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भारत में हिंदू नववर्ष का क्या है इतिहास, कैसे होती हैं कालों की गणना..?

नंदकिशोर ठाकुर, डिंडोरी ब्यूरो। भारतीय संस्कृति में ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना की शुरुआत की थी और इसी दिन से विक्रम संवत के नए साल की शुरुआत है भारत में हिंदू नववर्ष क्यों मनाया जाता है और कालों की गणना कैसे की जाती है, आगे विस्तार से पढ़ने को मिलेगा। एक तरफ पूरी दुनिया में एक जनवरी को नया साल का दिन मनाया जाता है, लेकिन भारतीय संस्कृति के अनुसार हिंदू नववर्ष की शुरुआत इस साल 22 मार्च बुधवार को हो रही है। दरअसल हिंदू नववर्ष पंचांग के अनुसार चैत्र माह की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को मनाया जाता है, इसी तरह इस साल नए साल की शुरुआत 22 मार्च 2023 को हो रही है। भारत में हजारों सालों से हिन्दू समुदाय द्वारा विक्रम संवत पर आधारित कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को नए साल की शुरुआत के रूप में मनाया जा रहा है। विक्रम संवत पर आधारित कैलेंडर के अनुसार मनाया जाने वाले हिन्दू नववर्ष को हिंदू नव संवत्सर या नया संवत के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू नववर्ष से ही देश में नए साल की शुरुआत मानी जाती है, जो की चैत्र महीने में होता है, ऐसे में जानते हैं कि हिंदू नववर्ष क्यों मनाया जाता है और इसकी गणना कैसे की जाती है।

भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राज्य में कैसे मनाया जाता है हिंदू नववर्ष

भारतीय संस्कृति में ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना की शुरुआत की थी, इसी दिन से विक्रम संवत के नए साल की शुरुआत होती है। विक्रम संवत को भारत के अलग अलग राज्यों में गुड़ी पड़वा, उगादी आदि नामों से भी मनाया जाता है। 22 मार्च यानी आज चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को विक्रम संवत 2080 की शुरुआत हो रही है, हिंदू विक्रम संवत 2080 अंग्रेजी कैलेंडर के साल 2023 से 57 साल आगे है। कहा जाता है कि विक्रम संवत के अंग्रेजी कैलेंडर से 57 साल आगे रहने का कारण है कि विक्रम संवत की शुरुआत राजा विक्रमादित्य ने किया था। राजा विक्रमादित्य विक्रम संवत के शुरू होने के साथ ही अपने साम्राज्य की जनता के सारे कर्जों का माफ कर उन्हें राहत प्रदान करते थे। विक्रम संवत हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू हो जाती है, इस संवत को गणितीय नजरिए से एकदम सटीक काल गणना माना जाता है, विक्रम संवत को राष्ट्रीय संवत माना गया है।

विक्रम संवत पर आधारित कैलेंडर की गणना होती है कैसे

ज्योतिषी अनुराग के अनुसार विक्रम संवत आज तक भारतीय पंचांग और काल निर्धारण का आधार बना हुआ हैं, इस कैलेंडर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह वैज्ञानिक रूप से काल गणना के आधार पर बना हुआ है‌। इस कैलेंडर में जिन 12 महीनों का जिक्र किया गया है, वह सभी राशियों के नाम पर हैं, अंग्रेजी के तरह ही इस कैलेंडर में भी 365 दिन का होते हैं। इसी तरह से अंग्रेजी कलेंडर के नए साल की शुरुआत जहां 1 जनवरी से होती है, वहीं विक्रम संवत पर आधारित कैलेंडर के महीने चैत्र से प्रारम्भ होते हैं, इसकी समयावधि 354 दिनों की होती है, शेष बढ़े हुए 10 दिन अधिमास के रूप में माने जाते हैं। ज्योतिष काल की गणना के अनुसार इसके 27 प्रकार के नक्षत्रों का वर्णन है, एक नक्षत्र महीने में दिनों की संख्या भी 27 ही मानी गई है, वहीं सावन वर्ष में दिनों की संख्या लगभग 360 होती है और मास के दिन 30 होते हैं। वैसे तो अधिमास के 10 दिन चन्द्रवर्ष का भाग है, लेकिन इसे चंद्रमास न कह कर अधिमास कह दिया जाता है।

चैत्र महीनें में नववर्ष मनाने की क्या है पौराणिक कथाएं

पौराणिक कथाएं में वर्णित है कि ब्रह्म जी ने इसी दिन यानी चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को ही ब्रह्मा जी ने संसार की रचना की थी। कथाएं के अनुसार लगभग 1 अरब 14 करोड़ 58 लाख 85 हजार 123 साल पहले चैत्र माह की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन संसार का निर्माण हुआ था, यही कारण भी है कि इसी दिन हिंदू नववर्ष मनाया जाता है। इसके अलावा विक्रमादित्य ने अपने नाम से संवत्सर की शुरुआत भी चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को ही की थी, एक कारण ये भी है हिंदू नववर्ष को विक्रमी संवत्सर भी कहा जाता है, इस साल विक्रम संवत को 2079 वर्ष पूरे हो रहे हैं और विक्रम संवत 2080 लग रहा है। चैत्र महीने में नववर्ष मनाए जाने का एक कारण ये भी है कि यह महीना प्रकृति की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण होता है, इस समय पेड़ों लताएं और फूल बढ़ने के लिए लगे होते हैं। इसके अलावा इस महीने में सुबह के समय का मौसम भी बहुत अच्छा होता है, सुबह भौरों की मधुरता भी होती है। हिंदू धर्म में चांद और सूरज को भी देवता की तरह पूजा जाता है और चैत्र महीने में ही चंद्रमा की कला का प्रथम दिन होता है, ये कारण भी है कि इसी दिन नववर्ष मनाया जाता है, ऋषियों मुनियों ने नववर्ष के लिए चैत्र महीने को एकदम उपयुक्त माना है। चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को श्रीराम ने जन्म लिया था, रामभक्त इसी दिन को रामनवमी के रूप में भी मनाते हैं। वहीं राम जी के इसी महीने जन्म लेने की वजह से भी इस महीने का महत्व और बढ़ जाता है, इसके अलावा शक्ति और भक्ति के नौ दिन यानी नवरात्र का पहला दिन चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष से ही शुरू होता है।

भारतीय हिन्दू नववर्ष में बदलते प्राकृतिक का महत्व

हिंदू कैलेंडर के अनुसार नव वर्ष के साथ वसंत ऋतु का भी आरंभ हो जाता है जो उल्लास, उमंग, खुशी और चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है। इसके अलावा चैत्र महीने में ही किसानों की फसल पकना शुरू हो जाता है, यानी साल की शुरुआत देश के किसानों के मेहनत का फल मिलने का भी समय होता है। चैत्र महीने के पहले दिन नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं, आसान भाषा में समझे तो इस दिन किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिए यह शुभ मुहूर्त होता है। ज्योतिषीयों के अनुसार इस साल नव संवत्सर 2080 में 12 नहीं बल्कि 13 महीने होंगे, इसके पीछे का कारण ये है कि इस साल ज्यादा मास लग रहा है। अधिक मास 18 जुलाई से 16 अगस्त तक है, इस साल क्योंकि ज्यादा मास सावन में लग रहा है, इसलिए सावन माह दो महीने का होगा। इस बार सावन के सोमवार और मंगला गौरी व्रत हर बार से ज्यादा होंगे, शिव परिवार की कृपा पाने का शुभ अवसर होगा। हिंदू कैलेंडर की शुरुआत नव संवत्सर या विक्रम संवत से होता है, इसमें 12 महीने होते हैं। हिंदू कैलेंडर की शुरुआत चैत्र माह से होती है और फाल्गुन माह से खत्म हो जाती है। इस कैलेंडर के 12 माह चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन हैं। हिंदू कैलेंडर के सभी 12 माह के नाम नक्षत्रों के नाम रखी गई है। दुनिया के अलग अलग भागों में अलग-अलग प्रकार से नववर्ष मनाया जाता है, ऐसे में सभी समुदाय अलग-अलग तिथि और माह में अपना नववर्ष मनाते है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होने के साथ ही एक ऐसा देश भी है, जहां सभी धर्मों से लोग रहते हैं। यही कारण है कि हमारे देश में एक साल के अंदर पांच बार नववर्ष मनाया जाता है। ईसाई नववर्ष 1 जनवरी से अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार दुनिया में नए साल की शुरुआत 1 जनवरी से होती है, इस धर्म के अनुसार नए साल की शुरुआत 15 अक्टूबर 1582 से हुई. ईसाई धर्म के लोग ग्रिगोरियन कैलेंडर के आधार पर 1 जनवरी को अपना नववर्ष मनाते है। इसी तरह से पारसी नववर्ष हमारे देश में रहने वाले पारसी धर्म अपना नया साल नवरोज उत्सव के रूप में मनाते है। आमतौर पर इस उत्सव को 19 अगस्त को मनाया जाता है, 3000 साल पहले शाह जमशेदजी ने नवरोज मनाने की शुरुआत की थी। इसी प्रकार से पंजाबी नववर्ष पंजाब में नए साल की शुरुआत बैसाखी पर्व के रूप में मनाया जाता है, यह पर्व हर साल अप्रैल महीने में आती है। सिख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार होली के दूसरे दिन से नए साल की शुरुआत मानी जाती है।जैन नववर्ष भारत में रहने वाले जैन समुदाय का नववर्ष दीपावली के अगले दिन से जैन नववर्ष दीपावली के अगले दिन से शुरू होता है, इसे वीर निर्वाण संवत के नाम से भी जाना जाता है, इसी दिन से जैन अपना नया साल मनाते हैं। इस्लामिक कैलेंडर का नया साल मुहर्रम होता है, इस्लामी कैलेंडर एक पूर्णतया चन्द्र आधारित कैलेंडर है, जिसके कारण इसके बारह मासों का चक्र 33 सालों में सौर कैलेंडर को एक बार घूम लेता है। इसके कारण नव वर्ष प्रचलित ग्रेगरी कैलेंडर में अलग अलग महीनों में पड़ता है।कहा जाता है कि यूनानियों ने हिंदू कैलेंडर की नकल कर इसे दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फैलाया, आज भले ही दुनियाभर में अंग्रेजी कैलेंडर का प्रचलन हो गया हो लेकिन फिर भी भारतीय कैलेंडर की महत्ता कम नहीं हुई। भारत में आज भी किसी भी व्रत-त्यौहार, महापुरुषों की जयंती-पुण्यतिथि, विवाह व अन्य सभी शुभ कार्यों को करने के मुहूर्त आदि भारतीय कैलेंडर के अनुसार ही देखते हैं।

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