गावों में नहीं मिल रहा रोजगार, मवेशियों के साथ गांव छोड़ने से सूने होने लगे गांव
तेन्दूखेड़ा जनपद पंचायत के अनेक क्षेत्र में रोजगार के अभाव में पलायन कर रहे ग्रामीण
तेन्दूखेड़ा। बुंदेलखंड का पलायन खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है मध्यप्रदेश में शासन-सत्ता तो बदल गई लेकिन हालात अब भी ज्यों के त्यों है खेती में अलग-अलग कारणों से नुकसान होने और पानी की समस्याओं एवं गांव में रोजगार नहीं मिलने के कारण अब ग्रामीण रोजी रोटी की तलाश में अपना गांव-घर तथा खेत खलिहान छोड़कर शहरों की पलायन कर चुके हैं
आपको बता दें दमोह जिले के तेन्दूखेड़ा जनपद पंचायत के अंतर्गत आने वाले पहाड़ी क्षेत्र की ग्राम पंचायतों के लोग पानी और रोजगार के कारण अपने मवेशियों सहित जबलपुर जिले एवं अन्य शहरों में पलायन कर चुके हैं पलायन भी ऐसा कि गांव के सभी घरों में ताला ही पड़ा देखा जा सकता है तस्वीरे भी बहुत कुछ बयां करती है ग्राम पंचायत सहजपुर के पाड़ाझिर गांव का यह मामला है जहां से करीब 400 की आबादी होना बताई जाती है वर्तमान समय में इस गांव में महज तीन से चार परिवार बजे हैं शेष सभी गांव से पलायन कर चुके हैं बताया जाता है कि यहां ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि स्थिति इनती विकराल हो गई है इससे पहले भी गर्मी के समय में ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले गांव के लोग जलसंकट के चलते गांव छोड़कर जा चुके हैं यहां जलसंकट सबसे बड़ी परेशानी है यही कारण होता है कि गर्मी में ताला या पत्थर की खकरी दरवाजे पर लगाकर ग्रामीण गांव छोड़कर चले जाते हैं अब गांव में इक्का -दुक्का परिवार नजर आते हैं सहजपुर के लोग बताते हैं कि गर्मी में जो हैडपंप व जलस्रोत है वह पानी देना बंद कर देते हैं इसकी वजह से उन्हें काफी लंबी दूरी से पानी लाना पड़ता है ऐसे में गांव के अनेक लोग पलायन करना ही उचित समझते है
*बुजुर्ग रहते हैं घरों में युवा वर्ग जाते हैं बाहर*
ग्राम पंचायत सहजपुर के ग्राम पाड़ाझिर में जहां पूरी गांव पलायन करने के लिए जा चुका है वहीं दूसरी ग्रामीण इलाकों में रोजगार की गारंटी देने के लिए प्रारंभ की गई महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना में अब रोजगार मिलने की कोई गारंटी नहीं बची हुई है जिसके चलते गांव से शहर की ओर जाने की संस्कृति युवावर्ग में बढ़ गई है बड़े शहरों की ओर जाने वाले अधिकतर युवा वर्ग ही अब दिखाई दे रहे हैं जिनमें युवतियों की संख्या भी हैं गांव के बुजुर्ग जहां घर की देखभाल करते हैं वहीं ये लोग अपने घर से बाहर दूसरे नगरों में जाकर पैसा कमाकर लाते हैं और रहन सहन और पहनावा भी अब इनका बदलता जा रहा है ऐसा लगता है कि गांव के युवाओं को गांव से बाहर जाकर काम करने की रुचि बढ़ गई है जिसके चलते वे बाहर अपने गांव से निकल रहे हैं अब ये होली त्यौहार के वक्त ही गांव वापस लौटेंगे
*पंडा बाबा की झिरिया बनती है प्राण दायिनी*
ग्राम पंचायत सहजपुर से 3 से 4 किलोमीटर दूर स्थित है सिद्ध बाबा पंडों की झिरिया इस क्षेत्र के लोगों को 12माह पानी देती है यहां से 24घंटे आसपास के लोग साइकल पर बर्तन कुप्पा लादकर पानी भरते हैं इसके अलावा आसपास के10 किलोमीटर के ग्राम के लोग पानी भरते हैं अनेक बार प्रशासन से ग्राम वासियों ने पानी की व्यवस्था की मांग की है लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो सकी
*पंचायतों में नहीं मिल रहा रोजगार मशीनों से करवाया जाता है कार्य*
क्षेत्र में मनरेगा असमय भुगतान व हर समय काम नहीं मिलने के चलते ग्रामीण पलायन करने को मजबूर है यहां कृषि मजदूरी पर आश्रित ज्यादातर गरीब वर्ग के लोग खेती का काम समाप्त होने के बाद खाली हो जाते हैं ऐसे में काम के अभाव में वे पलायन करने के मजबूर हो जाते हैं वैसे तो तेन्दूखेड़ा जनपद पंचायत में आने वाली सभी पंचायतों में पलायन त्योहार के बाद बड़े पैमाने पर होता है मगर छिटपुट पलायन साल भर चलता है काम के अभाव में भी ग्रामीण पलायन करते हैं
*पलायन करने वालों को बाहर मिलते हैं ज्यादा पैसे*
अपने गांव से शहर की ओर पलायन कर रहे ग्रामीणों ने बताया कि गांव में काम करने पर मजदूरी अधिक नहीं मिलती वहीं मनरेगा के तहत काम करने पर भी तत्काल राशि न मिलने से काम का कोई मतलब नहीं रह जाता इसलिए दूसरे राज्यों में जाकर काम करते हैं तो नगद राशि एक साथ मिल जाती है कई दिनों तक काम करने से एक बड़ी राशि हमारे पास जमा हो जाती है जिसका हम उपयोग कर लेते हैं गांव में काम करने पर कठिन मेहनत के बाद 100 से 200 रुपए तक अधिकतम मिल पाते हैं लेकिन दूसरे राज्यों में जाकर काम करने से 300 से 450 रुपए तक मेहनताना मिलता है वहीं जहां काम करते हैं वहां रुकने का ठिकाना भी मिल जाता है
*तेंदूपत्ता से होता है जीवन बसरः*
ग्राम पंचायत सहजपुर पाड़ाझिर27 मील पानी की समस्या के साथ ही जीवन बसर की चिंता भी परिवारों में रहती है हालांकि अप्रैल और मई में तेंदूपत्ता आ जाते हैं जिसे तोड़कर परिवार का पालन पोषण हो जाता है
*रोजगार गारंटी में नहीं बची रोजगार की गारंटी*
विकासखंड तेन्दूखेड़ा की 63 ग्राम पंचायत क्षेत्र से प्रतिदिन बड़ी संख्या में ग्रामीण रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं ग्रामीण इलाकों में रोजगार की गारंटी देने के लिए प्रारंभ की गई महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना में अब रोजगार मिलने की कोई गारंटी नहीं बची है अनेक ग्राम पंचायतों में रोजगार सरपंच सचिव और सहायकों एवं उपयंत्री की मिलीभगत से खुलेआम मशीनों से काम कराया जा रहा है जबकि फर्जी मस्टर जारी कर लाखों के वारे न्यारे किए जा रहे है तेन्दूखेड़ा में पदस्थ अधिकारियों की विफलता और सकारात्मक द्दष्टिकोण के अभाव में ग्रामीणों को उनके गांव में ही रोजगार उपलब्ध नहीं हो पा रहा है यदि किसी शासकीय निर्माण कार्य में मजदूरी का काम मिल भी गया तो मजदूरी भुगतान के लिए हफ्तों और महीनों का इंतजार करना पड़ता है किसी अन्य द्वारा बताया गया है कि मजदूरों को परेशान करने तथा कम लागत पर काय कराने के लिए कुछ दिनों तक मजदूरों से दिखावटी तौर पर काम कराया जाता है उन मजदूरों को भुगतान के लिए भटकाया जाता है जिसके बाद मजदूर निर्माण कार्यों से तौबा कर लेते हैं जिसके बाद मजदूर नहीं मिलने जैसे बहाने बताकर मशीनों से काम करा लिया जाता है और फर्जी हाजिरी के जरिए क्योस्क सेंटर संचालकों को ले-देकर फर्जी राशि निकाल लिया जाता है किन्तु तेन्दूखेड़ा क्षेत्र के तकनीकी अमले और अधिकारियों की मिलीभगत के चलते ग्राम पंचायत क्षेत्र के अधिकांश शासकीय निर्माण कार्य ठेकेदारों के हवाले कर दिए जाते हैं जो या तो बाहर से मजदूर लाकर काम करा लेते हैं या मशीनों के जरिये काम करा रहे हैं तेन्दूखेड़ा क्षेत्र में रोजगार गारंटी योजना में रोजगार की कोई गारंटी नहीं बचने के बाद भारी संख्या में रोजगार की तलाश में ग्रामीण परिवार सहित पलायन कर रहे हैं इस पलायन रोकने तेन्दूखेड़ा में पदस्थ जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा कोई कार्ययोजना तैयार नहीं किया जा रही है