साहित्य दर्पण

भलाई करना ही बुद्धिमानी

जबलपुर दर्पण। दुष्ट लोग उस मूर्खता से नहीं डरते, जिसे पाप कहते हैं। विवेकवान सदा उस बेवकूफी से दूर रहते हैं। बुराई से बुराई ही पैदा होती है, इसलिए बुराई को अग्नि से भी भयंकर समझ कर उससे डरना और दूर रहना चाहिए। जिस तरह छाया मनुष्य को कभी नहीं छोड़ती वरन् जहाँ-जहाँ वह जाता है, उसके पीछे लगी रहती है, उसी तरह पाप-कर्म भी पापी का पीछा करते हैं और अंत में उसका सर्वनाश कर डालते हैं।इसलिए सावधान रहिए और बुराई से सदा डरते रहिए। जो काम बुरे हैं, उन्हें मत करो, क्योंकि बुरे काम करने वालों को अंतरात्मा के शाप की अग्नि में हर घड़ी झुलसना पड़ता है। वस्तुओं को प्रचुर परिणाम में एकत्रित करने की कामना से, इंद्रिय भोगों की लिप्सा से और अहंकार को तृप्त करने की इच्छा से लोग कुमार्ग में प्रवेश करते हैं, पर ये तीनों ही बातें तुच्छ हैं।इनसे क्षणिक1 तुष्टि होती है, पर बदले में अपार दु:ख भोगना पड़ता है। चीनी मिले हुए विष को लोभवश खाने वाला बुद्धिमान नहीं कहा जाता।इस दुनिया में सबसे बड़ा बुद्धिमान, विद्वान, चतुर और समझदार वह है, जो अपने को कुविचारों और कुकर्मों से बचाकर सत्य को अपनाता है, सत्मार्ग पर चलता है और सद्विचारों को ग्रहण करता है। यही बुद्धिमानी अंत में लाभदायक ठहरती है और दुष्टता करने वाले अपनी बेवकूफी से होने वाली हानि के कारण सिर घुन-धुन कर पछताते हैं।

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