रस्सी की गांठ तो खुल सकती है, पर मानव मन की नहीं।
रस्सी की गांठ तो खुल सकती है, पर मानव मन की नहीं।
हम सच्चरित्र और संयम के माध्यम से सल्लेखना के मार्ग पर चल सकते हैं :आचार्य श्री
जबलपुर। मन के विकारों को दूर कर हमने अपने दोषों पर नियंत्रण पा लिया तो हम जीवन की मूल निधि को प्राप्त कर लेंगे। किंतु यदि मन में गांठ पड़ी रही तो मुक्ति का मार्ग अवरुद्ध हो जाएगा।
आप लोगों ने कई बार अनुभव किया होगा, कि सुलभ समझकर की गई उपेक्षा को हम सुलझा लेंगे या मन की गांठ को खोल लेंगे , कई बार गांठ और घनिष्ठ हो जाती है , रस्सी की गांठ कुशलता से खुल जाती है। जूट की गांठ विशेष प्रशिक्षण से निकाल सकते हैं। कुछ गाँठ रसायन के माध्यम से खुलती है। लेकिन यदि मानव बाल में गांठ पड़ जाए,तो इतनी सूक्ष्म होती है। कि उसे खोलने के लिए सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तुएं भी काम नहीं आती, इस गांठ को खोलने के लिए प्रशिक्षण, खर्चे, उपकरण और समय लग सकता है। हमारे आचार्यो ने चार प्रकार के कषाय बताएं जो गांठ की ही भांति ही है क्रोध , माया, मोह और लोभ यह गांठे निकालना बहुत कठिन है। अभी कुछ लोग इन चारों गांठो को खोलने तैयार हो गए हैं। और शादी के समय पंडित ने जो गांठ लगाई वह भी खोल कर मुक्ति के मार्ग पर चलने की तैयारी कर रहे हैं। यदि आपने पहली गांठ निकाल दी तो आगे की गांठ निकालने में सरलता होगी। मनुष्य अवस्था में जो व्यक्ति जीवन के बंधन को समाप्त करते हुए आगे बढ़ते हैं, वे सभी गांठो को छुड़ा लेते हैं ।
भरत चक्रवर्ती होते हुए भी जब बाहुबली से हारे, तो उन्हें भी मन में टीस हुई , गांठ लग गई, चक्रवर्ती होकर भी मैं बाहुबली से हार गया ।
जब भरत जी को वैराग हुआ। तब अनंत काल के कषाय थे जो टीस, थी जो बंधन थे, जो काटे थे वह समाप्त हुई ।
गृहस्थ अवस्था में भी काम, क्रोध, लोभ, मोह कि चारों गांठो को निकाल कर मोक्ष मार्ग पर चलने का अभ्यास प्रारंभ करना चाहिए, अंतिम क्षण में ही इसका मूल्य मिलता है। अन्यथा अंतिम क्षणों में भी गांठे लगी होती हैं , तब मुक्ति नहीं होती।आप घर में रहते हुए भी सच्चरित्र ,संयम धारण कर सल्लेखना के मार्ग पर चल सकते हैं।