न छग से लेना ना शासन से लेना फिरकिस बात की सजा विद्युत पेंशनरों को…?
मध्यप्रदेश के विद्युत पेंशनरों का दुखड़ा भी अजीब हैं विद्युत पेंशनरों को महंगाई राहत समय पर नहीं मिलने का । इनकी महंगाई राहत की राशि, उपभोक्ता बिलों के साथ विद्युत कंपनियां
पहले वसूल लेती है, अब उसमें से महंगाई राहत उसके पेंशनरों को देना है तो यह पहले के समान समय पर मिलना चाहिए की नहीं…?
मध्यप्रदेश की विद्युत कंपनियों को यह राशि ना तो छग सरकार से लेना हैं और ना ही मध्यप्रदेश सरकार से लेना हैं, इनकी राहत
विद्युत कंपनियों के राजस्व से जो की उपभोक्ताओं से प्राप्त किया
जा चुका, उसी में से विद्युत कंपनियों को देना है। फिर विद्युत पेंशनर्स यह सजा क्यों भुगत रहे हैं। जब विद्युत कंपनियों को ही
महंगाई राहत की राशि अपने राजस्व से देना हैं तो धारा 49 (6)
के तहत दोनों सरकारों से परस्पर सहमति/स्वीकृति की कोई
आवश्यकता नहीं क्योंकि विद्युत कंपनियां स्वतंत्र निकाय/मंडल/कंपनियां हैं, जिन्हें अपने कार्य-क्रियाकलाप-रीति नीतियों के संचालन में स्वायत्तता हैं, इसके लिए उनके अपने डायरेक्टर हैं, प्रबंधक, अधिकारीगण हैं। पहले भी जैसे ही महंगाई बढ़ती थी
व केंन्द्र के आदेश होते थे वैसे ही विद्युत मंडल की कंपनियों में भी
महंगाई भत्ते व राहत के आदेश हो जाते थे। राज्य कर्मचारियों के साथ बाद में या पीछे याने पश्चात देने की आदत नहीं रही ना उनसे पूछकर देने की आदत रही। देशभर की विद्युत कंपनियों में
तो ऐसा नहीं होता हैं वे पूर्णतः स्वतंत्र होती है, महंगाई भत्ता राहत
देने के मामले में। अन्य राज्यों में उन विद्युत कंपनियों को भी जहां राज्यों का विभाजन हुआ, वहां आपस में राहत देने में राजस्व एक दूसरे को देने की आवश्यकता नहीं होती और हमारे यहां भी नहीं हैं, फिर इस उलटे फरमान के आदेश का पालन मध्यप्रदेश की विद्युत कंपनियों में कौन करवा रहा है, क्यों करवा रहा है जिसकी यहां कोई आवश्यकता नहीं।
कहने को विद्युत पेंशनर्स युनियनें हैं। मगर वे भी अपनी बात
से सरकार को अब तक यह बात साफतौर पर समझाने में असमर्थ रही। एक वजह यह भी रही कि इनकी बात सुनने, इस पर ध्यान देने की, इन्हें चर्चा के लिए बुलाने की, राज्य के मुखिया ने आवश्यकता ही नहीं समझी। अन्य कर्मचारी संगठनों के साथ भी कुछ ऐसी उदासीनता रखना एक शगल सा बन गया है।
पेंशनरों की समस्या पर चर्चा के लिए, मुखिया ने नहीं बुलाया इसलिए विद्युत पेंशनरों के मुद्दों पर चर्चा नहीं हो पायी।
जब चर्चा नहीं हो पायी मुखिया से की विद्युत पेंशनरों की समस्या
राज्य के पेंशनरों की समस्या से बिल्कुल अलग है, इन्हें राज्य के पेंशनरों की समस्या से जोड़कर ना देंखे और विद्युत पेंशनरों का
धारा 49(6) के प्रावधानों से कोई लेनादेना नहीं। इस अवरोध से बंधनमुक्त रखें। पहले के समान महंगाई के आदेश जैसे छत्तीसगढ़ की व अन्य राज्यों की विद्युत कंपनियां करती आ रही है वैसा ही मध्यप्रदेश की विद्युत कंपनियों में भी किया जाये।
वर्तमान में देशभर के राज्यों की विद्युत कंपनियों में पेंशनरों को 42% महंगाई राहत दी जा रही है, ठीक ऐसे ही मध्यप्रदेश के विद्युत पेंशनरों को भी 42% महंगाई राहत के आदेश, यहां की विद्युत कंपनियां जारी करें, यह प्रावधान पूर्व में भी था, इसे पुन: यहां लागू कराया जाऐ।
मगर देखा गया है कि हमारी पेंशनर्स यूनियनें, सरकारी व अन्य विभागों की युनियनें के साथ शामिल होकर मांग रखती है जबकि
हमारी मांगें, मुद्दे उनसे अलग रहते हैं। इसलिए हमें अपनी मांग अलग व स्वतंत्र रूप से रखना चाहिए। जब सारे उपाय करके थक जाऐं और मुखिया का रवैया ना बदले तो संगठन अपने पेंशनरों के जमा कोष का सदुपयोग कर अपने मुद्दों पर न्याय पाने के लिए न्यायालय की शरण लें संभव हो की महंगाई राहत
मुद्दे पर व अन्य मुद्दों पर पेंशनरों को सकारात्मक फैसला मिलें।