संपादकीय/लेख/आलेखसाहित्य दर्पण

महंगाई ऋतु

यह तक कि सरकार गिर जाए इतनी ताकत रखती हैं महंगा ऋतु।
ये वो ऋतु हैं जो हर युग को दुःख ग्रस्त रखती हैं।
खास कर करोना के बाद तो खूब महंगाई बढ़ी हैं,सभी उद्योग जो काफी समय तक लोकडाउन में बंद रहे और बाद में कम मांग की वजह से घाटा कर रहे थे जो आज अपनी कंपनी को मुनाफे में लाने के लिए किमते बढ़ा दी हैं तो महंगा तो लगेगा ही।
पहले मजदूर भी सस्ते में काम करते थे और आज तीन से चार गुनी मजदूरी देते है हम।आज जितने पेंशन मिलती हैं उतनी तो तनख्वाह भी नहीं मिलती थी उस जमाने में,तो कैसे कहें कि महंगाई बढ़ रही हैं।आज पेट्रोल के भाव भी बढ़े हुए हैं किंतु उस जमाने में पेट्रोल के भाव का पता आम आदमी को था ही नहीं,क्योंकि गाड़ियां गिनती की थी और उन्ही को भाव का पता होता था, न ही पेट्रोल की मांग थी उतनी और न ही कीमत ज्यादा होती थी।आज एक सामान्य आदमी भी कोई न कोई वाहन चलाता हैं,चाहे चार चक्री या द्वि चक्री ,जब आप कोई भी चीज की मांग बढ़ा रहे हो तो उसकी कीमत कैसे नही बढ़ेगी यह तो कोई अर्थशास्त्री ही बता पाएं शायद।अगर महंगाई बढ़ानी नहीं हैं तो उद्योगपतियों या सरकारों को दोष देने की बजाय अपनी जरूरतों को कम करे,उनका उपयोग करें व्यय न करें ,तब जाके आपको सही कीमत पर समान उपलब्ध हो सकता हैं।
सभी ऋतु आयेगी जायेगी किंतु महंगाई ऋतु को तो खुद ही त्याग करके भेज सकते हैं।सरफे से उपयोग करने से व्यय नहीं या कम करना सीखना पड़ेगा।अगर हम कुदरती संसाधनों का भी उपयोग सोच समझ कर नहीं करेंगे तब उनके खत्म होने का खतरा बढ़ जायेगा तो देश ही नहीं दुनियां के लोगो में जागरूकता आना जरूरी हैं,एक ग्लोबल जागरूकता लाने के लिए कुछ तो कदम उठाने ही पडेंगे।प्रकृति की रक्षा भी करनी पड़ेगी वरना कुछ चीजे तो पैसे देते हुए भी उपलब्ध नहीं होगी।तो एक ही बात हैं महंगाई को वश में रखना है तो एक आयोजन पूर्वक जीवन शैली की जरूरत हैं,सारी दुनियां को।

जयश्री बिरमी
निवृत्त शिक्षिका
अहमदाबाद

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