श्रमजीवी पत्रकार परिषद को समर्पित शब्द सुमन
पत्रकार परिषद हम सबकी, “परमानंद” की जागीर नहीं।
रांझा बन डाेलते “नलिन” केवल उनकी यह हीर नहीं।।
पत्रकारों का “सुदृढ़ संगठन” लड़ता भिड़ता उनके हित।
जो चाहे वो चोंच मारदे, यारों! ऐसी खीर नहीं।।
मेरा, तेरा, इनका, उनका, हम सब जिस पर अधिकार।
उस पत्रकार परिषद को प्यारो, आओ एक हो दो विस्तार।।
बंदी मुटि्ठयों मान्निद, दिखाओ परिषद की ताकत।
फंेक कटोरा दो मांगों का, खुद घुटने टेके सरकार।।
तूर्यनाद हो रहा साथियों, सर से बांध कफन निकलों।
हे उत्साह समुच्च जागो, बिजली से तड़कों मचलों।।
घर-घाटी, पनघट- मरघट तक, तुम कलम का जादू फूंक चलों।
जो गद़्दारी करें राष्ट्र से, उसके कर दो टूक चलों।।
आप कलम के सजग सिपाही, सत्यमेव जयते का सार।
तोप करेगी क्या मुकाबला, पैनी बहुत कलम की धार।।
जामबंत सा जगा रहा शाशि , जागो हनुमत लला सामान।
तुम हो तो मीडिया है सारा, तुम हो तो जिंदा अखबार।।
धुआंधार बरसात लगी हो, कड़क-तड़क गिरती हो गाज।
बर्फीले तूफान सुनामी, ठंड प्रचंड़, ना आती बाज।।
धरा तपे और तपे गगन, बौराये पवन, झुलसाये वदन।
हर हाल मोर्चे सैनिक से, जय हो, जय समाचार सरताज।।
गुंडो, आतंको, पुलिस, प्रशासन, इससे उससे टकरायें।
अपना कर्तव्य निभाने में, हम झोल कहीं भी ना खाये।।
पड़े जरूरत, तो सत्ता का, हिला के रख दे हर पत्ता।
सही खबर लाये निकाल, फिर भले काल आड़े आये।।
युद्ध भूमि में कलम लिए, कैमरे संभाले हम आगे।
नैसर्गिक त्रासदी विकट हो, पत्रकार पहले जागे।।
दर्द किसी का हो, हम फ़र्ज निभाते, उसके हीत लड़ते।
टूटते कहीं आ जाएं नजर, तो दौड़ जोड़ते हैं धागे।।
शासन और जनता के बीच, भूमिका निभाते सेतु सामान।
समस्याओं के समाधान हित, दांव लगा देते हैं जान।।
हर गरीबी की लाठी, पत्रकार हम, गूंगे की आवाज।
आन बान और शान, सदा सर्वोच्च हमारा स्वाभिमान।।
सब कुछ जानू समझो साथी, मात्र वही दोहराया है।
पत्रकारिता से जो पाया, उस पर सहज चढ़ाया है।।
अपयश का जो दाग लगे तो, नहीं मिटाये मिटता है।
यश पर कभी इतराना, यह कहने राशि आया है।।
मोहन शशिपत्रकार, साहित्यकार,सूत्रधार, मिलनसंस्था
मो-9424658919