चार सदस्यीय एक परिवार में है तीन विकलांग

ही मिल रहा शासकीय योजनाओं का लाभ, इलाज में बीमारी का भी नही चल पा रहा पता
मड़ियादो। विकलांगता या अपंगता एक ऐसी अवस्था होती है, जिसमें मनुष्य जीते हुए भी मरता रहता है। प्रकृति ने विकलांगता का दोष जिस किसी को दिया वह सभी उससे इसकी वजह पूछते हैं। कुछ के लिए यह भगवान की नाइंसाफी है तो कुछ के लिए पिछले जन्म का पाप लेकिन विकलांगता के दुख को समझ पाना कतई मुमकिन नहीं है।
अंजानी बीमारी से ग्रसित एक ही परिवार के तीन बच्चे
ऐसा बहुत ही काम देखने को मिलता है कि एक ही परिवार के तीन तीन बच्चे एक ही तरह की बीमारी से ग्रसित हो जो बचपन से तो ठीक से लेकिन 8-10 वर्ष की उम्र के बाद चलने में असमर्थ हक गए हो। ऐसा ही मामला हटा जनपद की ग्राम पंचायत चोरैया के ग्राम कलकुआ टपरन में देखने को मिला जहाँ पर बंजारा परिवार के एक लड़की खिम्मी बाई उम्र करीब 18 वर्ष, पूरन बंजारा उम्र 17 वर्ष, व इनका छोटा भाई खेमा बंजारा उम्र करीब 14 वर्ष जो करीब 10 वर्ष की उम्र तक तो ठीक रहे साधारण बालको की तरह चलते फिरते व अपने सभी कार्य स्वयं करते थे लेकिन इसके बाद न जाने किस बीमारी ने इन्हें घेर लिया कि अब चल नही सकते है। विकलांग बच्चो की तरह चलने को मजबूर है और पूर्णतः अपनी विधवा माँ पर आशिरित है। नित्त क्रिया के लिये भी दूसरों पर निर्भर है या रेंगकर जाने को मजबूर है देखने मे सामने आया है। जहाँ चार सदस्यीय परिवार में तीन विकलांग है जिसमें दो भाई एक बहन है, जो सिर्फ बैठ कर ही चल पाते हैं। हर चीज के लिए दूसरे पर पूर्ण रूप से निर्भर है जिसका पालन पोषण उनकी ही माँ करती हैं।
नही मिल रही शासकीय योजनाओं का लाभ
वही विकलांग पूरन वंजारा ने बताया कि मुझे कोई भी शासकीय योजनाओं का कोई लाभ नहीं मिल रहा है। हमारी कोई सुनता ही नहीं है, हर कही शिकायत कर चुके है लेकिन सबने औपचारिकता पूरी कर आस्वासन ही दिया। वही पंचायत की लापरवाही भी साफ तौर से देखी जा सकती हैं। तीन साल पहले हुये विकलांग बच्चों को गर्मी बरसात के मौसम में रेंग कर ही दूर दराज के इलाकों में खुले में सोँच के लिए जाने को मजबूर हैं, ना तो पंचायत द्वारा बेसहारा विकलांग परिवार को शोंचालय बनबाना उचित समझा ना ही उनके लिए विकलांग साइकिल दिलाना उचित समझा ऐसे में बेसहारा बेबश लाचार है, ना तो इनके रहने के लिए घर है और ना ही घर चलाने के कोई साधन है। विकलांग बच्चों के साथ रहने वाली महिला जो कि विकलांग पूरन वंजारा, खेमा वंजारा, बहन खिम्मो वंजारा जिनके पास ना तो रहने के लिए पर्याप्त घर है, ना ही घर चलाने के लिए कोई व्यवसाय हैं। वही पूरन वंजारा ने बताया कि हमे शासकीय योजना के अंतर्गत महीने में छः सौ रुपये पेंशन मिलती हैं। जिसमे यहाँ से 15 किलोमीटर दूर ग्राम मड़ियादो तक जाना पड़ता है और जिसके भी साथ जाओ तो 100 रुपये का खर्च आता है 500 रुपये ही बच पाते हैं और हम बेबस लाचार ऐसे में घर चलाये तो कैसे चलाये हमारे पास न तो साइकिल हैं ना ही हम उठ खड़े हो सकते है ऐसे में हम करे भी तो क्या कर सकते हैं। जसिया बंजारा का कहना है कि में इन तीनो बच्चो को छोड़कर मजदूरी को भी नही जा सकती हूं। तीनो बच्चे पूर्णतः हमारे ऊपर निर्भर है मुझे व दो बच्चो को मिलने वाली पेंशन ही हमारा व हमारे परिवार के पालन पोषण का आधार है। मेरे पति करीब 5-6 वर्ष पूर्व फ़ौत हो गए है, जिस कारण बच्चो के पालन पोषण की सम्पूर्ण जिम्मेदारी हमारे ऊपर हैं। दमोह अस्पताल में कराया इलाज जसिया बंजारा का कहना है कि 2 वर्ष पूर्व गाँव वालों की सहायता से में अपने तीनो बच्चो को लेकर दमोह सरकारी अस्पताल लेकर गये थे लेकिन 4-5दिन रहने रहने के बाद भी डॉ द्वारा कहा गया कि कौन सी बीमारी है, ये मालूम नही पड़ रहा है और कोई आराम नही हुआ तो में बच्चो को लेकर बापिस अपने घर आ गई हूं और अपनी इसी टपरिया में रह रही हूँ।
इनका कहना
इस संबंध में जब सरपंच खेमी बंजारा से बात की तो उनका कहना है कि सचिव से बार बार कहने पर भी वह इनकी और ध्यान नही दे रहा है में तो पड़ी लिखी नही हु सभी कार्य के लिये सचिव आनंद जैन से कराते है।
खेमी बाई बंजारा, सरपंच
सचिव का कहना है कि मैंने दो बच्चो को पेंशन की व्यवस्था करा दी है, अभी शौचालय व कुटीर व साईकल की उपलब्ध नही करा पाए है, जल्द ही उपलब्ध करा देंगे।
आनंद जैन, सचिव