साहित्य दर्पण

प्रिय उम्मीद

प्रिय उम्मीद,
ज़िंदादिल ही रखना
हसरतों की खातिर और
दीवाना बनाए रखना ताऊम
यहाँ राहत की उम्मीद
जो अपना जगाता है
वही प्यास बढाने का
होता है गुनहगार अक्सर
अब तो परखना चाहता हूँ
खुद अपने मन को
ताकि इल्जाम ए बेवफाई
किसी मासूम पर ना आये
फिलहाल खुदी के किरदार से
वाकिफ हो रहा हूँ
लम्हा लम्हा समेट रहा हूँ
गुजरा तन्हा या खुशहाल कोई
है बेशक जग की
डगर कठिन बहुत
पर है खुदा की
नियामत ये जीवन
ख्वाहिश यही है उम्मीद प्रिय
अब तुझको लेकर
साथ चलूँ मैं !

: मुनीष भाटिया
585 स्वस्तिक विहार जीरकपुर (मोहाली), चंडीगढ़ I
9416457695

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