अँधेरी आँधियों में जूझते टिमटिमाते इन चिरागों की फ़िक्र किसे है..
ललित श्रीवास्तव”शब्दवंशी”
संपर्क-9806127070
“पत्रकार” जी हाँ हम एक पत्रकार हैं,समाज और सत्ताधीशों की संवेदनहीन सोच ने हमे एक ऐंसी प्रजाति बना दिया है,जो किसी श्रेणी में नही आती,हम लोगों की आलोचनाओं और मतलबपरस्ती के बदले उनकी आवाज़ बनकर उनका कल्याण करने का व्यापार करते हैं,किंतु हम वैश्य नही माने जाते,हम समाज की मानसिकता और शासन ,प्रशासन के भृष्टाचार की गंदगी साफ़ करते हैं,किन्तु हम शूद्र की श्रेणी में नही आते,हम समाज मे फैले अज्ञान एवं दकियानूसी सोच से लोगों को उबारने हेतु ज्ञान का प्रसार भी करते हैं,किन्तु हम ब्राह्मण की श्रेणी में नही आते,और इतिहास साक्षी है कि राजनेताओं की राजशाही,माफियाओं की दमननीति और अफसरों की अफसरशाही के विरुद्ध भी हम पत्रकार सदैव युद्ध करते हैं,किन्तु हम क्षत्रिय की श्रेणी में नही आते…..
हम अहँकार से गरीब हैं इसलिए प्रत्येक गरीब का दुःख दर्द समझ पाते हैं,हम मध्यमवर्गीय भी हैं,इसलिए गरीब और अमीर सभी वर्ग के लोगों से संपर्क में रहकर सबकी मदद करते हैं,और हम हृदय से स्वाभिमान से और सोच से अमीर भी हैं,इसलिए समय आने पर अपनी जान की फ़िक्र किये बिना अपने स्वनिर्धारित फ़र्ज़ को पूरा करने में जुट जाते हैं,किंतु फिर भी हम किसी श्रेणी में नही आते…..!
बात कोरोना महामारी के पहले चरण की हो या दूसरे भयानक चरण की,जब अस्पतालों और श्मशान में लाशें बिछ रही थीं,और सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ था,लोगों के नाम पर सड़कों पर सिर्फ़ सरकारी सिपाही और कर्मचारी ही दिखाई दे रहे थे,व्यवस्थाएं ध्वस्त थीं,और वोटों की पोटरी बनाकर जननायक कहीं गुम हो चुके थे,ऐंसे में सदैव की ही भाँति एक पत्रकार अपने घर मे नही ठहर पाया,जब अस्पतालों से लोगों के फोन आने लगे,और शहरों से भूखों की पुकार सुनाई देने लगी,तो संवेदनाओं वश स्वयं की परिस्थितियों से जूझता हुआ हर पत्रकार जनसेवा हेतु निकल पड़ा,किसी के बच्चे दरबाजे पर खड़े होकर उसे रोक रहे थे,किसी की पत्नी अपनी कसम देकर उसे रोकने का प्रयास कर रही थी,तो किसी के बड़े बुजुर्ग डाँटकर उसे रोक रहे थे,किन्तु अपने स्वनिर्धारित फ़र्ज़ की पूर्ति हेतु पत्रकार निकल पड़ा,कोई किसी को भोजन बांटता नजर आया,तो कोई किसी मरीज के लिए दवा,इंजेक्शन, या बैड की व्यवस्था करता नजर आया,और यह सब पत्रकार लाखों रुपए तनख्वाह की ख़ातिर या वोटों की ख़्वाहिश में नही बल्कि,सिर्फ़ और सिर्फ़, अपने लोगों की सेवा और रक्षा की भावना से कर रहा था….
हमने तो फर्ज़ निभाया,आपकी संवेदनाएँ कब जागेंगी..
पत्रकारिता के कार्य क्षेत्र में चार वर्गों को अधिकांश पत्रकारों से ही कार्य होता है,पहला है समाज,दूसरा प्रशासन, तीसरे हैं माननीय नेतागण और चौथे हैं हमारे इर्द गिर्द समाज मे कार्यरत सामाजिक,एवं पत्रकार संगठन….
अब इस विषम परिस्थिति में समाज से अपेक्षा करना बेमानी होगी,किन्तु प्रशासन ..? प्रशासन की समस्त योजनाओं का क्रियान्वयन ही हम पत्रकारों द्वारा फैलाई जा रही जागरूकता पर निर्भर करता है,जबकि प्रशासन में स्वयं ही जन संपर्क कार्यालय है जो कि रोजाना प्रशासनिक समाचारों को हम तक भेजता है और हम उन्हें समाज तक भेजते हैं,इतना ही नही समय समय पट स्वयं की वाहवाही हेतु पत्रकारों को याद भी किया जाता है, यही प्रशासन और जन संपर्क विभाग ने इस महामारी के दौरान पत्रकारों की सुध लेना तक जरूरी नही समझा,वेक्सिनेशन में प्राथमिकता तो छोड़ो,उल्टा कई पत्रकारों को लाखों रुपए देकर अपना एवं अपने परिजनों का इलाज करवाना पड़ा…
इसके बाद आते हैं हमारे आदरणीय जनप्रतिनिधि एवं नेतागण…जिनके हर जुलूस ,धरना,बयानबाजी, और नीतियों के प्रचार प्रसार हेतु पत्रकारों को याद किया जाता है,यही नेतागण इस भीषण आपदा में पत्रकारों को भूल गए…जबकि परिस्थिति कुछ ऐंसी थी कि हमने एक पत्रकार को अपने घर का राशन दूसरे को देते हुए देखा,शासन प्रशासन में प्रचार प्रसार के नाम पर करोड़ों खर्च करने बाले यह माननीय,इस प्रक्रिया की रीढ़ की हड्डी को ही भूल गए…
अब अंत मे बात करते हैं,हमारे संगठनों की पत्रकारों के नाम पर चलने वाले संगठन एवं जिले का प्रेस क्लब भी इस आपदा के समय आँखें मूँदकर बैठे रहे,न ही किसी ने कोई फिक्र की के आर्थिक रूप से जरूरतमंद साथियों को सार्वजनिक सहयोग से ही सही कुछ मदद उपलब्ध कराई जाए..न ही फ्रंट लाइन वर्कर होने के नाते उन्हें प्राथमिक रूप से वैक्सीन लगवाई गई,जिससे पत्रकारों के साथ साथ,उनके परिजनों की जिंदगी भी खतरे में रही,लिहाज़ा अनेक साथी कोरोना से संक्रमित भी हुए ,अनेक साथियों के परिजन काल के गाल में समा गए, किन्तु न कोई आर्थिक सहयोग प्राप्त हुआ न ही कोई मानसिक सहयोग प्राप्त हुआ….जबकि नेतृत्व और कार्यकुशलता प्रकट करने का इससे बेहतर वक़्त कोई नही था,और सर्वाधिक यह वक़्त था आपकी संवेदनाओं की पुष्टि का…बहरहाल यह सब बातें हमारी आपबीती हैं,मक़सद है सिर्फ़ आपकी संवेदनाओं को जगाने का,आपको अपनी भूल का एहसास कराने का,क्योंकि हम पत्रकार तो कल भी अपना फ़र्ज़ निभा रहे थे और आगे भी निभाते रहेंगे….
जय हिंद