लोगों के स्वास्थ्य से हो रहा खिलवाड़, मध्य प्रदेश के इस जिले में ना जल बचा ना वायु, पशु –पक्षी, जीव – जंतु
लोगों के स्वास्थ्य से हो रहा खिलवाड़, मध्य प्रदेश के इस जिले में ना जल बचा ना वायु, पशु – पक्षी, जीव – जंतु हो रहे प्रभावित… ये कैसा पर्यावरण दिवस …
शहडोल वीरेन्द्र प्रताप सिंह । पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन को लेकर समूचे विश्व में पर्यावरण दिवस का एक विशेष महत्व है, जिसके तहत वायु, जल, वनों के संरक्षण को लेकर मनाये जानें वाले इस दिन में हम ऐसे सैकड़ों वादे करते हैं, लेकिन इन वादों की और इस दिन की जमीनी हकीकत महज कागजों तक ही सीमित दिखाई देती हैं। लगातार कारखानों की बढ़ती संख्या नें पर्यावरण को काफी नुकसान भी पहुंचाया है, लेकिन इससे बचाव को लेकर शासन स्तर पर कई दिशा-निर्देश जारी किये गये हैं। जिनके परिपालन से पर्यावरण के हानि को रोकनें के साथ इसके संरक्षण पर कार्य किया जाना आवश्यक है। वहीं आज इस अवसर पर प्रशासन का ऐसे संचालित उद्योग कि ओर ध्यान आकर्षित कराना चाहते हैं, जो एशिया में दूसरे सबसे बड़े कारखानें के रुप में जाना जाता है लेकिन पर्यावरण संरक्षण को लेकर यहां जो हो रहा है वह महज दिखावा ही है।
शहड़ोल जिले के अमलाई ईलाके में एशिया की दूसरी सबसे बड़ी कागज बनानें की कंपनी ओरियंट पेपर मिल जो यहां वर्षों से स्थापित है लेकिन पर्यावरण संरक्षण को लेकर इस कंपनी द्वारा शासन के दिशा-निर्देशों का खुलकर माखौल उड़ाया जा रहा है।
पूरे ईलाके में पर्यावरण प्रदूषण से बढ़ रहे स्वांस- अस्थमा के मरीज
इस समूचे ईलाके की बसाहट हजारों में है। समीपी कई ग्राम लगे हुये हैं साथ ही एसईसीएल के कर्मचारियों के आवास भी है, पर फैक्ट्री के लगातार संचालन से व समीपी एसईसीएल के कोल माईंस होनें से पूरे ईलाके में धूल के कण हमेशा ही इस ईलाके मौजूद होते हैं। हालात यह है कि इस क्षेत्र के रहवासियों में दमा व अस्थमा जैसे विभिन्न स्वांस की परेशानियों वाले मरीज मिल जायेगें।
प्रशासनिक दिशा-निर्देशों के अनुसार कंपनी के आस-पास इन कणों को रोकनें के लिये कंपनी द्वारा विधिवत पूरे ईलाके में पानी के छिड़काव के साथ वृक्षारोपण किया जाना आवश्यक है, लेकिन इस दिशा में कोई कार्य नहीं किया गया जिससे यहां के रहवासी निरंतर परेशानियों का सामना कर रहे हैं।
वातावरण में बदबूदार अशुद्ध हवा, जिम्मेदार OPM…
जिम्मेदार बताते है कि कागज के इस कारखाने में (कंपनी के द्वारा) कागज व टिशू बनानें के लिये लकड़ी को पहले सड़ाया जाता है और ट्रीटमेंट करनें के उपरांत ही पूरी प्रोसेस के बाद कागज बन पाता है।
इस पूरी प्रक्रिया में लकड़ी के सड़न से उत्पन्न बदबू को रोकनें के लिये समुचित उपाय करना आवश्यक है, लेकिन लापरवाह कंपनी अपनें ही बसाहट वाले कर्मचारियों के बीच इस पूरी गैस को शुद्ध हवा में रोजाना छोड़ती है, जिससे घंटों पूरे ईलाके में लगभग 3-4 किलोमीटर के दायरे में बदबू फैल जाती है। वैसे तो इन इलाकों के रहवासियों को अब इसकी आदत सी हो गई है, लेकिन वहां से यदा-कदा गुजरनें वाले यदि उस दौरान यहां से गुजरे तो निश्चित ही उनका पल भर के लिये भी वहां रुकना मुश्किल हो जायेगा। जिसके लिये कंपनी नें कोई उपचार नहीं किया और यह सिलसिला वर्षों से अब तक निरंतर जारी है।
जीवन दायनी सोन नदी का पानी हो रही
भीषण दूषित
जानकारों की माने तो इस औद्योगिक संस्थान से निकलने वाले
दूषित जल सोन नदी में जाता है और इस प्रदूषित जल से कई मवेशियों की मौत हो चुकी है। पूरे ईलाके की जीवनदायिनी सोन नदी भी इस कंपनी के प्रकोप से नहीं बच सकी है। कहनें को तो एनजीटी के आदेश के बाद कंपनी से निकलनें वाले दूषित जल को ट्रीटमेंट करके ही छोड़ा जाना चाहिये, लेकिन कंपनी द्वारा ऐसा वर्षों तक नहीं किया गया। एनजीटी के सख्त रुख अपनाये जानें के बाद दिखावे के लिये यहां वाटर ट्रीटमेंट प्लांट तो लगा लिया गया, लेकिन सूत्र बताते हैं कि अब भी कंपनी से निकलने वाला दूषित पानी सीधे सोन नदी में छोड़ दिया जाता है।
प्रदूषण से पक्षियों का पलायन, कृषि पर भारी प्रभाव
इस उद्योग के द्वारा लगातार इस तरह के वायु,जल प्रदूषण से ना सिर्फ यहां वृक्षों की जमकर कटाई हुई बल्कि वायु व जल प्रदूषण निरंतर हो रहा है। बीते कुछ वर्षों की बात करें तो पूरे ईलाके में बहुतायत मात्रा में पाये जानें वाले पक्षियों का पलायन हुआ। जानकार बताते हैं कुछ वर्षों पूर्व भारी संख्या गौरया, कबूतर, कौआ, तितली, चील जैसी अनेक प्रजातियों यहां देखा जाता था, लेकिन धीरे – धीरे यह इस ईलाके से विलुप्त होती गई और वर्तमान में इनकी संख्या नाम मात्र ही रह गई है।
कागजी घोड़ों मे हरियाली और महोत्सव…
पर्यावरण जानकारों की मानें तो इन पशु- पक्षियों के लिये मिलनें वाले वातावरण में बीते कुछ समय में जमकर बदलाव हुआ जिसके वजह से यह स्थितियां उत्पन्न हुई है। जिसका कारण इन फैक्ट्रियों के संचालन को भी माना जा सकता है। वहीं विशेषज्ञ बताते हैं कि यदि यह फैक्ट्रियां शासन के गाईडलाइन का पालन करती तो पर्यावरण में थोड़ा बदलाव होता और विभिन्न प्रजातियां अपनें आप को इसके अनुरुप ढ़ाल लेती जिससे उनका पलायन नहीं होता लेकिन ऐसा नहीं हुआ जो आनें वाले समय में और खतरनाक हो सकता है।
सवाल यह है कि इन खामियों के बाद भी यदि हम पर्यावरण दिवस को मनाकर महज औपचारिकतायें पूरी कर रहे हैं तो वह दिन दूर नहीं जब हम अपनी आनें वाली पीढ़ी को महज चित्रण में बहुत कुछ दिखानें पर विवश होंगे। हकीकत में हरियाली की जगह मरूस्थल की सेल्फी आगामी विश्व पर्यावरण दिवस पर हम अपनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट करके इतिश्री कर लेगे।
यद्यपि कोई पर्यावरण को लेकर स्थानीय स्तर पर और किस प्रकार की गतिविधियां संचालित हो रही है जिससे प्रकृति पर असर पडेगा और इस भीषण समस्या के बीच सकारात्मक सोच से व्यापक स्तर पर किस प्रकार का ठोस कदम उठाए गए या उठाए जाने चाहिए।