विपत्ति भी वरदान है:राम भक्तो के लिए
पाटन,जबलपुर दर्पण। वेद वंदित ब्रह्म ही राम है जिसे राम चाहिए वह भौतिक संपत्ति नहीं विपत्ति की संपदा चाहता है। भौतिक सुख-सुविधाओं में राम विस्मृत हो सकते हैं परंतु विपत्ति में उनका स्मरण निरंतर बना रहता है राम भक्तों के लिए विपत्ति भी वरदान है।उक्त उद्गार नरसिंह पीठाधीश्वर डॉ नरसिंह दास जी महाराज ने पाटन के श्री राम कथा महोत्सव में व्यक्त किए चित्रकूट से पधारे मानस आलोक राघव किंकर जी ने भरत चरित्र की मीमांसा करते हुए कहां संत भरत की बुद्धि इतनी राम निष्ठ है कि राम को बनवास भेजने की योजना को सफल बनाने वाली सरस्वती भरत की मति बदलने में असमर्थता प्रकट करती है राम मूर्तिमंत धर्म है और धर्म बहुत कठिन परीक्षा लेता है भरत और हरिश्चंद्र जैसे धर्म नष्ट लोग ही निष्ठा की पराकाष्ठा तक जाकर सफल होते हैं और इतिहास में अमर होते हैं। मानस माधुरी रुचि रामायणी जी ने कहा कि परिवार में शांति के साथ आपसी प्रेम के लिए परस्पर त्याग समता और सामंजस्य अति आवश्यक है अयोध्या की माताएं इनकी प्रतिमूर्ति हैं बेटे को वनवास देने वाली केकई के प्रति कौशल्या का व्यवहार और सौत के बेटे राम की सेवा के लिए अपने बेटे लक्ष्मण को वन जाने का आदेश देने वाली सुमित्रा के चरित्र वर्तमान परिवेश मैं शांति सौहार्द का मार्ग प्रशस्त करते हैं।