सत्संग सत्कर्म से मन मंदिर मे विराजते है नारायण : स्वामी अशोकानंद

जबलपुर दर्पण। मातृ शक्ति ही सनातन धर्म की अलख जगाती है क्योंकि घर से ही संस्कार समाज को मिलते है। जीवात्म और परमात्मा का मिलन ही महारास है। भगवान भाव का भूखा है अंतर्मन से जब हम पुकारते है तो स्वंय परमात्मा का प्राकट्य होता है। घर-परिवार मे पति- पत्नी का मन मस्तिष्क सत्संग- सत्कर्म और हरिभजन मे लग जाए तो श्रीहरि नारायण- माता रूकमणी मन मंदिर मे विराजित हो जाते है। भक्त को भक्ति का अभिमान भी नही करना चाहिए क्योकि ब्रम्ह के संसार सागर मे भक्ति के हजारों-हजार उदाहरण है। श्रीमद्भागवत मे व्यास जी ने परीक्षित से संवाद कर जीवात्माओ को संपूर्ण जीवनकाल से परिचित कराया है। उक्त भावुकतापूर्ण उदगार नर्मदा तट भक्तिधाम ग्वारीघाट जबलपुर मे प्रख्यात कथावाचक, प्रेम मूर्ति परम पूज्य स्वामी अशोकानंद महाराज ने श्रीमद्भागवत महापुराण व्दिव्य महोत्सव के षष्ठम दिवस महारास श्रीकृष्ण रूकमणी विवाहोत्सव मे कहे। इस अवसर पर स्वामी विश्वक सेनाचार्य महाराज,पं वेदांत शर्मा, नगिन रामदास पाटिल, मनोज नारंग, जगदीश दीवान, करिश्मा शर्मा, प्रीति सचिन पाटिल, स्पंदन, स्पृहा , डा राकेश, डा भूषन पाटिल, सौ रागिनी, मिहान, जया लालवानी, पप्पू लालवानी, विध्येश भापकर, हीरा शर्मा आदि उपस्थित रहे।