आधा सत्र बीते पर जिले के दर्जनों स्कूलें आज भी शिक्षक विहिन
डिंडोरी, जबलपुर दर्पण ब्यूरो। जिले में दर्जनभर से ज्यादा स्कूल भगवान भरोसे चल रही है, दिनोंदिन शासकीय स्कूल दुर्दशा का शिकार हो रहे हैं। अधिकतर सरकारी स्कूलों में जहां न तो गुणवत्ता युक्त शिक्षा मिल पाती और ना ही छात्र छात्राओं को अच्छे संस्कार। आज भी जिले के दर्जन भर से ज्यादा स्कूल ऐसे हैं जहां आज तक स्थाई शिक्षक नहीं है, अतिथि शिक्षकों के भरोसे ही स्कूलों का संचालन हो रहा है। ऐसा ही ताज़ा मामला जिले के शहपुरा जनपद मुख्यालय से सामने आया है। बताया गया कि आसपास के अधिकतर स्कूलों में आधा सत्र बीतने को है पर स्कूलों में आज तक स्थाई शिक्षक नहीं है। गौरतलब है कि शिक्षकों की संख्या अधिक है, अधिकांश शिक्षकों की शहपुरा मुख्यालय के आसपास के स्कूल पहली पंसद होती है। शिक्षको की पंसद पर जिला शिक्षा अधिकारी और शहपुरा विकासखंड अधिकारी भी मेहरबान रहते हुए शिक्षकों की पंसद के अनुसार स्कूल देते है। आरोप लगाया कि ग्रामीण क्षेत्रों में आदिवासीयों के गरीब बच्चे जिन स्कूलों में पढते है, उन स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं है। शहपुरा मुख्यालय के आसपास के स्कूलों में शिक्षकों की संख्या अतिशेष में है, जहाँ मध्यप्रदेश की सरकार गरीब आदिवासीयों के विकास के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। वहीं डिण्डौरी के आला अधिकारी गरीब आदिवासीओं के बच्चों का शोषण कर रहे हैं। जानकारी अनुसार कन्या आश्रम शाला शहपुरा, माधमिक शाला बिछिया, प्रा शाला ररिया टोला, सीनियर बेसिक माध्यमिक शाला शहपुरा, एकीकृत मा शाला बरगाँव, नवीन प्रा शाला बरगाँव, कन्या आश्रम शाला अंग्रेजी माध्यम शहपुरा, प्रशाला गपैया, प्रा शाला गुतली रैयत सहित अन्य स्कूलें शिक्षक विहीन है। इसी तरह शाला बालक पढारिया कला, प्रा शाला धनगाँव, प्रा शाला गटा, प्रा शाला पिपराडी, प्रा शाला कस्तूरी पिपापिया, माशाला गढी, प्रा काला पिपरहा, मा शाला मालपुर, माध्यमिक शाला पल्की, माध्यमिक शाला छपरा, माध्यमिक शाला देवरी, माध्यमिक शाला टिकरा महेशपुरी, माध्यमिक शाला पटपरा, प्राथमिक शाला छपरा, प्राथमिक खला छीरपानी, प्रा शाला देवरी, माध्यमिक शाला दल्कासरई, प्राथमिक शाला दल्कासरई माल व अन्य स्कूलें शामिल हैं। मामले को लेकर विभागीय अधिकारी जानकर भी अनजान बने हुए हैं, शिकायत के बाद भी कोई ठोस कार्यवाही नही हो रही। गौरतलब है कि शाहपुरा का पूरा क्षेत्र आदिवासी अंचल है और यहां पर गरीब लोगों के बच्चे ही पढ़ते है, उक्त तमाम स्कूल अतिथि शिक्षक के भरोसे संचालित हो रहे है, जिसे लेकर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं।