हमारे यहाँ इनकी पूछ
संकलन : अभिनेष ‘अटल’
बात साधारण है लेकिन यदि देखा जाए तो पूँछ से ही चिढ़ क्यों थी?
पूँछ शब्द में श्लेष है अंग विशेष को तो पूछ कहते ही हैं और समाज में लौकिक प्रतिष्ठा को भी पूछ कहते हैं । जिससे भी पूछो इनका क्या हाल है तो लोग साधारण शब्दों में कहते हैं अरे इन्हें साधारण आदमी समझते हो? इनकी तो बड़ी पूंछ है । कुछ लोग तो कहते हैं कि इनकी यहां से लेकर वहां तक बड़ी पूंछ है और आदमी खुश होता है हमारी पूँछ है ।
आज देखो कई घरों के बाहर वयोवृद्ध व्यक्ति मिल जाते हैं बड़े उदास उनसे पूछो पहले तो नहीं बोलते हैं कुछ नही कुछ नही, नही नही फिर भी क्या बात है बोलो तो कहते है इस घर में अब हमारी पूछ नहीं रही रोना भी इसी बात का है की पूंछ नहीं रही और प्रशंसा भी इसी बात की है कि बड़ी पूँछ है ।
लोग कहते हैं कि उनके घर गए चाय की कौन कहे पानी तक के लिए नहीं पूछा । मुझे लगता है सारे संसार में झगड़ा ही ये पूछ का है ।
हम चाहते हैं कि सबसे पहले हमें पूंछो फिर किसी को पूंछो या नहीं पूंछो और रावण को भी हनुमान जी की पूँछ से ही चिढ़ है । क्योंकि उसे लगता है कि “हमारे यहां इनकी पूंछ”! लंका में तो हमारी ही पूंछ रहनी चाहिए । लंका हमारी और पूंछ इनकी उसे पूंछ सहन ही नहीं हो रही है । अच्छा एक बात यह है कि हमेशा हर युग का सत्य है कभी भी किसी दुर्जन को सज्जन की बढ़ती हुई पूंछ सहन नहीं होती है । रावण को भी सहन नहीं हो रही है पूंछ । लेकिन, एक और अद्भुत बात है इस पूँछ को जला देना चाहता है । जलने वाले तो जलाएंगे ही। जल ही रहे हैं, ईर्ष्या की आग में जलाएंगे ही …
(ब्रह्मलीन मानस वक्ता शब्द ब्रह्म के सिद्धयोगी पूज्य राजेश्वरानंद जी महाराज के प्रवचन का मूल रूप )