हिंदी हिंदुस्तान की
हिन्दी हिन्दुस्तान की
नित्य शास्वत और अमर है,
गाथा वेद पुराण की,
चलो आरती सब मिल गाएं
हिन्दी हिन्दुस्तान की।
विज्ञ प्रज्ञ विद्वान हृदय के,
चिंतन सूने रह जाते,
मेधा और विद्वता तक के,
मंथन कैसे हो पाते।
देव ऋषि मुनि की वाणी है,
देवनागरी दान की,
चलो आरती सब मिल गाएं,
हिन्दी हिन्दुस्तान की।
मन से उठने वाले रस को,
भाव शब्द कहाँ मिलते,
नानक मीरा और कबीर के,
पूजा के दीप कहाँ जलते।
सावन और बसंत भी गाते,
जय हो छंद विधान की,
चलो आरती सब मिल गाएं,
हिन्दी हिन्दुस्तान की
सुन्दर संसृति के गिरी सागर,
कानन का वैभव होता मौन,
विधु वसुधा के नयनों मे,
काजल भला लगाता कौन,
हम तुम भी अंजान मुसाफिर,
बातें न पहचान की।
चलो आरती सब मिल गाएं,
हिन्दी हिन्दुस्तान की।
शिखा तिलक चंदन बिंदी,
ये अलंकार हिन्दी के हैं,
स्वयंभू साम्राज्ञी समर्थ है,
गौरव वैभव हिन्दी के हैं।
वाल्मीकि तुलसी की साध्य है,
अलका भव के उद्यान की।
चलो आरती सब मिल गाएं,
हिन्दी हिन्दुस्तान की।
माँ शारद की वाणी को,
कुर्सी के कीड़े क्या जाने,
हर विधान की है यह जननी,
वो माँ का मान क्या पहचाने।
बहरे,गूंगे,मूक बधिर बिन हिन्दी।
न मान्यता दें संविधान की।
चलो आरती सब मिल गाएं,
हिन्दी हिन्दुस्तान की।
हिन्दी संस्कृत भाषाओं ने,
सब ग्रन्थों,वेदों को संकेत दिए,
रामचरित से महाभारत तक,
चीरहरण के भेद दिए।
बानर भाषा बिन ही जाने,
बिछुड़ गयीं है जानकी।
नित्य शास्वत और अमर है।
गाथा वेद पुराण की,
चलो आरती सब मिल गाएं,
हिन्दी हिन्दुस्तान की।
कवि राजीव खरे
रैपुरा जिला पन्ना।