छतरपुर दर्पणमध्य प्रदेश

जैन समाज मना रहा पर्युषण पर्व

मन, वचन, काय में समानता ही उत्तम आर्जव धर्म है

जबलपुर दर्पण छतरपुर ब्यूरो

छतरपुर । जैन धर्मावलंबियों द्वारा आत्म आराधना का दस दिवसीय पर्यूषण पर्व इस वर्ष शासन एवं नगर में चातुर्मास कर रहे पूज्य मुनि संघ के निर्देशानुसार सभी नियमों का पालन करते हुए पूरी धार्मिक प्रभावना के साथ मनाया जा रहा है। आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज के विद्वान शिष्य मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज , मुनि श्री अप्रमित सागर जी महाराज ,मुनि श्री सहज सागर जी महाराज का चतुर्मास छतरपुर नगर में हो रहा है जो ज्ञान कुटी परवारी मोहल्ला में विराजमान है।lum
जैन समाज के डा सुमति प्रकाश जैन के अनुसार सृष्टि के प्रारम्भ होने के प्रतीक स्वरूप जैन धर्मावलंबी प्रति वर्ष भाद्रपद पंचमी से अनंत चतुर्दशी तक पूरे नियम, संयम और धार्मिक विधि विधान से दस दिवसीय पर्युषण पर्व मनाते हैं। इस वर्ष पर्युषण पर्व 23 अगस्त से प्रारंभ हुए हैं जो 1 सितम्बर को सम्पन्न होंगे।
इस वर्ष कोरोना संकट काल में पूज्य मुनिश्री ने समस्त समाज को निर्देश दिए हैं कि इस बार के पर्युषण पर्व सरकार ने कोरोना वायरस से बचने के जो उपाय एवं नियम बनाये है उनका पालन करते हुए घर में ही मनोयोग पूर्वक भक्तिभाव और धार्मिक प्रभावना के साथ मनाएं।
जैन समाज के प्रवक्ता अजित जैन ने बताया कि धर्म के दस लक्षण उत्तम क्षमा धर्म , उत्तम मार्दव धर्म , उत्तम आजर्व धर्म , उत्तम शौच धर्म, उत्तम सत्य धर्म , उत्तम संयम धर्म ,उत्तम तप धर्म ,उत्तम त्याग धर्म उत्तम आकिंचन धर्म, उत्तम ब्रहचर्य धर्म होते हैं, जिनका पालन कर हम आत्म आराधना करते हैं ।इस प्रकार इन दस पर्वों को पर्युषण पर्व के रूप में जैन श्रावक बड़े धूमधाम से मनाते है। कोरोना काल के पूर्व जहाँ सैकड़ो की संख्या में लोग मंदिर में पूजन विधान ओर सांस्कृतिक कार्यक्रम करते थे ,वहीं इस बार समय के चक्र ऐसा चला कि कोरोना वायरस रूपी महामारी के कारण सब लोग घर मे ही पूजन विधान ओर स्वाध्याय जैसी पर्युषण की क्रियाये कर रहे। सिर्फ पुजारी जी ही मंदिर में वेदी में विराजमान प्रतिमा का अभिषेक , पूजन विधान कर रहे है। किसी को मंदिर में रुकने की अनुमति नही है । जैन समाज के अध्यक्ष श्री जय कुमार जैन ,महामंत्री श्री स्वदेश जैन सहित अनेक श्रावक जन घर मे ही भक्ति भाव से पूजन विधान एवं सभी धार्मिक क्रियाएं कर रहे हैं।
आज पर्युषण पर्व का तीसरा दिवस है, जो उत्तम आर्जव धर्म के रूप में मनाया गया। आर्जव का मतलब क्या है ? जीवन में सरलता आ जाना ही उत्तम आर्जव है । ऋजुता के भाव होना ही आर्जव है ।हमारे जीवन मे ऋजुता तभी आएगी जब हम अन्दर बाहर से एक हो जाये। मन ,वचन ,काय में समानता आना ही आर्जव भाव है। हमारे भावो में जितनी सरलता आती जाएगी हमारी दुर्गतियो का नाश होता जाएगा।शास्त्र में कहा भी गया है कि उत्तम आर्जव कपट मिटावे,दुर्गति त्याग सुगति उपजावे।

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