संपादकीय/लेख/आलेख

राजनीति – जनता की नज़र में

राजनीति खिलौना बनी , जनभावना से हो रहा खिलवाड़ ,
जनता के मुद्दे गौण हुए ,  राजनेता लगा रहे अपना जुगाड़ ,
उठापटक में व्यस्त राजनीति ,  सर्कस सा आज नज़ारा है ,
दल-बदल  की आड़ में हो रहा है ,  खुलमखुल्ला भ्रष्टाचार ।

सुविधा की राजनीति कर रहे , मानसिकता इनकी बीमार ,
राजनीतिक हित साध रहे ,  जनता के कंधों पर हो सवार ,
अपने  मतलब के ख़ातिर दुश्मन से भी हाथ मिला लेते हैं ,
विचारधारा  मायने रखता  नही ,  बस कुर्सी  रहे बरकरार ।

चरित्रहीन हो चुकी राजनीति , स्तरहीन राजनीतिक व्यवहार ,
नैतिक  पतन हो चुका नेताओं का ,  धोखा बन गया संस्कार ,
माफ़ियातंत्र  हावी राजनीति पर , लूट  मची है  संसाधन  की ,
जनता  भूखी  रह  जाती  है  हमेशा , नेता  जाते  सब डकार ।

कहीं  राजनीतिक  विरासत  हावी  है , कहीं  सजता  है दरबार ,
कहीं  उल्लू  प्रवचन  दे  रहा , कहीं  दबंग  कर  रहा  बलात्कार ,
देशविरोधी षड्यंत्र कर रहा कोई , कोई धर्म की आड़ में बैठा है ,
भांति-भांति  के  लोग  राजनीति  को ,  रोज़  कर  रहे  शर्मसार ।

नित्य  नए हथकंडों से कर रहे हैं जनमानस का शिकार ,
अपनी चिंता नेताओं को , जनहित से ना कोई सरोकार ,
नमक देश का फ़ीका लगता हैै , दुश्मनों  के गुण गाते हैं ,
देशभक्ति का स्वांग है रचते , आचरण से लगते हैं गद्दार ।

काला धन , बेनामी संपत्ति  के बन  बैठे हैं  ये  हिस्सेदार ,
वोट के बदले घुसपैठ हैं कराते , दंगों के भी ये ज़िम्मेदार ,
नेता शब्द से लोगो को अब तो , भ्रष्टाचार की बू आती है ,
नेताओं  की संपत्ति बढ़ती जाती ,  जनता  बेबस-लाचार ।

जागना  हीं होगा जनता को ,  करना होगा बहिष्कार ,
भ्रष्ट नेताओं  की मनमानी का हरसंभव हो तिरस्कार ,
संघीय-ढांचा  चरमरा रहा , आहत  देश का संविधान ,
स्वच्छ-स्थाई राजनीति की , आज देश को है दरकार ।

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