साहित्य दर्पण

चल जिन्दगी

चल जिन्दगी! थोड़ा और आगे चल
शायद आगे मिलेगा, सुकून के पल
वक्त तो, गुजर रहा है बिना रुके
तू क्यों रुके! चल तू और थोड़ा चल
रुकना नही, फिर दूर तक निकल
माना, जीवन की राहों में है कंकड़
चल जिन्दगी थोड़ा और आगे चल
शायद आगे मिलेगा सुकून के पल।

पता है तुझे ! जिन्दगी की मंजिल
हमसे बहुत दूर है, तू बिना रुके चल
समझ तू ! हाथ में जीत की लकीर है
अपने हाथ को , थोड़ा और तो मल।
राहे निहारती है, कदमो की आहट
अपने भारी कदमों से, घर से निकल
चल जिन्दगी, थोड़ा और आगे चल
शायद आगे मिलेगा, सुकून के पल।

कदम लड़खड़ाएंगे, डगमगाएंगे
तू फिर से, एक बार कोशिश तो कर
कई बार गिरने के बाद, उठ खड़ा हो
तू , संभलने की कोशिश तो कर
मंजिल बिछाए, कदमो तले फूल
ये फूल को अंदर, महसूस तो कर
चल जिन्दगी, थोड़ा और आगे चल
शायद आगे मिलेगा, सुकून के पल।

रचनाकार
श्याम कुमार कोलारे

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