अध्यात्म/धर्म दर्पणमण्डला दर्पणमध्य प्रदेश

दत्तात्रेय जयंती आज, जानें भगवान दत्तात्रेय के जन्म की पौराणिक कथा

मंडला दर्पण। महर्षि अत्री और उनकी पत्नी अनसूइया के पुत्र दत्तात्रेय जी थे पिताश्री महर्षि अत्रि सप्त ऋषियों में से थे l माता अनुसूइया महान सती में है माता अनसूइया कठिन तप करती रहती थी, एक समय की बात है नारद जी त्री देवियों को जाकर कहा माता अनुसूइया महान सती है इतने में त्रिदेवियों ने उनकी परीक्षा लेने के लिए अपने-अपने पतियों से कहा कि आप महान सती की परीक्षा लेकर आए त्रिदेवों ने मना किया की है देवी उनकी परीक्षा मत लो हम लोग उसमें अनुत्तीर्ण होंगे स्त्री हट योग के आगे उनकी कुछ न चली l

और वे माता अनसूइया के पास पहुंच गए तपस्वियों के वश में भिक्षाम देही कहा, माता भिक्षा देने के लिए बाहर आई त्रिदेवों ने कहा कुछ खाने को मिलेगा ,तब उन्होंने कहा बैठिएl त्रिदेवों ने कहा हमारी शर्त है कि आप हमें निर्वस्त्र होकर भोजन परोसे यह बहुत कठिन परीक्षा प्रतीत हुई मां सती अनसूइया को पर इतने में भी समझ गई कि मेरे द्वारा ब्रह्मा विष्णु महेश आए हैं बस फिर क्या था तुरंत उन्होंने जल लिया और त्रिदेवों को नन्हे नन्हे बच्चों के रूप में बदल दिया और उन्हें भोजन के रूप में दूध पिलाया और पालने में लिटा दिया l अत्रि मुनि लौट के आए उन्हें संपूर्ण घटनाक्रम समझ में आ गया यहां त्रिदेव पालने में पड़े , माता सती के पास रहने लगे कई दिन हो गए त्रिदेवियों ने नारद जी से कहा हमारे पति कहां हैं नारद जी ने कहा वह तो मां सती के घर में बच्चों के रूप में पड़े हुए हैं l

त्रिदेवियां बहुत घबराई जब वे मां अनुसूइया के पास पहुंची और कहने लगी मां हमसे बहुत बड़ी भूल हो गई, आपकी परीक्षा के लिए हमने त्रिदेवों को भेजा है मां ने कहा ले जाओ अपने अपने त्रिदेवों को पर वे पहचान ना सकी और उनके पैरों पर गिर गई तब मां ने सबको बड़ा किया

तीनों बच्चों को एक रूप रूप में मां सती अनसूइया ने कर दिया इस प्रकार से त्रिदेव दत्तात्रेय जी का जन्म हुआ l त्रिदेवियां मां सरस्वती महालक्ष्मी महाकाली त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु महेश अपने लोक को चले गए l दत्तात्रेय जी बड़े हुए, वे बहुत महान विद्वान थे और उन्होंने अपने जो गुरु बनाए वह 24 गुरु थे, क्योंकि उन्होंने पशु पक्षी जड़ चेतन सभी को अपना गुरु बनाया था क्योंकि सभी से उन्हें शिक्षा मिली और शिक्षा देने वाला गुरु होता है l दत्तात्रेय जी के जो गुरु थे वह पृथ्वी ,अग्नि, जल, आकाश, वायु, चंद्रमा, सिंधु, कपोत, वेश्या अजगर ,पतंग, भ्रमर, मृग, मीन ,सर्प ,मकड़ी ,कन्या गुरुर पक्षी, भृंगी ,पतंगा, मधुमक्खी, पिंगला, सूर्य, बालक , गज lयह 24 गुरु थे जिसमे की पृथ्वी क्षमा करती हैl जल में स्वच्छ और मधुरता रहती हैl अग्नि हर चीज को जलाने का काम करती हैl वायु निरंतर बहती हैl आकाश व्यापक अनंत हैl चंद्रमा शीतलता प्रदान करता है lसूर्य अग्नि प्रज्वलित करता हैl कबूतर स्नेह एवं वितरागी होता हैl अजगर संतुष्ट और संन्यासी रहता हैl सिंधु कभी भी अपनी मर्यादा और सीमा नहीं तोड़ता lपतंगा आसक्त नहीं होताl भ्रमण लिप्त नहीं होताl मधुमक्खी संग्रहण का काम करती है, गज मोह रहित होता हैl मृग राग के कारण मुग्ध होना l मछली अनवरत चलना l वेश्या भेदभाव न करना सभी को समान समझना, कन्या अकेले,रहना ,बालक चिंता रहित रहना, सर्प घर ना बनाना, मकड़ी स्वयं का जाल बना के उसी में फंस जाना ,भृंगी शरीर का त्याग करना, गुरुर पक्षी भोग त्याग l

दत्तात्रेय जी के बारे में यह कहा जाता है कि वह अत्यंत ज्ञानी है अजर अमर है आज भी सहस्त्र्यादि पर्वत पर रात्रि विश्राम करते हैं नित्य गंगा काशी में स्नान गोदावरी भजन ,पूजन हेतु करवीर कोल्हापुर की महालक्ष्मी देवी की पूजा अर्चना करते हैं कई लोगों के के अनुभव दत्त भगवान को लेकर प्रसिद्ध हैं दत्तात्रेय प्रथम गुरु चिकित्सा के है , अग्रणी नाथ संप्रदाय के, प्रमुख पशु पक्षियों से शिक्षा ग्रहण कर उन्हें गुरु बनाना, परशुराम जी से श्री विद्या का ग्रहण किया जाना l इनके साथ चार स्वान एक गाय तथा इनका स्थान उमर के वृक्ष पर माना जाता है जय श्री दत्तात्रेय जी

सरिता अग्निहोत्री मंडला मध्य प्रदेश

deepak Jat

MANDLA JILA BUREAU DEEPAK SINGH JAT

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