नरसिंपुर जिले में नदियों ने लिया बिकराल रूप
नरसिंपुर। मध्य प्रदेश में हाल ही हुई तेज बारिश ने बाढ़ की स्थिति को विकराल बना दिया। नर्मदा पर बने बरगी बांध, तवा नदी पर बने तवा बांध व बारना नदी पर बने बारना बांध के गेट खोलने से कई गांव जलमग्न हो गए । कुछ जान-माल की हानि भी हुई । निचली बस्तियों के लोगों को अपने घरों से हटाकर राहत शिविरों में रखा गया । हरे-भरे खेत पानी में डूब गए । नेताओं ने हवाई दौरा कर बाढ़ क्षेत्रों का जायजा लिया । होशंगाबाद जिले में पिछले दिनों से हो लगातार बारिश से नदी-नालों का जलस्तर बढ़ गया । नर्मदा खतरे के निशान से ऊपर थी । पलकमती, मछवासा, दुधी, ओल आदि नदियां पूरे उफान पर रहीं । नरसिंहपुर की शक्कर, सींगरी, बारू रेवा, शेढ़ आदि में भी बाढ़ आ गई । साथ ही नरसिंहपुर जिले में में नर्मदा नदी काफी प्रख्यात है वही बात करें नदियों की तो जिसमे नरसिंहपुर जिले की गाडरवारा तहसील में छिंदवाड़ा से आने वाली शक्कर नदी व सीता रेवा नदी जो कि चीचली होते हुए गाडरवारा में सीता रेवा व शक्कर नदी का पतलोंन व केंकरा गांव के बीच संगम होता है यह दोनों नदियां उफान पर रही वही गाडरवारा शहर के निचले स्तरों व वार्डों में पानी भरा गया जिससे गाडरवारा शहर वाशियों का जन जीवन अस्त व्यस्त हो गया वही रेस्क्यू टीम द्वारा भी बाढ़ में फंसे लोगों को रेस्क्यू कर निकाला गया ।इसी प्रकार हरदा जिले में गंजाल और कालीमाचक और अजनाल समेत 9 नदियां हैं । ये नदियां नर्मदा में आकर मिलती हैं । हरदा जिले में 21 से 24 अगस्त के बीच बाढ़ की स्थिति गंभीर हो गई । हरदा के ऊपर बरगी, तवा और बारना बांध हैं, इन तीनों के गेट खोल दिए और नीचे इंदिरा सागर बांध है । इंदिरा सागर के बैकवाटर व ऊपर के तीनों बांधों के पानी से बाढ़ आ गई और कई गांव पानी में जलमग्न हो गए । कई लोग राहत शिविरों में रहे। सैकड़ों एकड़ की फसल बर्बाद हो गई। इस बीच खबर है इंदिरा सागर और सरदार सरोवर बांध के आसपास के कई गांव बाढ़ की चपेट में आ गए हैं। अक्सर जब आखिर बाढ़ आती है तब हम जागते हैं। इसे प्राकृतिक आपदा मानकर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं। लेकिन क्या यह बाढ़ इसी साल आई है? यह तो प्रायः हर साल आती है। लेकिन जब बाढ़ आती है तभी हम जागते हैं। अखबार- टीवी चैनल बाढ़ग्रस्त इलाकों में पहुंच जाते हैं और सीधे लाइव खबरें दिखाते हैं। उत्तराखंड में आई भयानक बाढ़ में हद ही हो गई जब एक टीवी पत्रकार एक बाढ़ पीड़ित के कंधे पर बैठकर शॉट ले रहा था। इस इलाके की ज्यादातर नदियां दक्षिण से सतपुड़ा पहाड़ से निकलती हैं और नर्मदा में आकर मिलती हैं। सतपुड़ा यानी सात पुड़ा। सतपुड़ा की घाटी अमरकंटक से शुरू होकर पश्चिमी घाट तक जाती है। इससे कई नदियां निकलती हैं जिनके नाम मोहते तो हैं और वे उनकी महिमा बखान भी करते हैं।
आसपास के सटे गांव भी हुए प्रभावित ।
इन दिनों देश के विभिन्न हिस्सों में हो रही बारिश के कारण आम-जनजीवन काफी अस्त व्यस्त हो रहा है। नरसिंहपुर के गाडरवारा के आसपास के गांव में भी कुछ ऐसा ही हाल रहा । यहां बारिश के बाद सीता रेवा नदी व शक्कर नदी व नर्मदाओं के जल स्तर में वृद्धि के कारण क्षेत्र में गंभीर जल-जमाव का लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर काफी असर पड़ रहा है। बाढ़ के पानी ने न केवल खेतों में फसलों को नुकसान पहुंचाया, बल्कि स्थानीय लोगों के घरों में भी पानी भर गया है। इस वजह से, वे अपने घरों के बाहर या अपनी छतों पर रहने को मजबूर हैं । गाडरवारा से सटे गांव जैंसे चीचली , कल्याणपुर , मनकवारा , कुड़ारी , बरहटा , बरेली , केंकरा , पतलोंन , साँगई , बगदरा ,पलोहा , बोदरी , शोकलपुर , रायपुर व जिले के अन्य गांव भी इससे प्रभावित हुए है कई गांव में लोगों को रेस्क्यू टीम द्वारा रेस्क्यू कर सुरक्षित स्थान पर पहुचाया गया। नदियों के आसपास गाँव शहरों में डूब क्षेत्र में घर के घर हुए जलमग्न ग्राम बगदरा में गौशाला हुई जलमग्न उसमें फंसे 250 से ज्यादा गौवंश रेस्क्यू जारी कुडारी सहित अनेक गांव के गांव हुए खाली रहवासी इलाको की कई कॉलोनियों में भरा पानी कालोनाजरो व प्रशासन पर सवालिया निशान जिले के अनेक पुल डूबे यातायात बाधित रेस्क्यू टीम लगातार फँसे लोगो को निकाला गया।
किसानों की फसलें हुई बर्बाद , बाढ़ में बही फसलें गमजदा हुए किसान ।
नरसिंहपुर जिला कृषि प्रधान जिला रहा है बाढ़ में फसलों की हुई व्यापक बर्बादी से पूरे नरसिंहपुर जिले के किसान कराह रहे हैं । इस वर्ष किसानों पर आपदा की मार पड़ी है । बाढ़ की विभीषिका ने किसानों को आंसू बहाने को विवश कर दिया है । लगभग हजारों एकड़ में लगी धान, गन्ना , सोयाबीनव , अरहर व अन्य फसल पहाड़ी नदी में आई बाढ़ का पानी अपने साथ बहा ले गई । खेत-खलिहान में लहलहाती फसल के जगह पानी लबालब भरा है , लेकिन सबसे अधिक पीड़ा बटाईदार किसानों को हो रही है । क्योंकि उन्होंने जमा पूंजी लगाकर खेती की थी जो बर्बाद हो गई है किंतु सरकार द्वारा जो क्षतिपूर्ति राशि दी जाएगी वह जिसके नाम जमीन है, उन्हें दी जाएगी । बटाईदार किसान जमींदार की जमीन पर खेती कर पसीना बहाते हैं ¨कतु मुआवजा जमींदार के खाते में दिया जाता है। बिना जमीन के किसान कहलाने वाले किसानों को न तो सरकारी मुआवजा की आस है न ही आगे खेती करने की हिम्मत है । फसल लगाने के लिए महाजन से लिए गए कर्ज भी अब उसका पीछा करने लगा है । अब तो किसानों के सामने मेहनत मजदूरी कर जीवन-यापन करने की मजबूरी उत्पन्न हो गई है । बाढ़ के पानी में अपनी बर्बादी का मंजर देखकर आंसू बहाना है । वही छोटे किसान सबसे ज्यादा प्रभावित हुए है पहले से ही कोरोना की मार झेल रहा देश का अन्नदाता अब बचा कुचा बाढ़ ने उसे बर्बाद कर दिया अब देखना यह है कि देश का अन्नदाता कहा जाने वाला किसान अपनी रोजी रोटी व अपने बच्चों की गुजर के लिए क्या करने पर मजबूर होता है या शासन से कोई राहत प्राप्त होती है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा ।
बाजारों में भरा पानी , दुकाने भी हुई जलमग्न ।
गाडरवारा के झंडा चौक व अन्य स्थानों की दुकानों में बीते रात से ही पानी भरना प्रारम्भ हो गया था जिससे दुकानदार अपनी दुकानों का सामान भी ठीक से नही समेत पाए और देखते ही देखते दुकाने जलमग्न हो गई । इस सीजन की पहली बारिश में ही नगर में जहां-तहां पानी भर गया। शुक्रवार शाम हुई तेज बारिश का पानी नगर की जल निकासी के मुख्य साधन लड़ैया नाले से बराबर न निकल सका और नगर के निचले हिस्सों में जहां तहां भर गया। शिवालय चौक क्षेत्र में सडक़ पर दो से तीन फीट तक पानी बह रहा था। और झंडा चौक पर भी बीच सडक़ पर एक से दो फीट तक पानी बह रहा था। पुराने बस स्टेंड क्षेत्र की भी यही स्थिति थी। इन क्षेत्रों में कई दुकानों में पानी भर गया। पूरा नाला लबालब होकर बह रहा था। और ओवरफ्लो होने से पानी सडक़ों से बह निकला। नगर की अनेकों कालोनियों में भी नालियों से बराबर निकासी न होने के कारण न सिर्फ पानी सडक़ों के रास्ते बहा वरन कई जगह लोगों के घरों में भी भर गया। नाले का लगातार बढाया जा रहा कैचमेंट इस लड़ैया नाले में शहर के उन हिस्सों का पानी भी डाला जा रहा है जहां का पानी पहले नाले में नहीं आता था। एक ओर जहां नाले का कैचमेंट बढ़ा दिया गया है वहीं दूसरी ओर नाले की क्षमता बढ़ाने का कोई प्रयास नहीं हुआ है। बिना प्लानिंग के जल निकासी के मनमाने कार्य नगरवासियों के लिये मुसीबत का सबब बन रहे हैं। पुराने बस स्टेंड पर विस्तारित पुलिया तक नाली निर्माण न किया जाना भी इसी का उदाहरण है। इस विषय को लेकर लगातार अखबारों और मीडिया ने इस मुद्दे को प्रमुखता से कई बार उठाया परंतु नगरपालिका प्रशासन उदासीन रहा जिसके कारण उस क्षेत्र के लोगों को जल भराव का अतिरिक्त खामियाजा उठाना पड़ा।
नगर पालिका गाडरवारा के वादों की खुली पोल ।
गाडरवारा शहर के नालों की उचित सफार्ई न होने के कारण जल निकासी का साधन लड़ैया नाला पुराने बस स्टेंड से शुरू होकर शहर के मध्य से होते हुए नये बस स्टेंड से होते हुए शक्कर नदी में जाकर मिलता है। यह नाला नये बस स्टेंड तक तो पक्का बना हुआ है पर उसके बाद कच्चा है । नगरपालिका द्वारा इतने वर्षों में इसे पूरा पक्का करने का कभी प्रयास ही नहीं हुआ । कच्चे नाले को बारिश के पहले हर वर्ष नगर पालिका द्वारा साफ कराया जाता है । पर लगता है इस कोरोना काल में नाले की सफाई उचित तरीके से नहीं हुई जिसके चलते पानी का उचित निकास वहां से नहीं हो सका । और नाले में पानी के बहाव की स्पीड कम हो जाने से पानी ठिल कर शहर के विभिन्न क्षेत्रों में भर गया । नाले के बहाव में कमी होने से नालियों से भी पानी की नाले तक निकासी भी ठिल गई । जिसका खामियाजा नगर के लोगों को उठाना पड़ा। जल निकासी हेतु नगरपालिका पशासन को तुरंत ही तात्कालिक उपाय करने चाहिये जिसमें कच्चे नाले की व पूरे नाला क्षेत्र की तरीके से सफाई तुरंत आवश्यक है। पुराने बस स्टेंड पर पुलिया का कैचमेंट सही किया जाए साथ ही लंबे समय के उपाय भी आवश्यक हैं। नाले से सही निकासी हो सके इसके लिये आवश्यक है कि नये बस स्टेंड से शक्कर नदी तक नाले को उचित ग्रेडियेंट के साथ पक्का किया जाए। साथ ही नाले की केपेसिटी बढ़ाये बिना उसका कैचमेंट एरिया न बढ़ाया जाये। इस हेतु कोई और क्षेत्र की नालियों को इस नाले से जोड़ा जाना घातक होगा।
आंधी-बारिश में बिजली व्यवस्था हुई छिन्न-भिन्न।
वही शुक्रवार की शाम से ही शहर में तेज हवा के साथ जोरदार बारिश हुई । जिसके चलते शाम को ही शहर की बिजली गोल हो गई। लाइन में आये फाल्ट सुधारते सुधारते देर रात ही बिजली वापिस आ पाई। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि बारिश के पूर्व विधिवत बिजली लाइन बंद करके विद्युत विभाग द्वारा लाइनों का मेन्टेनेस किया गया था। परंतु सीजन की पहली बारिश में ही लाइनों की सारी व्यवस्था छिन्न भिन्न हो गई। आलम यह है कि जरा सी हवा या बारिश होने पर लाइन में कहीं न कहीं फाल्ट आ जाता है। उसे सुधारने में लंबा समय लगता है और आमजन परेशान होता रहता है।