संरक्षित किए जाने बाट जोह रही पुरातात्विक महत्व की बेशकीमती मूर्तियां
बिन्जन श्रीवास, रीठी/कटनी दर्पण। कभी पुरातत्व कला की बेजोड़ नमूना रही पाषाण प्रतिमाओं का अब अस्तित्व ही खतरे मे है। रीठी अंचल मे बिखरी पड़ी इन प्रतिमाओं को सहेजने कोई प्रयास नही किए जा रहे हैं। नतीजन गौरवशाली अतीत की साक्षी प्रतिमाओं की मूल पहचान ही खत्म होने की कगार पर है। अपने समय की कला का जीवंत उदाहरण देती हुई प्रतीत हो रही प्राचीन कलाकृतियां व्यवस्थाओं की बाट निहार रही हैं। जिम्मेदार इस ओर ध्यान नही दे रहे हैं, जिससे प्रतिमाएं नष्ट होती जा रही हैं। रीठी क्षेत्र मे वर्षों से बिखरे पड़े पुरावशेषों को सुरक्षित करने न किसी जनप्रतिनिधियों द्वारा कोई पहल की गई और न ही पुरावेत्ताओं की नजरें ही इस ओर इनायतें हो सकी हैं। अद्भुत प्राचीन पुरावशेषों पर मानो अव्यवस्थाओं की सीलन लगकर रह गई है।
लावारिस पड़ी कलाकृतियां !
देखा गया कि रीठी स्थित बीआरसी कार्यालय के पीछे मरचुरी हाउस के सामने पड़ी कलाकृतियां की सुरक्षा के लिए कोई सार्थक प्रयास नही किए गए। जिसके कारण अंग्रेजों के शासनकाल से पूर्व की कलाकृतियां लावारिस की तरह बिखरी पड़ी हैं। तो वहीं स्थानीय लोगो द्वारा उक्त स्थल मे किसी किले के होने के अनुमान लगाए जा रहे हैं और पुरावेत्ताओं द्वारा खोज करने या खुदाई करने पर यहां पुरावशेषों के मिलने की संभावना जताई जा रही है। अव्यवस्थाओं का दंश झेल रहे अवशेषों के पाथर-पाथर अपने समय की कला का जीवंत प्रमाण दे रहे हैं।
प्रशासन को नही सरोकार
बिखरे पड़े पुरावशेषों को देखकर यह प्रतीत होता है जैसे वह किसी इतिहास की गाथा वयां कर रहे हैं। लेकिन कला और नक्काशी से भरे मूक पत्थरों की भाषा जानने समझने की फुर्सत किसी धनीधोरी को नही मिली। बल्कि यह कहना गलत नही होगा कि बिखरे पड़े अवशेषों से कोई सरोकार नही है। हालांकि क्षेत्रवासियों द्वारा उक्त स्थान पर नाग पंचमी के दिन पूजा-अर्चना की जाती है और कुछ लोगो द्वारा इसी स्थान पर बड़े देव की भी पूजा-अर्चना की जाती है लेकिन उसके बाद इस ओर किसी को झांकने की आवश्यकता भी नही रह जाती।
अतीत की साक्षी हैं मूर्तियां
अपनी अतीत की कहानी बयां कर रहीं मूक मूर्तियों और पत्थरों को व्यवस्थाओं दरकार है। बताया जाता है कि उक्त स्थान से न जाने कितनी मूर्तियां चोरी हो गई, तो कुछ टूट कर नष्ट हो चुकी हैं। क्षेत्र के सतेंद्र सिंह राजपूत, बिंजन श्रीवास, मयंक कंदेले, ऋषभ पाल, राशू कंदेले, हेमंत सेन, अतुल गुप्ता, दीपक रैदास, मोहित साहू, पारस नामदेव, सुरेंद्र साहू, मुकेश यादव, महेश पटेल, मुकेश बेन, आशूतोष बर्मन, आनंद कश्यप सहित अन्य जनो ने पुरातत्व विभाग का ध्यान आकर्षित कराते हुए बिखरे पड़े पुरावशेषों को सुरक्षित कराने की उपेक्षा जताई है।