प्रदान करना तथा अपना वास्तविक काल रूप दिखाना।।
अध्याय 11 के श्लोक 5 से 8 तक में भगवान (काल) कह रहा है कि वह रूप तू (अर्जुन) इन आँखों से नहीं देख सकता। इसलिए तुझे दिव्य दृष्टि देता हूँ। अब देख। यह कहकर काल ब्रह्म ने अपना वास्तविक काल रूप दिखाया तथा बताया कि देख जहाँ-2 जिसका स्थान मेरे शरीर में है। विचार करें:- जैसे प्रत्येक टेलीविजन (टी.वी.) में कार्यक्रम देखें जा सकते हैं, ऐसे ही एक ब्रह्मण्ड का सर्व विवरण प्रत्येक मानव-देव आदि शरीरों में देखा जा सकता है।
।। संजय द्वारा काल रूप का वर्णन।।
अध्याय 11 के श्लोक 9 से 14 में वर्णन है कि संजय द्वारा विश्वरूप (काल रूप) का वर्णन:- कई नेत्रों, कई मुखों वाला तथा शस्त्रों सहित कई हाथों वाला असीम काल (विराट) रूप अर्जुन ने देखा। हजारों सूर्य एक साथ उदय हो जाएँ ऐसे तेजोमय रूप में अर्जुन ने शरीर को देखा। यह सब देखते हुए काल देव से आश्चर्य चकित तथा हर्षित होते हुए बोला।
।। अर्जुन द्वारा काल रूप का आँखों देखा हाल बताना।।
अध्याय 11 के श्लोक 15-30 का सारांश:-
अध्याय 11 के श्लोक 21 में अर्जुन आँखों देखा हाल कह रहा है कि वे ही देवताओं के समूह आपमें भयभीत होकर आपके मुख में प्रवेश कर रहे हैं। कुछ भयभीत हो कर हाथ जोड़े आपके गुणों का उच्चारण (कीर्तन) करते हैं, ऋषियों-सिद्धों का समुदाय कल्याण हो! ऐसा कहकर उत्तम-2 स्त्रोतों द्वारा आपकी स्तुति करते हैं अर्थात् आप अपने उपासको को भी खा रहे हो। अध्याय 11 के श्लोक 15 से 30 तक में अर्जुन कह रहा है कि हे देव! आपके शरीर में सम्पूर्ण देवताओं तथा प्राणियों के समूह को तथा कमल पर ब्रह्मा को तथा सम्पूर्ण ऋषियों को देख रहा हूँ। और आपको कई भुजाओं, पेट, मुख और नेत्रों से युक्त देखता हूँ। परंतु इसका कोई वार-पार नहीं देख रहा हूँ तथा आपके इस भंयकर रूप को देख रहा हूँ।
अन्य आपको हैरान होकर देख रहे हैं तथा व्याकुल हो रहे हैं। मैं (अर्जुन) भी व्याकुल हो रहा हूँ। चूंकि हे विष्णो! आपके भयंकर रूप को देखकर मैं बहुत डर गया हूँ। धीरज व शांति नहीं पा रहा हूँ तथा वे सब धृतराष्ट्र के पुत्र व राजाओं का समुदाय आपमें प्रवेश कर रहा है। कई तो बहुत वेग (स्पीड) से आपके मुख में जा रहे हैं तथा कुछ आपकी दाढ़ो (जाड़ों) द्वारा कुचले जा रहे हैं, कुछ दाँतों में लगे हुए दिखाई दे रहे हैं। और जैसे नदियाँ समुद्र में गिर रही हों ऐसे मनुष्य लोक (पृथ्वी लोक) के वीर (योद्धा) भी आपमें प्रवेश कर रहे हैं। तथा जैसे कीट-पतंग अग्नि पर गिरते हैं ऐसे सब प्राणी (देव- ऋषि-सिद्ध- आम जीव सहित) आपके मुख में प्रवेश कर रहे हैं और आप सम्पूर्ण लोकों (ब्रह्मा-लोक, विष्णु-लोक, शिव-लोक तथा सर्व चैदह लोकों समेत) को खा (ग्रास) रहे हो और बार-2 होंठ चाट रहे हो। आपके शरीर की अग्नि सम्पूर्ण जगत को जला रही है।
अर्जुन पूछता है कि आप वास्तव में कौन हो?।।
अध्याय 11 के श्लोक 31 में अर्जुन पूछता है कि हे उग्ररूप वाले देवश्रेष्ठ! आपको नमस्कार हो। कृप्या मुझे बताईये कि वास्तव में आप कौन हैं? मैं विशेष रूप से जानना चाहता हूँ।
ध्यान रहे कि श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा का विवाह अर्जुन से हुआ था। इस नाते से श्री कृष्ण अर्जुन के साले थे। अर्जुन पूछ रहा है कि आप कौन हो? विचारणीय विषय यह भी है कि क्या व्यक्ति अपने साले से पूछता है कि आप कौन हो? इससे सिद्ध है कि काल ब्रह्म ने विराट रूप दिखाया था। श्री कृष्ण को कुछ समय अन्तध्र्यान कर दिया था। इससे यह भी सिद्ध हुआ कि गीता का ज्ञान काल ने कहा है जो गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में स्वयं कह रहा है कि मैं काल हूँ।