उत्तम आर्जव धर्म, कपट को त्याग कर सरल स्वभाव के साथ मोक्ष प्राप्ति है संभव
आलेख : आशीष जैन (उप संपादक) दैनिक जबलपुर दर्पण
भादो माह के सुद सप्तमी को दिगंबर जैन समाज के पवाॅधिराज पर्यूषण दसलक्षण पर्व का तीसरा दिन उत्तम आर्जव धर्म कहा जाता है। हम सब को सरल स्वभाव रखना चाहिये।कपट को त्याग करना चाहिए। कपट के भ्रम में जीना दुखी होने का मूल कारण है। आत्मा ज्ञान, खुशी, प्रयास, विश्वास से श्रावक केवल्य ज्ञान को प्राप्त कर सकता है। उत्तम आर्जव धर्म हमें सिखाता है कि मोह-माया, बूरे कार्य सब छोड कर सरल स्वभाव के साथ परम आनंद मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। मनुष्य जब अपने मन से कपट करना, धोखा देना, चोरी करना जैसे भावों को निकाल देता है, और अपने स्वभाव को सरल व विनय युक्त बना लेता है तो उसे उत्तम आर्जव धर्म कहा जाता है। जो व्यक्ति दूसरों के साथ कपट धोखा देता है तो वह स्वयं ही अपने आप को धोखा दे रहा है। वह दूसरों की अपेक्षा स्वयं अपनी ही हानि अधिक करता हैं। जैन धर्म की पवित्र ग्रंथो में दसलक्षण पर्व पूजा की पंक्तियों में संपूर्ण भावार्थ निहित है।
कपट न कीजे कोय, चोरन के पुर ना बसें।
सरल-सुभावी होय, ताके घर बहु-संपदा।।
उत्तम आर्जव-रीति बखानी, रंचक दगा बहुत दु:खदानी।
मन में हो सो वचन उचरिये, वचन होय सो तन सों करिये।।
करिये सरल तिहुँ जोग अपने, देख निरमल आरसी।
मुख करे जैसा लखे तैसा, कपट-प्रीति अंगार-सी।।
नहिं लहे लछमी अधिक छल करि, कर्म-बंध-विशेषता।
भय-त्यागि दूध बिलाव पीवे, आपदा नहिं देखता।।
आर्जव दस यमों में से एक है। प्राचीन हिन्दू और जैन ग्रन्थों में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है। इसका शाब्दिक अर्थ इमानदारी, सीधापन, और कथनी-और करनी में एकरूपता से है। सभी को उत्तम आर्जव धर्म के बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। जय जिनेंद्र।