संपादकीय/लेख/आलेखसाहित्य दर्पण

अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा ,दहशत में अफगानिस्तान (आलेख))

अफगानिस्तान पर पुनः 20 साल बाद तालिबान का कब्जा हो गया है। यह भारत के लिए अच्छा संकेत नहीं है। भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते पर सवाल खड़ा हो गया है ,साथ ही भारत पर भविष्य में आतंकवादी हमले का खतरा भी बढ़ सकता है ।भारत के द्वारा बहुत सारे प्रोजेक्ट अफगानिस्तान में चल रहे थे ,वो भी बंद हो सकते हैं। जिससे भारत को आर्थिक क्षति उठानी पड़ सकती है। तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्जा होना पूरी दुनिया के लिए बुरी खबर है क्योंकि ,तालिबान के हाथ में आकर अफगानिस्तान के जो हालात 20 साल पहले था , पुनः वही हालात अफगानिस्तान में दिख रहे है ।देश तहस नहस हो रहा है ।
अफगान के राष्ट्रपति देश छोड़कर भाग चुके हैं, और वहां की जनता को मरता हुआ छोड़ गए हैं। जो दिनांक 16-08-2021 को काबुल के हवाई अड्डे पर दिखा था ।सैकड़ो की संख्या में लोग हवाई जहाज में चढ़ना चाह रहे थे, हजारों की संख्या में लोग रनवे पर दौड़ रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे जल्द से जल्द देश छोड़कर निकल जाना चाह रहे हो । अमरीकी सैनिक द्वारा फायरिंग में पाँच लोग की जान भी जाने की खबर है। यह स्थिति विचलित नहीं बल्कि ,अत्यधिक विचलित कर रही है। अफगानिस्तान के सभी राज्य की राजधानी तालिबान के कब्जे में आ चुका है ,और 15 अगस्त के दिन जब भारत अपना स्वतन्त्रता दिवस मना रहा था ।तालिबान ने काबुल पर कब्जे के साथ अफगानिस्तान की सत्ता अपने हाथ में ले ली। इस सब प्रक्रिया में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अब्दुल गनी ने तालीबान के खिलाफ कोई विशेष प्रयास नहीं किया ?तालिबानी का विरोध नही किया,और चुपचाप देश छोड़ कर चलते बने। अफगानिस्तान की जनता को मरता छोड़ गए।
आखिर ये तालिबानी हैं कौन??
1990 के दशक में मुल्लाउमर ने 50 छात्रों के साथ इस संगठन का निर्माण किया था। जिसमें धीरे-धीरे संख्या बढ़ने लगी ।पाकिस्तान के रिफ्यूजी अफगानिस्तान आकर तालिबान का हिस्सा बनते गए एवं उनकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ती गई। निश्चय ही इन्हें पाकिस्तान के मदरसों से ऐसी कट्टरपंथी शिक्षा मिली होगी ।ये कहने में भी कोई हर्ज नही हैं कि पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान के आतंकवादवादियो ने तालिबान संघ को बनाया है ।पश्तो जुबान में तालिबान का मतलब छात्र होता है । 1990 दशक में सोवियत संघ के कमजोर पड़ने के बाद एवं अमेरिका के बढ़ते प्रभाव के कारण अफगानिस्तान से सोवियत संघ अपने सैनिक हटा रहा था ,उसी समय तालिबान का गठन हुआ ।
जिसे पाकिस्तान, सऊदी अरब और अमेरिका ने सहयोग किया ।पाकिस्तान के मदरसे में इन्हे जिहाद की ट्रेनिंग मिली । सोवियत संघ के द्वारा पूरी कोशिश की गई थी कि ,अफगानिस्तान में डेमोक्रेसी बहाल हो किंतु, अमेरिका की वजह से यह संभव न हो सका ।इस कारण से आज अमेरिका सवालों के घेरे में खड़ा है। क्योंकि तालिबान की जो स्थिति है उसमें अमेरिका का बहुत बड़ा हाथ है ।अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच फैले पश्तून इलाके में शरिया कानून को लागू करने के लिए के लिए बहुत खुन खराबा किया था। पश्तून इलाका राष्ट्रीयता में विश्वास करता था ,इस कारण पश्तून के हजारा मुसलमान को हजारो की संख्या में मार दिया गया था। ईसाइयों को भी धमकाया जाता था एवं हिंदुओं को ही बैच दिया गया था, ताकि मुस्लिम से अलग दिखें।
अफगानिस्तान में बुध की बहुत बड़ी-बड़ी मूर्तियां थी, उसे भी उसने ध्वस्त कर दिया । तब दुनिया भर की नजर अफगानिस्तान पर गई ,और तालिबान के खिलाफ आवाज उठने लगी । शुरू में अफगानिस्तान की जनता तालिबान के शासन को स्वीकार कर रही थी ,परंतु धीरे-धीरे असलियत सामने आने लगी और एक-एक करके जनता की आजादी पर बैन लगने लगा। तब जनता भी तालिबान के विरोध में आनेलगी तालिबान ने सबसे पहले 1995 में ईरान की सीमा में लगे हेरात प्रांत पर कब्जा किया और 1 साल बाद अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा जमा लिया ।तालिबान ने अपने शासन में अफगानिस्तान के नागरिकों का जीवन नर्क बना दियाऔर लोगों को गुलाम बनाकर रखा । अंततः अमेरिका के सहयोग से तालिबान से अफगानिस्तान मुक्त हुआ ,परंतु वह फिर चीन के सहयोग से संगठित हो उठा ,और वापस अफगानिस्तान पर 20 साल बाद फिर से कब्जा जमा चुका है ,जो कि एक अच्छा संकेत बिल्कुल भी नहीं है।गलत हमेशा गलत होता हैं अपने निजी फायदे के लिए गलत का साथ देने से यही होता हैं जो आज अफगानिस्तान के साथ हो रहा हैं।यदि इस्लाम के नाम पर इन आतंकवादी संगठनो का कई देशो के द्वारा साथ न दिया गया होता तो ,आज अफगानिस्तान की ये हालत न होती ।

सुनीता कुमारी
पूर्णियाँ ,बिहार।

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