बचपन की दोस्ती का सफर जारी

जबलपुर दर्पण।मेरा पहला परिचय शरद जैन से 1966 में हुआ था। मैं हरियाणा नूह मंडी गुड़गांव से परिवार सहित 1965 को जबलपुर में बसने आ गया था। 1965 में मैं जनता विद्यालय में पढ़ा था। और फिर 1966 में मैंने अपना एडमिशन हितकारिणी स्कूल में ले लिया था । वहीं मेरा पहला परिचय शरद से हुआ था। सम स्वभाव होने के कारण हम दोनों जल्दी घुल मिल गए। उस दिन से शरद मेरा अच्छा मित्र बन गया और जो आज तक भी है। शरद ने बताया कि वह बड़े फुहारे पर अपने मामा के घर में रहता है। वैसे वह बालाघाट का रहने वाला है, परंतु कुछ कारणवश वह अपने मामा के घर में रहता है। 1968 में हम दोनों हायर सेकेंडरी ग्यारहवीं में प्रथम श्रेणी उत्तीर्ण हुए। फिर हम दोनों ने ही एक ही विद्यालय कृषि अभियांत्रिकी महाविद्यालय में प्रवेश ले लिया। 1973 में बीटेक की डिग्री भी मिल गई। 1973 में हम दोनों को इसी कालेज में नौकरी भी लग गई। थोड़े पैसे जेब खर्च के लिए बचाकर शरद बाकी पैसे अपने मामा को और अपने छोटे भाइयों को देने लगा। जब कॉलेज में पढ़ते थे तो हम दोनों को अधिक सदस्य के परिवार में होने कारण जेब खर्च बढ़ा सीमित मिलता था। पैसे का महत्व हम दोनों को मालूम था इसलिए सोच समझकर पैसा खर्च करने लगे। शरद की शादी मेरे बाद हुई। जब बारात होशंगाबाद में गई तो मैं बारात के साथ नहीं जा पाया क्योंकि मेरा छोटा बेटा मेडिकल में एडमिट था। लेकिन हमारा प्यार इतना अधिक था कि मैं रात को जैसे-तैसे होशंगाबाद पहुंचा। शरद बहुत खुश हुआ। अब शरद ने मामा का घर छोड़कर अलग घर किराए पर ले लिया था। समय रहते शरद की तीन बेटे हुए। अब धीरे-धीरे अभाव की जिंदगी भी कम होने लगी। शरद ने अपने तीनों बच्चों को बहुत अच्छे स्कूल में शिक्षा दी। बच्चे होनहार थे इसलिए तीनों अच्छी अच्छी नौकरी भी पा गए। शरद जिस किराए के मकान में रहते थे वह मकान भी क्रय कर लिया। बहुत ही भावुक और संवेदनशील है शरद। किसी को दुखी या बीमार देखता है तो द्रवित हो जाता है शरद। शरद ने अपने क्षेत्र के रहवासियों में पांच मित्र ऐसे बनाए जो उसे सर्वाधिक प्रिय रहे । मल्लू मट्टू सुरेंद्र विनोद और टमाटो । इन पांचों से शरद का सगे भाइयों से भी बढ़कर प्यार रहा, जो अभीतक है। कभी शरद से मिलने उसके घर जाते थे तो पता लगता था शरद मल्लू के साथ नागपुर गया है, शरद सुरेंद्र के साथ डॉक्टर के पास गया है, शरद विनोद के घर गया है, आदि। स्वयं से खर्च करने में भी शरद ने कभी भी कोताही नहीं बरती। शरद का बड़ा बेटा यूएसए में कार्यरत है और अपनी पत्नी के साथ वहीं रह रहा है। शरद ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह अमेरिका जाएगा, लेकिन वह अपने बेटे के साथ वहां कई महीने गुजार कर आया है। पत्नी उषा का भी शरद बहुत ख्याल रखता है और उसे बहुत खुश रखता है। कभी जब भी बीमार पड़ती है तो शरद की सेवा सुश्रुवा देखने लायक होती है। मन का पूरा साफ है शरद। किसी के प्रति कोई बैरभाव नहीं कोई छल नहीं। शरद का कॉलेज में सेवारत रहने पर और सेवानिवृत्ति होने पर भी आज तक उसका व्यवहार सबसे बहुत अच्छा रहा है। शहर में कुछ सामान क्रय करना हो या घर गृहस्थी संबंधित कोई सलाह मशवरा लेना हो तो आज भी लोग शरद के पास अवश्य आते हैं। शरद उन्हें अपना पूरा समय देता है और उचित सलाह भी देता है। हर किसी को प्रसन्न रखने का स्वभाव ही है शरद का। शरद नित कभी दो बार कभी तीन बार मंदिर जाता है। महावीर में शरद की गहरी आस्था है। जबलपुर प्रवास के दौरान आचार्य श्री मुनिश्रेष्ठ विद्यासागर जी के दर्शन करना अपना सौभाग्य समझता हैं। सरलचित सहजचित सुचित निश्छलचित और प्रसन्नचित शरद की संगति पाकर मैं सदैव अपने आप को धन्य मानता हूं। हमेशा की तरह शाम को कॉलोनी के गार्डन में अनिल शुक्ला, पत्रकार, जबलपुर दर्पण के साथ बैठकर चर्चा कर रहा था कि अचानक बचपन की यादों में खो गया, वो भी अपने बचपन के अभिन्न मित्र शरद में, उनकी जीवनशैली,बताते हुए भाव विह्वल और गर्वित भी हो गया । पूरा वृत्तात सुनकर अनिल शुक्ला कह बैठे, सर ! यह मित्रता का प्रसंग बहुत ही प्रेरक है। इसे समाज के अन्य लोगों को भी बताना चाहिए ताकि लोग अनुसरण कर सके, समाज के लोगो तक पहुंचाने के लिए समाचार पत्र बहुत ही सशक्त माध्य्म है।