कृष्ण की सम्मृद्धि हेतु सुदामा ने स्वीकारी दरिद्रता
जबलपुर दर्पण। भगवान श्रीकृष्ण के बाल सखा सुदामा आर्थिक दृष्टि से जितने बिपन्न थे, आध्यात्मिक दृष्टि से उससे लाख गुना संपन्न थे। वास्तव में उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की समृद्धि के लिए स्वयं विपन्नता स्वीकारी थी। गुरु संदीपनी जी के आश्रम में अध्ययन के दौरान गुरु मां द्वारा अनजाने में दिए गए कृष्ण के हिस्से के भी अभिषापित चने खाकर सुदामा ने उन्हे और सारे संसार को दरिद्रता से बचाया था।उक्त उद्गार सिद्ध श्री दुर्गा मंदिर धनवंतरी नगर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन बाल विदुषी श्री कृष्ण भाव नंदिनी जी ने सुदामा चरित्र की मीमांशा करते हुए व्यक्त किए। कथा के पूर्व व्यास पीठ का पूजन प्रदीप खरे,रश्मि खरे, के. के. शुक्ला, डॉ. एच. पी. तिवारी,नर्मदा शंकर भार्गव (गुना), चंद्रा दीक्षित ,रमेश पांडे,शैलेंद्र शर्मा, डॉ. संदीप नेमा,छविलाल शर्मा, सुमन शर्मा,राम गोपाल तिवारी,कला शर्मा,अंकू पांडे,गोपाल रावत आदि ने किया।