साहित्य दर्पण
भींगा एहसास
पहली बारिश की मिट्टी की खुशबू याद दिलाती है तुम्हारी,
जब मिली थी निगाहें हमारी पहली बार
तुम्हारी थकान भरी मुस्कान के साथ,
तुम्हारे होने का एहसास दिलाती ये बारिश की बूँदें, कभी कम तो कभी तेज फुहार के साथ,
खो जाती हूँ तुम्हारी यादो में
और भींग जाता है तुम्हारे प्यार में, मेरा रोम-रोम और अंतर्मन,
लिपट जाता है मेरे तन से बारिश में भींगा हुआ आचँल मेरा,
मानों तुम्हारी बेचैन बाहों ने जकड़ रखा हो तन मेरा,
गरमाहट होती है तुम्हारे पास होने के एहसास से,
बारिश की बूंदें भी कम लगती है तुम्हारे प्यार के बरसात से।।
स्वरचित और मौलिक
सरिता श्रीवास्तव ‘सृजन’