साहित्य दर्पण

न करें गुमान अपने आज पर

जबलपुर दर्पण। फूलों की मादकता से भी आज मन नही खिलता और सफ़ेद पोश से ढका मानव गिरग़िट सा रंग बदलता है । इन बढ़ती स्वाद कि तृष्णाओं से हम कब उभरेंगे न जाने कब हमारे पूर्वजों के आदर्शों का सूरज फिर से उगाएँगे।एक प्रसंग किसी एक मित्र ने दूसरे को कहा कि मित्र मेरे पास गाड़ी , बंगले , नौकर – चाकर आदि – आदि सब है । तेरे पास क्या है तो उसने बड़ा मार्मिक उतर दिया की मेरे पास अच्छी नीन्द , परिवार , बड़े – छोटो का सम्मान , सुख – दुःख समझने वाले अपने आदि है उसने वापिस प्रश्न किया कि तुम्हारे पास इसमें से क्या है ? वह शान्त हों गया । मैंने देखा समझा हैं कि ये जवानी, ये ताकत, ये दौलत आदि – आदि सब कुदरत की इनायत हैं । जिसके होते ही वह अज्ञानवश लिप्त हो जाते हैं लेकिन इसके जाते ही इन्सान बेजान हो जाता है। प्रतिभा हमें ईश्वर से मिलती है हम सदैव नतमस्तक रहे । ख्याति समाज से मिलती है हम उसके आभारी रहे । लेकिन….? मनोवृत्ति और घमंड स्वयं से मिलते है इसके लिये हम सावधान रहे । फिर ना करे गुमान ना भरे दंभ । यहाँ हर घड़ी बदल रही है रूप ज़िंदगी, छांव है कहीं,कही है धूप ज़िंदगी, हरपल यहाँ जी भर जियो,जो है समां, कल हो ना हो । चार दिन जिंदगानी को हँसते-मुस्कुराते-ख़ुशियों से आनंदित होकर जिये और हो सके तो किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार।किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसीका नाम हैं। चले जो चूमने तारे ज़मीं छूटी,वतन छूटा दिखावे एवं आडंबर के निकट आते सगे से भी सगे का साथ छूटा अरे ! अपने छोटे से गगन में अपनी छोटी ख़ुशहाल ज़िंदगी बसाए । समंदर ना सही नादियों की मिठास बन सबसे स्वर-ताल-लय में मिलाए। प्रेम-प्यार-विश्वास-स्नेह का हो ध्यान तो इस परिश्रमी संसार में पाया सबसे मान-सम्मान। हो नित्य नवीनता क्योंकि जग में नित बदलाव पर नित नूतन सौंदर्य हो अपनी चादर भाव। धन-बल-बुद्धि-ज्ञान-पद का ना करे हम गुमान ये सब है प्रभु की देन उनके चरणों में सुख पाएँगे।

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