‘कंकण’ सूर्य ग्रहण के परिणाम विचलित करने वाले !
पूरी दुनिया इस समय कोरोना नामक महामारी से ग्रस्त है। इस महामारी का फैलना एक संयोग है या पूर्व से ही इसके संकेत मिल चुके थे। इस महामारी के बारे में ज्योतिष शास्त्र का नजरिया अलग है। 26 दिसंबर को ‘कंकण’ नाम के सूर्य ग्रहण के बाद 21 जून को फिर ‘कंकण’ सूर्य ग्रहण होगा। ये सूर्य ग्रहण सुबह 9 .16 बजे से आरंभ होगा, जो दोपहर 3.4 तक चलेगा। सूर्य ग्रहण का सूतक 20 जून की रात 10 बजे से आरंभ होगा। इस सूर्य ग्रहण के समय मिथुन राशि में छाया ग्रह राहु सूर्य-चंद्रमा को प्रभावित करेगा। जल तत्व की राशि का मंगल मीन में है और मिथुन राशि के सूर्य,चन्द्र,राहू पर दृष्टि डाल रहा है। ग्रहणकाल वाले दिन में बुध, गुरु, शुक्र और शनि राहु केतु वक्रीय होंगे। इन 6 ग्रहों की स्थिति के वक्रीय होने के कारण इस सूर्य ग्रहण का प्रभाव निश्चित तौर से आमजन ओर देश पर पड़ेगा। ‘कंकण’ सूर्य ग्रहण के नकारात्मक प्रभाव के कयास लगाए जा रहे हैं। 26 दिसंबर 2019 के ग्रहण के बाद से पूरी दुनिया कोरोना महामारी की समस्या से जुझ रहा है। 21 जून को फिर ‘कंकण’ सूर्य ग्रहण होगा, जो एक बार फिर पूरी दुनिया को प्रभावित करेगा। इसके नकारात्मक परिणामों में वृद्धि हो सकती है, जो धीरे-धीरे सकारात्मक प्रभावों में परिवर्तित हो जाएगी। ज्योतिष और महामारी का आपस में जुड़ाव जरूर है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता! इसका आगामी समय में भारत में कितना असर रहेगा जानते है। 21 जून को होने वाले सूर्य ग्रहणकाल में 6 ग्रहों की वक्रीय स्थिति से महामारी का प्रभाव में बदलाव हो सकता है जिन क्षेत्रो में ज्यादा प्रकोप है वहाँ आंषिक नियंत्रण हो सकता है वही जिन क्षेत्री में संक्रमण कम है वहा इसका विस्तार भी सम्भव है, इसको नियंत्रित करने में भी समय लगेगा । भारत पर महामारी का संकट इस ग्रहण के कारण ज्यादा गहरा सकता है और देश के अनेक भागों में इसका असर देखने को भी मिलेगा। देश को अनेक प्रकार की विनाशकारी स्थिति से गुजरना पड़ सकता है। देश का नेतृत्व करने वाले नेताओं व धार्मिक नेताओं पर भी इसका प्रभाव होगा। वर्ष 1962 में भी इस तरह की स्थिति का निर्माण हुआ और हमें चीन से युद्ध लड़ना पड़ा था। संयोग से 1962 जैसी स्थिति का निर्माण फिर हो रहा है! लेकिन, इस समय एक साथ 6 ग्रह वक्रीय स्थिति में होगें। भारत की जन्म कुंडली स्वतंत्र भारत का जन्म 15 अगस्त 1947 को रात्रि 00ः00 बजे दिल्ली में वृषभ लग्न में कर्क राशि में हुआ था। भारत में मंगल के मकर राशि में प्रवेश से देश को कोरोना के प्रकोप से 18 जून के बाद आंशिक मुक्ति जरूर मिलेगी, परन्तु भारत की जन्म कुंडली में अनंत काल सर्पयोग नामक योग होने के साथ ही चन्द्र की दशा में शनि का अंतरदशा चल रही है। यह एक विषयोग का निर्माण करती है। इस योग की दशा 11 दिसंबर 2019 से 10 जुलाई 2021 तक रहेगी और इससे मुक्ति मिलना इतना आसान नही हैं। भारत के लिए इस दशा में देश में महामारी का खतरा बढ़ता जाएगा एंव काफी प्रयत्न के बाद भी आयतीत सफलता प्राप्त नही हो पाएगी! आने वाले दिनों में संकट गहराता जाएगा। संकट का समय भारत में ग्रहण के प्रभाव से संकटकाल में बढ़ोतरी होगी। प्राकृतिक आपदाएं भूकंप, बाढ़, महामारी जैसी घटनाएं बढ़ सकती है! चीन, जापान और पाकिस्तान इंडोनेशिया में बडे भूकंप की आशंका है। इस संकटकाल में देश को जनता का साथ मिलेगा। मित्र देशों से संबध विष योग के प्रभाव व 6 ग्रहों में बुध के वक्रीय होने से मित्र देशों से धोखा मिलने की संभावना में वृदिध होगी। चीन से टकराव निर्णायक स्थिति में आएगा। आर्थिक स्थिति देश को बिगड़ी आर्थिक स्थिति से उबरने में अभी काफी वक्त लगने की संभावना दिखाई दे रही है। साथ ही मंहगाई, बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था के मामले में थोड़ी राहत मिलने के बाद पुनः व्यवस्था बिगड़ सकती है। देश की आंतरिक स्थिति भी खराब हो सकती है। राजनीति की राह मुश्किल भारत की जन्म पत्रिका में चन्द्र की महादशा के कारण भारत और ज्यादा ताक़तवर हुआ है। भारतीय जनता पार्टी की अपेक्षा देश की जनता ने देश के प्रधानमंत्री पर ज्यादा भरोसा जताया! परन्तु, 11 मार्च 2020 से चन्द्र की महादशा में शनि की अन्तर्दशा विषयोग का निर्माण कर रही है! इस कारण कई ताक़तवर राजनीतिक व्यक्तियों का जनता के विरोध का सामना करना पड़ेगा व अधिकांश शक्तियां शून्य प्राय सी हो जाएगी। वर्ग संघर्ष से लेकर कई प्रकार के संक्रमण का सामना करना होगा। आर्थिक स्थिति डांवाडोल होगी व देशभर में अराजकता का वातावरण निर्मित होगा। विषयोग से निजात नहीं आने वाले दिनों में विषयोग के कारण संकट ज्यादा गहरा हो सकता है। भारत को इस महादशा में शारीरिक और आर्थिक संकटों के साथ ही चोरी, लूट और ऐसी ही अराजक स्थितियों का सामना भी करना पड़ सकता है। इस योग के कारण सीमा के अलावा देश के भीतर भी शत्रु अपना फन फैलाने की कोशिश करेंगे, परन्तु कामयाब नहीं हो सकेंगे। भारत की जन्म कुंडली के केन्द्र में वृषभ लग्न में वृष का राहू व लग्न से सातवें भाव में केतु के मध्य दूसरे भाव में मंगल, तीसरे भाव में सूर्य-बुध-चन्द्र-शुक्र-शनि व छठे भाव में गुरू की उपस्थिति स्पष्ट काल सर्पयोग का निर्माण करती है। जन्मकुडंली में राहू और केतु के मध्य जब सभी ग्रह आते हैं, तब इस योग का निर्माण होता है। ये योग 12 भावों में 12 प्रकार के होते है। स्वतंत्र भारत की कुडंली में लग्न से सातवें भाव के मध्य में इस योग का निर्माण हो रहा है, जिसे ज्योतिष में अनंत काल सर्पयोग कहा गया है। इस योग को दुर्भाग्यशाली योग की संज्ञा दी जा सकती है। इस योग के कारण अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पडता है! कितने भी प्रयास किए जाएं, लेकिन उसकी सफलता में भी असफलता प्रतीत होने लगती हैं। इस योग के कारण भ्रष्टाचार, अराजकता, बेईमानी भी चरम पर होती है। मित्र देश परेशानी बढ़ाएंगे और उनके धोखा देने के कारण देश को नुकसान उठाना पड़ेगा।