सेठ गोविंद दास रंगमंच शहीद स्मारक में मंचित हुआ भूमि नाटक
जबलपुर दर्पण। दर्शकों से खचाखच भरा सेठ गोविंद दास रंगमंच बार-बार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा और दर्शक अपने हृदय की धड़कनों को संभालने में असमर्थ दिखे। एक दर्शक के रूप में मैं स्वयं इस बात को महसूस कर पा रहा था। बात दिनांक 23 जनवरी 2024 को सेठ गोविंद दास रंगमंच शहीद स्मारक में मंचित “भूमि ” नाटक की हो रही है। यह नाटक अर्जुन और चित्रांगदा के परिणय, प्रेम प्रसंग और प्रेम एवं भूमि के विस्तार की दुष्प्रभाव पर आधारित था ।
नाटक के लेखक आशीष दुबे निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर श्रद्धा और आध्यात्मिकता का रंग देते हुए इस नाटक को इतने सशक्त तरीकों से लिखा की एक-एक संवाद पर दर्शकों की तालियां लगातार गूंजती रहे और दर्शक अपनी आंखों से आंसू पोछते रहे । हास परिहार के संवादों में दर्शक ठहाके लगते रहे। लेकिन संवेदनशील विषयों पर आधारित संवाद दर्शकों की आंखों में आंसू भी लाते रहे और हाथ बरबस तालियों की गड़गड़ाहट से रंग मंच हॉल को गुंजायमान करते रहे ।
नेशनल ड्रामा स्कूल से पास आउट ,वनाटकों की नेशनल अवॉर्डी स्वाति दुबे का निर्देशन इतना सशक्त था की स्वयं स्वाति दुबे चित्रांगदा के अभिनय में इतना लीन हो जाती थी कि लगता था कि वास्तव में तत्कालीन ऐतिहासिक परिदृश्य दर्शकों के सामने हैं ।
रंगमंच के कलाकार जो बहुत कम उम्र के बच्चे थे , उन्होंने इस रंगमंच को सफलतापूर्वक नाटक को शीर्ष पर पहुंचाने में जितनी मेहनत की है उसके लिए उन सभी की जितनी सराहना किया जाए कम है ।
इस नाटक को सफलतापूर्वक करने के लिए नाट्य टीम के सारे कलाकार 1 महीने के लिए मणिपुर गए। मणिपुर में रहकर वहां की संस्कृति से परिचय लिया ।वहां पर वहां का नृत्य सीखा वहां किस प्रकार के अस्त्र-शस्त्र उस काल में इस्तेमाल होते थे, उनकी जानकारी ली । और उस प्रकार की शस्त्रों की अनुकृति बना कर लाए। मणिपुर में वहां के राजकीय परिसर में किस प्रकार के वस्त्र प्रयोग में लाए जाते थे ,उसी प्रकार के वस्त्र मणिपुर से खरीद कर लाए गए । महीनों की रिहर्सल रंग लाई । और जबलपुर की छोटी उम्र के नाटक कलाकारों ने यह साबित कर दिया कि भारत ही नहीं बल्कि विदेशों के नाट्य मंच पर एक समय आएगा , जब लेखक के रूप में आशीष पाठक ,निर्देशक के रूप में स्वाति दुबे और यह सारे नाटक कलाकार जो अभी कम उम्र के हैं ,वह अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा कर ही मानेंगे ।
सभी कलाकारों में बहुत प्रतिभा है और एक निर्देशक के रूप में उनको एक बहुत अच्छी निर्देशक मिली है ।जो इनको धीरे-धीरे तलाश कर एक विश्व स्तरीय कलाकार बनाएगी , ऐसा इस लेख के लेखक और दर्शक के रूप में मेरा विश्लेषण है। आशीष पाठक के द्वारा लिखित आगामी दूसरे नाटक और स्वाति दुबे के द्वारा निर्देशित आने वाले नाटकों की प्रतीक्षा कल रंगमंच के हॉल में उपस्थित आगामी समय में प्रत्येक दर्शक को रहेगी , ऐसा हाल से निकलते हुए दर्शकों के उद्गार भी सुनने में आए। आशीष पाठक और निर्देशक स्वाति दुबे एवं नाट्य मंच के सारे कलाकारों को बहुत-बहुत बधाई और बहुत-बहुत सराहना तो बनती ही है। जबलपुर में नाट्य विधा के विकास की अपार संभावनाएं हैं। अन्य रंगमंडल भी अपनी भूमिका का निर्वाह कर ही रहे हैं ।और निश्चित रूप से एक समय आएगा जब भारत वर्ष के नाट्य मंच के इतिहास में जबलपुर का नाम स्वर्णिम अक्षरों से लिखा जाएगा।
इस नाटक को सफल बनाने में कॉफी हाउस विचार मंच , रेवा की राह पत्रिका , अंकुरण संस्था , सीएफए राहुल अग्रवाल उपाध्यक्ष फल एवं सब्जी व्यापारी संघ जावेद राइन , पी एस मथारू , शरणजीत गुरु , मुकुल यादव, हर्ष तिवारी , राकेश शरूवास,प्रवीण मिश्र आदि की सहयोग रहा।