रेत बचाओ खेत बचाओ आंदोलन
रिपोर्टर कृष्ण आर पटेल खड्डा. रेत का ठेका निरस्त किये जाने के संबंध में ग्राम पंचायत बराछ में चल रहा धरना-प्रदर्शन आंदोलन आज सत्रहवें दिन भी जारी रहा। ग्राम-पंचायत बराछ में चल रहे धरना-प्रदर्शन को दूसरे गांव के ग्रामीणों का भरपूर समर्थन मिल रहा है। इस संबंध में गांव की महिलाएं चिपको आंदोलन के तर्ज पर आगे आ रही हैं। बता दें कि इतनी सर्द रात में भी महिलाएं दिन-रात धरना-स्थल में डटीं हुईं हैं। उनका कहना है कि जब गौरा देवी जैसी महिला वृक्षों को बचाने के लिए आगे आ सकती है तो हम गांव की महिलाएं अपने खेतों की रक्षा क्यों नहीं कर सकतीं? गांव की महिलाओं का कहना है कि रेत खनन से नदी का तल नीचे हो जाएगा जिससे पानी का स्तर काफी नीचे चला जायेगा। गांव के कुएं और नलकूप सूख जाएंगे जिसका सबसे अधिक खामियाजा महिलाओं को ही भुगतना पड़ेगा। इसके साथ ही रेत के अंधाधुंध दोहन से नदी का बहाव तेज होगा और खेत की मिट्टी का कटाव होने से खेत बर्बाद हो जायेंगे। रसपुर ग्राम पंचायत में इसी नदी से पहले भी रेत खनन हो चुका है जिसका खामियाजा वहां के हजारों किसान भुगत रहे हैं। खेतों में पानी टिक नहीं रहा है और जिन खेतों में खरीफ और रबी दोनों सीजन की फसल होती थी वहां एक सीजन का फसल होना भी मुश्किल हो रहा है। जिससे हजारों किसान भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं।
आज आंदोलन के सत्रहवें दिन गांव की महिलाओं ने एक अनूठा प्रयोग किया। झाँपर नदी का जल कलश में भरकर महिलाओ ने समूचे गांव की परिक्रमा की और गांव के सभी देवी-देवताओं को जल चढाकर शासन-प्रशासन में बैठे लोगों को सदबुद्धि देने की मन्नत मांगी। और रेत खदान बन्द करने की अपने खेरमाई से प्रार्थना की। इस कलश यात्रा में गांव की महिलाओ के साथ ही युवक, बच्चे और हजारों किसान साथ मे थे। इस कलश यात्रा में रेत बचाओ-खेत बचाओ का नारा जोर-शोर से लगाया जाता रहा जिससे ग्राम-पंचायत बराछ में चल रहा यह आंदोलन और तेज हो गया है।