साहित्य दर्पण

आया सावन झूम के

काली घटा जब घिर कर आई
बादलो ने अपनी चहल मचाई
गढ़-गढ़ ध्वनि से शोर मचाई
रिमझिम वर्षा हलचल लाई
नई कपोल जब ले अंगड़ाई
लो आया सावन झूम के…।

आसमान में काले बादल
घिरकर आया नीला सावन
आसमान जैसे दौड़ लगाए
धरती छूने को धूम मचाये
कोयल कूकती छत पर बैठे
लो आया सावन झूम के…।

सावन की चहल धरती में आई
धरती होने को है फिर तरुणाई
हरियाली का पहन कर गहना
अपनी मस्ती में झूमते रहना
मस्त पवन में आई खुसबू कि
लो आया सावन झूम के…।

फूलों के कानों में भवरा गुनगुनाएं
सावन के आने की याद दिलाई
मौसम में आई खुशियों के लहरें
धरती ने बांधी है मौसमी सहरे
नदियों की धारा गीत गुनगुनाएं
लो आया सावन झूम के…।

रचनाकार
श्याम कुमार कोलारे

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