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बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आपका त्याग भी बड़ा होना चाहिए

आलेख : आशीष जैन (उप संपादक) दैनिक जबलपुर दर्पण। मो. 9424322600

दान चार परकार, चार संघ को दीजिये। धन बिजुली उनहार, नर-भव लाहो लीजिये। उत्तम त्याग कह्यो जग सारा, औषध शाष्त्र अभय सहारा। निहचे राग द्वेष निरवारे, ज्ञाता दोनों दान संभारे। दोनों संभारे कूप-जल सम, दरब घर में परिनया। निज हाथ दीजे साथ लीजे, खाय खोया बह गया। धनि साध शास्त्र अभय दिवैया, त्याग राग विरोध को। बिन दान श्रावक साधू दोनों, लहैं नहीं बोध को।

भादो माह के सुद बारस को दिगंबर जैन समाज के पवाॅधिराज पर्यूषण दसलक्षण पर्व का आठवाँ दिन उत्तम त्याग धर्म का पालन करता है। जैसा कि शब्द में ही निहित अर्थ है छोडना है। जीवन को संतुष्ट बना कर अपनी इच्छाओं को वश में करना है। यह न सिर्फ अच्छे गुणवान कर्मों में वृद्धि करता है बल्कि बूरे कर्मों का नाश भी करता है। छोडने की भावना जैन धर्म में सबसे अधिक है क्योंकि जैन संत घर-परिवार के साथ अपने वस्त्रो को भी त्याग देते है और पूरा जीवन दिगंबर मुद्रा धारण करके व्यतीत् करते है। उत्तम त्याग धर्म हमें सिखाता है कि मन को संतोषी बना के ही इच्छाओं और भावनाओं का त्याग करना मुमकिन है। त्याग की भावना भीतरी आत्मा को शुद्ध बनाकर ही होती है।

त्याग का मतलब त्याग करना, छोड़ना, तजना एवं पृथक करना होता है। ईश्वर की अनुभूति करने और समाज में उच्च मानदंड स्थापित करने के लिए त्याग की भावना को अंगीकार कर, उस पथ पर बढ़ने की आवश्यकता होती है। उस मार्ग में व्यक्तिगत व शारीरिक सुखों का त्याग करना होगा। उन सभी आसक्तिओं को छोड़ना होगा, जो मानव जीवन को संकीर्णता की ओर ले जाने वाली होती है। त्याग और परित्याग में अन्तर है। अगर हमारे पास कोई वस्तु है और हम उसको छोड़ दें तो उसको परित्याग कहते हैं। जैसे कोई राजा अपने मुकुट को छोड़ दे तो उसको परित्याग कहते हैं। त्याग उस वस्तु का भी किया जा सकता है जो हमारे अधिकार में न हो परन्तु मिलने वाली हो। त्याग का विलोम शब्द है मोह। स्वार्थ भी अनेक बार त्याग के विलोम के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आपका त्याग भी बड़ा होना चाहिए। अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है और इसके लिए तैयार करना होगा और कड़ी मेहनत करनी होती है।

मुनिश्री प्रमाणसागर महराज कहते है कि हाथी के एक कौर में से एक छोटा सा टुकड़ा गिर जाने से हजारों चीटिंयों का पेट भर जाता है। तो क्यों ना हम सभी को दान करना चाहिए। त्यागी हुयी चीजों को तो पशु भी वापिस नहीं स्वीकारते, चाहे वह त्यागी हुयी चीज उनके बच्चे की ही क्यों ना हो। कमरे में एक खिड़की खोलो तो थोड़ी सी ताजा हवा आती है, दूसरी खिड़की खुलते ही क्रॉस वेंटीलेशन शुरू हो जाता है, एक खिड़की से हवा आती है, दूसरे से निकलती रहती है, स्वास्थ के लिये भी लाभदायक होता है। और यदि एडजेस्ट फैन लगा दो तो ज्यादा फ़ायदा होता है। इसमें पहली खिड़की आमदनी की, दूसरी खिड़की दान की। आमदनी की खिड़की ज्यादा बड़ी होने पर आने वाली हवा (दौलत) के साथ साथ हानिकारक कीटाणु भी आ जाते हैं। सभी को उत्तम त्याग धर्म की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। जय जिनेंद्र।

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