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सिलबट्टे बनाने वाले कारीगरों पर रोजी-रोटी का संकट

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आधुनिक तकनीक के विकसित होने से छिना कमाई का जरिया

जबलपुर। आधुनिकता की दौड़ में समय के साथ सब कुछ बदल रहा है। एक समय था जब हर क्षेत्र में कार्य करने के लिए कारीगर व मजदूरों की आवश्यकता होती थी। लेकिन नई तकनीक व मशीनों के आ जाने से लोग आगे बढ़ रहें हैं एवं विकसित होते जा रहे हैं। नई तकनीक का प्रयोग कर अपना काम आसान करते जा रहे हैं यह नई तकनीक एक तरफ फायदेमंद साबित हो रही है, तो वहीं दूसरी तरफ इस नई तकनीक के कुछ दुष्परिणाम भी देखें जा रहे हैं। नई आधुनिक मशीनों की विकसित हो जाने से लोगों के रोजगार भी छिन गए हैं। एक वक्त था जब लोग मसाला पीसने के लिए सिलबट्टे का प्रयोग करते थे लेकिन आजकल लोग मसाला पीसने के लिए मिक्सी ग्राइंडर का प्रयोग कर रहे हैं।

पहले समय के लोग पत्थर की चक्की से अनाजों को पीसा करते थे, मसाला पीसने व कूटने के लिए सिलबट्टे और लोढ़ा, पत्थर के बट्टे का इस्तेमाल करते थे इनका इस्तेमाल तो आज भी किया जाता है लेकिन कम ही हो रहा है। क्योंकि अब आधुनिक समय में इनकी जगह अब मिक्सी मिक्सर ग्राइंडर जैसे उपकरणों ने ले ली है। इन नए उपकरणों के अविष्कार से सिलबट्टे व पत्थर की चक्की बनाने वाले कारीगरों का रोजगार भी समाप्त कर दिया है। इनको बेरोजगारी और रोजी-रोटी का संकट पैदा कर दिया है।
कुछ वर्षों पहले हर घर में सिलबट्टे पत्थर की चक्की हुआ करती थी लेकिन नये जमाने की तकनीक के आ जाने से वर्तमान में सभी घरों में सिलबट्टे, पत्थर की चक्की गायब हो गई है । ये कारीगर कई पीढियों से बना रहे हैं यह इनका पुश्तैनी धंधा भी है यही उनकी अपनी आजीविका का साधन हैं, इसी से अपना गुजर बसर करते हैं,लेकिन आज इसी काम में उन्हें बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी कमाने में संघर्ष करना पड़ रहा है। इनके द्वारा निर्मित वस्तुओं को खरीदार गांव देहात इलाके के लोग ही खरीदते हैं। शहरों में तो इनके खरीददार गिने-चुने लोग ही मिलते हैं। ये कारीगर अपने हाथों से सिलबट्टे ,पत्थरों की चक्की , जांता और अन्य घरेलू सामान का निर्माण भी करते हैं। और उनकी प्रतिदिन चार सौ पांच सौ रुपए की आमदनी हो जाती है।अभी ये शहर के मेडिकल अस्पताल के पास सड़क किनारे निवास करते हैं और वहीं पर बैठ कर कारोबार चला रहे हैं।शिल्पकार सांवरिया ने बताया कि हमारा यह पुश्तैनी धंधा है हमारे पूर्वज भी सिलबट्टा ,लोढ़ा , पत्थर की चक्की आदि बनाते थे और बेचा करते थे लेकिन आज के समय में सिलबट्टे जांता, लोढ़ा और पत्थर से पीसने चक्की का उपयोग दिन प्रतिदिन काम हो गया है बिक्री में भी काफी गिरावट आई है परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। उन्होंने बताया कि तीस चालीस साल पहले हमारे पूर्वज आगरा से जबलपुर में कारोबार करने आये थे,तभी से हम जबलपुर में ही निवासरत है।सिलबट्टा पत्थर की चक्की और पत्थर से बनी अन्य घरेलू सामान की बिक्री कम होने से कारोबार कम हो गया है जिससे रोजी-रोटी और रोजगार पर खासा असर पड़ा है। हमारे बच्चे भी रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों और जिलों में पलायन करने मजबूर हो गए हैं। सरकार हमें पत्थरों से बनी वस्तुओं का प्रदर्शन करने मेला का आयोजन किया जाए तो हमारे उत्पादों को लोग अधिक खरीदेंगे और हमारी आर्थिक स्थिति भी ठीक हो जाएगी। ऐंसा प्रयास सरकार को करना चाहिए । शिल्पकारों ने बताया कि यह पत्थर बनारस और कटनी जिले से खरीद कर लाते हैं।शिल्पकार मंजू बाई का कहना है कि सिलबट्टा ,जांता पत्थर की चक्की जैसी पत्थर से बनी घरेलू सामान वाली वस्तुएं को लोग पहले खूब खरीदते थे, इसका उपयोग मसाला पीसने के अलावा चटनी,काजू , मसाला आदि को कूटा पीसा करते थे लेकिन धीरे धीरे इनका स्थान मिक्सी, मिक्सर ग्राइंडर ने लिया है। बाजार से सड़क से गुजरने वाले लोग यहां रुक कर हमारी वस्तुओं को खरीदते थे। सैकड़ो सिलबट्टे बिक जाते थे बाजार में भी काफी रौनक हुआ करती थी। हमारी कलात्मकता को हर कोई आकर्षित होता था और हम कारीगर पूरी तन्मयता ,लगन और मेहनत के साथ इनको बनाते थे, लेकिन अब इनके खरीददार भी बहुत कम हो गए हैं । सिलबट्टे की मांग भी काम हो गई है यही वजह है कि बाजार की रौनक अब दूर हो गई है।

शिल्पकार सूरज ने बताया कि मढई मेले के में पत्थरों से बनी हमारी वस्तुओं को मसाला पीसने में उपयोग होने वाले लोढ़ा ,सिलबट्टे का व्यापार पहले बहुत अच्छा हो जाता था ग्राहक भी इसको खरीदने बहुत आते थे, लोग बहुत पसंद करते थे परंतु आधुनिक नए जमाने में यह मिक्सी जैसे उपकरणों ने हमारा रोजगार ही छीन लिया है। यह मेला नर्मदा नदी के बरमानघाट में प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर्व पर तीन दिन आयोजित होता है और यह परंपरागत मेला नदी तालाबों के पास और बाजारों में लगते हैं। उनसे हमारा व्यापार कुछ बढ़ जाता है और अच्छी आमदनी हो जाती है। लेकिन यह आमदनी प्रतिदिन नहीं होती। कभी कभार मढ़ई मेले के बाजार में ही हमारे व्यापार को थोड़ी बढ़त मिलती है जिससे आमदनी में वृद्धि हो पाती है।

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