एनडीए के 24 दल 2024 का निशाना सीटों पर बढ़ सकती है रार
भाजपा की अगुवाई में एनडीए के 24 राजनीतिक दल 2024 पर निशाना लगाएंगे। भाजपा की कोशिश है कि 17-18 जुलाई को बेंगलुरु में होने वाली विपक्षी दलों की बैठक के समय अपने साथ ज्यादा से ज्यादा दलों को साथ रखकर मनोवैज्ञानिक बढ़त लेने का संदेश दिया जा सके। पार्टी ने इसके लिए आठ नए राजनीतिक दलों से भी संपर्क किया है जो 18 जुलाई को उसके खेमे में दिखाई पड़ सकते हैं। हालांकि, इसका एक असर यह भी हो रहा है कि एनडीए में सीटों के बंटवारे का गणित गड़बड़ा सकता है। सभी राजनीतिक दल अपने लिए ज्यादा बड़ी भागीदारी की मांग कर भाजपा नेतृत्व के लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं।
*यूपी में पैदा हो सकती हैं मुश्किलें*
यूपी भाजपा का सबसे बड़ा गढ़ बनकर उभरा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने यहां से 73 सीटों पर और 2019 में 62 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार भी वह यूपी की सभी सीटों पर जीत हासिल कर अपनी बढ़त बरकरार रखना चाहती है। लेकिन भाजपा की असली परेशानी यहीं से शुरू होती है। दरअसल, 2019 में यूपी में उसके सहयोगी दलों अपना दल और निषाद पार्टी ने ज्यादा सीटों की मांग कर उसके लिए मुश्किलें खड़ी कर दी थीं।
अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने अपनी पार्टी के लिए तीन लोकसभा सीटों की मांग की थी जिस पर अंतिम समय तक सहमति बनने में परेशानी होती रही। सरकार बनने के बाद भी अनुप्रिया पटेल ने एक कैबिनेट और एक राज्य स्तरीय मंत्री पद मांगकर सरकार की समस्या बढ़ा दी थी। इसे देने में असहज भाजपा ने उन्हें लंबे समय तक लटकाए रखा और दूसरे विस्तार में ही उन्हें मंत्रि मंडल में स्थान मिल सका। लेकिन भाजपा ने कोई समझौता नहीं किया और उन्हें केवल एक राज्य स्तरीय मंत्री पद से संतोष करना पड़ा। क्या इस बार अनुप्रिया पटेल दो ही सीटों पर मान जाएंगी और भाजपा की परेशानी नहीं बढ़ाएंगी?
इसी तरह निषाद पार्टी के संजय निषाद भी तोलमोल करने के लिए जाने जाते हैं। पिछली बार भी उन्होंने भाजपा के लिए समस्या खड़ी कर दिया था। केंद्र और योगी आदित्यनाथ सरकार में अपने लिए ज्यादा स्थान पाने का उनका दबाव अंतिम समय तक भाजपा के लिए परेशानी का कारण बना रहा। इस बार भी संजय निषाद भाजपा के लिए परेशानी का कारण बन सकते हैं।
इसी तरह निषाद पार्टी के संजय निषाद भी तोलमोल करने के लिए जाने जाते हैं। पिछली बार भी उन्होंने भाजपा के लिए समस्या खड़ी कर दिया था। केंद्र और योगी आदित्यनाथ सरकार में अपने लिए ज्यादा स्थान पाने का उनका दबाव अंतिम समय तक भाजपा के लिए परेशानी का कारण बना रहा। इस बार भी संजय निषाद भाजपा के लिए परेशानी का कारण बन सकते हैं।
ओम प्रकाश राजभर के भी एनडीए खेमे में आने की संभावनाएं जताई जा रही हैं। मोलभाव कर अपने लिए ज्यादा संभावनाओं को तलाशने के चक्कर में ही उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा का साथ छोड़ दिया था। इस बार वे साथ आए तो उनका रुख क्या रहेगा, यह समझा जा सकता है।
*बिहार में भी गड़बड़ाएगा गणित*
बिहार में इस बार जनता दल यूनाइटेड भाजपा के साथ नहीं है। ऐसे में उसके सामने सहयोगी दलों को देने के लिए ज्यादा सीटें रहेंगी। लेकिन लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान कितनी सीटों पर मानेंगे, यह कहना कठिन होगा। उपेंद्र कुशवाहा और चिराग दोनों ने ही एनडीए में ज्यादा सीटों की मांग पर ही एनडीए से किनारा किया था। इस बार जब कि जीतन राम मांझी और एक-दो अन्य छोटे दल एनडीए के खेमे में आ सकते हैं। ऐसे में सीट बंटवारे को लेकर भाजपा की परेशानी बढ़ सकती है।
*महाराष्ट्र में अभी से निकलीं तलवारें*
विपक्षी दलों की एकता के बीच भाजपा के लिए 48 लोकसभा सीटों वाले महाराष्ट्र का महत्त्व बढ़ गया है। उसके साथ शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के एक धड़े के आ जाने से भी उसका मनोबल बढ़ा हुआ है। लेकिन लोकसभा सीटों की संख्या को लेकर अभी से तलवार खिंच गई है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट के सांसदों ने अभी से अपने लोकसभा क्षेत्रों को लेकर दावेदारी पेश करना शुरू कर दिया है। वहीं, अजित पवार गुट के नेताओं ने अपनेे-अपने लोकसभा क्षेत्रों को लेकर पेशबंदी शुरू कर दी है।
*भाजपा के सामने मुंह बाए खड़ी हैं चुनौतियां*
भाजपा के सामने पहली परेशानी यही आने वाली है कि वह किस लोकसभा क्षेत्र से अपने उम्मीदवारों को अवसर देती है और किस लोकसभा क्षेत्र से सहयोगी दलों के नेताओं को उतारती है। उसे बड़ा अंतर्विरोध अपनी ही पार्टी के नेताओं से मिलने वाली है। जिन लोकसभा सीटों पर भाजपा के नेता-कार्यकर्ता लंबे समय से तैयारी करते आ रहे थे, उन पर अब उन्हें न केवल अपनी दावेदारी छोड़नी पड़ेगी, बल्कि उन्हीं विरोधी नेताओं के जयकारे भी लगाने पड़ेंगे जिनके खिलाफ वे अब तक ताल ठोंकते आए थे। भाजपा के लिए इस चुनौती से निबटना आसान नहीं होगा।
*दक्षिण और उत्तर-पूर्व में भी खास नहीं हाल*
दक्षिण और उत्तर पूर्व में भी भाजपा अपना कुनबा बढ़ाने की लगातार कोशिशें कर रही है। कर्नाटक में कुमारस्वामी के साथ आने से उसे इसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी सहयोगी दलों की सीटों के तालमेल पर कड़ा मोलभाव कर सकते हैं। भाजपा नेतृत्व के लिए इन चुनौतियों से निपटना आसान नहीं होगा।